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गारंटी बांटने वालों की हिलती चूलें

06:39 AM Jun 08, 2024 IST
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सहीराम

बताओ इतनी गारंटियां थीं जी, लेकिन सरकार बनने वाली गारंटी पर ही आशंकाएं मंडराने लगीं। जबकि सबसे पक्की गारंटी तो वही होनी चाहिए थी। वैसे दावा तो मोदीजी का ही था, फिर भी आशंकाओं के बादल मंडराने लगे थे कि पता नहीं जी, सरकार इनकी बनेगी कि उनकी बनेगी। लोग कह रहे थे कोई गारंटी नहीं जी। इनकी तो बन ही जाएगी, पर क्या पता उनकी भी बन जाए। लेकिन अब गारंटी हो गयी है। यह मान लेना चाहिए कि चलो एक गारंटी तो पक्की हुई। वैसे तो गारंटी का मतलब ही पक्का होना है, फिर भी राजनीति का मामला है भई। यहां किसी चीज की कोई गारंटी नहीं।
बहरहाल जी, यह गारंटी न मोदीजी ने दी और न ही राहुलजी ने दी, जो अब तक गारंटियां ही गारंटियां दे रहे थे। यह गारंटी तो इधर नीतीशजी ने दी है और उधर चंद्रबाबू नायडू ने दी। जबकि सच्चाई यह है कि इन दोनों की कोई गारंटी नहीं ले सकता है। सभी का यही मानना है कि नीतीशजी की पलटने की तो गारंटी ली जा सकती है, लेकिन न पलटने की गारंटी नहीं ले सकते जी। नायडूजी को भी लोग नीतीशजी का दक्षिणी संस्करण ही मानते हैं। लेकिन अच्छी बात यही है कि अभी तो उन्होंने गारंटी ले ली है। कल की कल देखी जाएगी। वैसे भी कल किसने देखा है?
ज्ञानी लोग मानते हैं कि राजनीति में कुछ भी करो, पर गारंटी मत करो। हां, वादे कर लो, वादे ठीक हैं। बाद में उन्हें जुमला करार दिया जा सकता है। लेकिन गारंटी को जुमला करार नहीं दिया जा सकता। सारी मार्केट बैठ जाएगी साहब। नहीं-नहीं हम शेयर मार्केट की बात नहीं कर रहे। शेयर मार्केट तो नाम ही चंचलता का है, उछल-कूद का है। उस जैसी चंचलता तो शरारती से शरारती बच्चे में भी न होती। तो उसकी गारंटी तो कोई नहीं ले सकता जी। इधर सुना है एक्जिट पोल वालों ने अपने सर्वे की गारंटियां ले-लेकर निवेशकों को डुबो दिया।
दरअसल, मजबूत सरकार की सबसे ज्यादा जरूरत शेयर मार्केट को ही पड़ती है। सरकार में जरा-सी कमजोरी नजर आयी कि शेयर बाजार लड़खड़ाने लगता है। किसान को क्या फर्क पड़ रहा है जी। सरकार मजबूत हो या कमजोर हो। उसकी फसल को तो मंडी में पिटना ही है। मजबूत सरकार होगी तो फिर वह न जाने क्या कानून ले आए कि फिर कहीं उन्हें आंदोलन ही न करना पड़े। मजदूर को भी क्या फर्क पड़ रहा है। दिहाड़ी न मजबूत सरकार देने वाली, न कमजोर सरकार। बेरोजगार बच्चों को तो बेरोजगार ही रहना है। सरकार चाहे मजबूत हो या कमजोर। पर खैर, यह तो मसला ही दूसरा है। असली बात यह है कि सरकार बनने की गारंटी हो गयी। पर विघ्नसंतोषी कह रहे हैं कि पांच साल की कतई नहीं।

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