मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

भगवान विष्णु के उद्धारक अवतार की महिमा

11:27 AM Sep 02, 2024 IST

चेतनादित्य आलोक

सनातन धर्म में भाद्रपद यानी भादो महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रत्येक वर्ष वराह जयंती का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार वराह जयंती 6 सितंबर को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीहरि विष्णु ने कुल 24 अवतारों में से अपना तीसरा अवतार सतयुग में इसी दिन वराह रूप में ग्रहण करने के बाद हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया था। अपने वराह अवतार में भगवान श्रीहरि विष्णु ने मानव का शरीर और वराह यानी शुकर का मुख धारण कर अपनी करुणा एवं कृपा का विस्तार करने के उद्देश्य से पहली बार धरती पर अपने पग रखे और इस धरा पर अपनी लीलाएं आरंभ की थीं।

Advertisement

अवतार की महत्वता

गौरतलब है कि पृथ्वी का उद्धार करने के कारण भगवान श्रीहरि विष्णु के वराह अवतार को ‘उद्धारक देवता’ के रूप में भी जाना जाता है। स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक आतंक का पर्याय बन चुके हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी की रक्षा तथा तीनों लोकों में शांति स्थापित करने के कारण भगवान श्रीविष्णु के वराह स्वरूप की पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन निर्मल मन और लगन से उनकी पूजा-आराधना करने वाले मनुष्य के पापों और नकारात्मकताओं का नाश होता है।
देश के कुछ विशेष मंदिरों में इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के वराह स्वरूप के दर्शनार्थ भक्तों की बड़ी भीड़ लगी रहती है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्थित ‘भुवराह स्वामी मंदिर’ ऐसा ही एक मंदिर है, जिसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। वराह जयंती के अवसर पर इस मंदिर में नारियल के पानी से स्नान कराने के बाद भगवान वराह की मूर्ति की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। मध्य प्रदेश के छतरपुर में 11वीं शताब्दी में निर्मित एक पुराना मंदिर ‘वराह मंदिर खजुराहो’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को यूनेस्को की ओर से ‘भारत का धरोहर क्षेत्र’ घोषित किया जा चुका है। वराह जयंती पर यहां भव्य आयोजन किया जाता है। इसी प्रकार मथुरा में भी भगवान वराह का एक बहुत पुराना मंदिर है, जहां वराह जयंती अत्यधिक भव्य रूप से मनाई जाती है।

पूजा प्रक्रिया

प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर वराह भगवान की मूर्ति या प्रतिमा का गंगाजल से स्नान कराएं। पूजा के बाद भगवान के अवतार की कथा सुनें। अंत में भगवान की आरती करें। इस अवसर पर ‘वराह स्त्रोत’ और ‘वराह कवच’ का पाठ करना तथा जप करना उत्तम फलदाई माना जाता है। वराह जयंती के अवसर पर भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन, उपवास एवं व्रत आदि करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

Advertisement

पद्मपुराण की कथा

पद्मपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, सतयुग में ब्रह्मा देव की कठोर तपस्या से असीम शक्तियां अर्जित करने वाले अत्यंत ही क्रूर एवं बलशाली दैत्य हिरण्याक्ष के आतंक से समस्त देवी-देवता एवं पृथ्वीवासी पीड़ित हो त्राहि-त्राहि कर रहे थे। हिरण्याक्ष ने अपनी अपार शक्तियों के बल पर स्वर्गाधिपति देवराज इंद्र समेत अन्य देवताओं को पराजित करने के बाद स्वर्ग तथा संपूर्ण पृथ्वी पर कब्जा जमा लिया था। शक्ति, मद एवं अहंकार में चूर महाबली दैत्य हिरण्याक्ष ने अपनी भुजाओं से पर्वत, समुद्र, द्वीप और सभी प्राणियों को रसातल पहुंचा दिया। बाद में पृथ्वी को उबारने के लिए और हिरण्याक्ष के पापों से सभी को मुक्ति दिलाने हेतु भगवान श्रीहरि विष्णु ने वराह अवतार लिया था। भगवान वराह ने पलक झपकते ही पर्वताकार रूप धारण कर लिया, जिसे देखकर सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। तत्पश्चात भगवान वराह और हिरण्याक्ष दैत्य के बीच भीषण युद्ध हुआ। भगवान ने सुदर्शन चक्र से उस अधम दैत्य का वध किया और तीनों लोकों को भयमुक्त एवं शांतियुक्त किया था।

Advertisement