मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

सोचते हैं पिता

06:30 AM Apr 28, 2024 IST

सुभाष रस्तोगी
बिटिया को
विदा करने के बाद पिता सोचते हैं
अब कौन डांटेगा उन्हें मां की तरह
वक्त-बेवक्त घर लौटने पर
खेमे—
मेले के तो उखड़ गए कभी के
बंधु-बांधव भी चले गए
बेटा भी लौट जाएगा
शाम की गाड़ी से
अब उन्हें ही व्यवस्थित करना है
अस्त-व्यस्त हो गए घर को
लेकिन उदासी में डूबी हवा तो
सन्नाटा बांचती फिरती है
किससे बोलें/बतियायें किससे
दीवारों पर—
बिटिया की बनाई अल्पनाएं
सतिए गेरु के कहीं सोने देंगे रातों को
हो गए हैं—
अनन्त दृश्य जैसे गडमड
बिटिया का पहली बार
घुटरियां चलना
पूरा दिन घर को
सिर पर उठाए घूमना
पल में रूठना पल में मनना
रब्बा खैर करना
कभी लगे न गर्म हवा
बिटिया को!
शाम को घर लौटने पर
अब कौन देगा
धुला हुआ कुर्ता पायजामा
भिनसारे में दातोन
किससे पूछूंगा मैं अब
पानदान कहां रखा है!

Advertisement

गूंगे का गुड़

जब नहीं जानता था कुछ
मैं चुप रहता था
जब जाना कुछ
चिल्ला-चिल्ला कर कहता था
अब सब कुछ जान गया जब तो
फिर से हरदम चुप रहता हूं
जिस जगह से चला था, फिर से
अब उसी जगह जा पहुंचा हूं
कहते हैं शायद इसीलिये
होते हैं एक सरीखे बच्चे और बूढ़े
सबको लगता मैं लौट के बुद्धू घर आया!
अधजल थी जब तक
गागर खूब छलकती थी
अब भरी हुई है उसी तरह से शांत
कि जैसे खाली हो
दिखते समान हैं दोनों
कौन बताये क्या है फर्क
कि गूंगा तो गुड़ खाकर भी
बस चुप ही रहता है!
- हेमधर शर्मा

Advertisement
Advertisement