छोटे हाइकु में बड़े मानस की खुशबू
अरुण नैथानी
निस्संदेह, यह सृजन का अभिनव प्रयोग ही कहा जाएगा कि आकार की दृष्टि से सबसे छोटी कविता मानी जाने वाली हाइकु में संपूर्ण रामकथा को सफलता से उकेर दिया जाए। इसमें दो राय नहीं कि रामचरितमानस का फलक व्यापक है, जिसे सत्रह अक्षर की तीन पंक्तियों में अभिव्यक्त करना और अधिक कठिन कार्य है। और ये काम किया एक गुमनाम से हाइकुकार राधेश्याम ने। वह भी आजकल नहीं जब राजाश्रय में श्रीराम से जुड़े सृजन की होड़ है। राधेश्याम जी ने ये दुष्कर जैसे लगने वाला कार्य आज से चालीस साल पहले किया। वे इसे पुस्तक रूप देने की लालसा मन में लिये परलोक सिधार गए। कालांतर उनके पुत्र रमाकांत ने इन हाइकुओं को तलाशा, कंपोज करवाया और फिर संपादित करके प्रकाशित करवाया। अन्यथा साहित्य संसार एक अभिनव प्रयोग के रूप में रची गई रचना से वंचित हो जाता। वैसे तो हाइकु में राधेश्याम जी की कई किताबें हैं और उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी व उर्दू में हाइकु लिखे हैं, लेकिन समीक्ष्य कृति को उन्होंने अवधी में रचा है।
दरअसल, हाइकु रामायण को रचनाकार राधेश्याम ने सात खंडों में विभाजित किया है। रामचरित मानस की ही तरह बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड। संपादक ने नई पीढ़ी के पाठकों के लिये आठवें खंड में तत्सम शब्दों के अर्थ लिखे हैं। यूं तो रामकथा पर सैकड़ों ग्रंथ लिखे जा चुके हैं, लेकिन सहजता-सरलता की दृष्टि से अवधी में रचा यह ग्रंथ निस्संदेह, श्रमसाध्य सृजन है।
वैसे जापानी काव्य विधा हाइकु को भारत में सींचने का श्रेय गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर और अज्ञेय को जाता है। ऐसे में विदेश में जन्मी विधा में, भारत के जन-जन के मन में हजारों वर्षों से समायी व्यापक फलक वाली रामकथा को उकेरना निश्चय ही कठिन कार्य था। वाकई, लीक तोड़ती एक मौलिक रचना का सृजन हुआ। जिसे राधेश्याम जी ने निरंतर साधना के जरिये पूर्णता प्रदान की। कह सकते हैं, वे हजारों वर्षों से जन-जन के हृदय में विराजित श्रीराम की लोकरंजिनी छवि रचना में उभारने में सफल हुए हैं।
बहरहाल, सत्रह वर्णों की छोटी कविता के जरिये रचनाकार ने गहन अभिव्यक्ति दी है। जो उनके जैसे सिद्धहस्त हाइकुकार के लिये ही संभव था। रामचरितमानस की तरह सात कांडों के जरिये अवधी में रची कृति के मूल में निस्संदेह, तुलसी की प्रेरणा भी है।
पुस्तक : श्री हाइकु रामायण रचनाकार : राधेश्याम संपादक : रमाकांत प्रकाशक : साइबरविट.नेट, इलाहाबाद पृष्ठ : 574 मूल्य : रु.1000.