व्यावहारिक नीतियों से ही हासिल होंगे लक्ष्य
राजस्थान में भजनलाल सरकार ने भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही विदेशी निवेशकों को लुभाने की भरपूर कोशिश की। यूं तो लाखों करोड़ के निवेश के समझौते होते हैं, लेकिन धरातल पर हजारों करोड़ के ही उतरते हैं। दरअसल, संरचनात्मक खामियां व कनेक्टिविटी की दिक्कतें निवेशकों का मोह भंग करती हैं।
डॉ. यश गोयल
राजस्थान की भाजपा सरकार ने 2023-28 के लिए दस प्रमुख संकल्पों पर आधारित कार्ययोजनाएं बनाई हैं। इनमें प्रमुख रूप से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 350 बिलियन डालर बनाने, बुनियादी सुविधाओं का विकास, सुनियोजित क्षेत्रीय विकास, किसान परिवारों का आर्थिक सशक्तीकरण, बड़े उद्योगों और एमएसएमई को प्रोत्साहन, पर्यावरण संरक्षण, मानव संसाधन और स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार, गरीब और वंचित परिवारों के लिए गरिमामय जीवन सुनिश्चित करना और पारदर्शी प्रशासन के लिए ‘परफोर्म, रिफोर्म एण्ड ट्रांसफोर्म’ का सिद्धांत लागू करना शामिल है।
गत दिनों भजनलाल सरकार की ‘राइजिंग राजस्थान इकोनोमिक समिट’ में लगभग 32 देशों के आर्थिक विशेषज्ञों और सरकारी प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस आयोजन में 35 लाख करोड़ रुपये के एमओयू (सहमति ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए गए। इस समिट में 13 देशों ने राजस्थान को पार्टनर के रूप में चुना, जिनमें जापान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, रूस, जर्मनी, पोलैंड, सिंगापुर और स्पेन प्रमुख हैं।
प्रधानमंत्री ने उद्घाटन भाषण में कहा कि राज्य न केवल उभर रहा है, बल्कि विश्वसनीय और सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला भी है। उन्होंने यह भी बताया कि राजस्थान एमएसएमई सेक्टर में भारत के शीर्ष 5 राज्यों में शामिल है, जहां 27 लाख से ज्यादा छोटे उद्योग और 50 लाख से अधिक श्रमिक कार्यरत हैं। इसके अलावा, राज्य इस दशक के अंत तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके साथ ही, नए उद्योग लगाने के लिये आश्वस्त किया कि राज्य में वन विंडो और अत्यंत पारदर्शी माहौल है।
सरकार ने नौ नई पॉलिसियों के माध्यम से निवेशकों को विश्वास दिलाया है कि एमएसएमई, कलस्टर डेवलपमेंट, क्लीन एनर्जी, एक जिला एक उत्पाद, निर्यात प्रोत्साहन, पर्यटन, खनिज, एम-सैंड और एवीजीसी एक्सआर जैसे क्षेत्रों में व्यापार में कोई रुकावट नहीं आएगी। फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में भीलवाड़ा में मक्का हब, बाड़मेर में इसबगोल और झालावाड़ में सोयाबीन अग्रणी उत्पाद बनने की संभावना है, यदि सही निवेश आता है। राजस्थान देश में सरसों की 50 प्रतिशत पैदावार करता है और टोंक जिला सालाना लगभग 6,000 करोड़ रुपये का तेल निर्यात करता है। अगर केंद्र और राज्य सरकार सरसों पर लगने वाला टैक्स हटा दें, तो उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर खाद्य तेल मिल सकता है। इसके साथ ही, प्रवासी राजस्थानी उद्योगपतियों के कारोबार में परेशानी नहीं आए इसलिये राज्य सरकार ने एक ‘प्रवासी विभाग’ (मंत्रालय स्तर का) गठन की भी घोषणा की।
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समय जो रिसर्जेंट राजस्थान-2015 में लगभग 3.37 लाख करोड़ के जो 470-एमओयू हुए, उनमें से केवल 33,000 करोड़ ही धरातल पर उतरे। इसी तरह गहलोत सरकार के चौथे साल में जो इन्वेस्ट मीट 12.53 लाख करोड़ के एमओयू में से लगभग 26000 करोड़ के ही निवेश हुए। राजस्थान ही नहीं, अन्य राज्यों उ.प्र., मध्य प्रदेश, गुजरात में हुए इकोनोमिक समिट में 2 से 10 प्रतिशत निवेश हुआ है। इनके आयोजन पर कितना अधिकाधिक खर्च होता है, उसका सही हिसाब किसी सरकार ने नहीं किया।
इसमें कोई दो राय नहीं कि राज्य में 8-9 माह की भयंकर गर्मियों में पानी और बिजली का संकट रहता है। पावरकट की मार उद्योगों को अधिक झेलनी पड़ती है। जमीनी जल उपलब्धता के साथ डार्क जोन बहुत हैं। शहरों के बीच सड़क और रेल मार्ग की दूरी अधिक है। पूर्वी राजस्थान में जयपुर, अलवर और एनसीआर में पहले से ही निवेश हो चुका है, क्योंकि वहां रीको का नीमराना और हरियाणा सीमा पर अच्छा प्रभुत्व है। पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर और बाड़मेर में सोलर ऊर्जा का इतना विस्तार हो चुका है कि वहां गोडावन और पक्षियों का जीवन खतरे में है। खनन और खनिज सेक्टर (बीकानेर, सिरोही, जालोर, जोधपुर और कोटा) में और अधिक संभावनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की बार-बार की रोक के कारण संकट बना रहता है। राज्य के बड़े शहरों के बीच एयर कनेक्टिविटी बहुत कम उपलब्ध है, जो विदेशी निवेशकों के लिए एक बड़ी अड़चन है।
पर्यटन स्थलों पर अव्यवस्थित गतिविधियाें को कोई सरकार सही नहीं कर पाई है। इंटरनेट पर पर्यटन और वन्यजीव सफारी के लिंक राज्य सरकार के आईटी सेल को फेल कर रहे हैं। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने वाली पैलेस ऑन व्हील्स की आमदनी भी कमजोर हो गई है। राज्य में जयपुर में संचालित अधूरी मेट्रो ट्रेन अब तक लचर है।
राज्य के कांग्रेस प्रमुख का मानना है कि इन एमओयू में से वही धरातल पर साकार होते हैं, जिन्हें राज्य सरकार मुफ्त में जमीन देती है। इसके अलावा, नौकरशाही की कार्यप्रणाली और पाबंदियां नए निवेश पर बहुत असर डालती हैं। अगर ये बाधाएं दूर हो जाएं तो औद्योगिक विकास को बढ़ावा देकर राज्य सरकार रोजगार उपलब्ध करा सकती है, गरीबी कम कर सकती है और जीवन स्तर को सुधार सकती है। वरना मरुस्थल का सूखा और प्यास इसी तरह बने रहेंगे।