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पाकिस्तान में लोकतंत्र का प्रहसन

07:38 AM Mar 07, 2024 IST
पाकिस्तान में लोकतंत्र का प्रहसन
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जी. पार्थसारथी

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पाकिस्तान में नागरिक पिछले कुछ महीनों से चुनावी माहौल में रमे हुए थे और चाहवान थे कि चुनाव प्रक्रिया मुक्त, ईमानदार और लोकतांत्रिक ढंग से हो। लेकिन जल्द ही साफ हो गया और जो कुछ उन्हें देखने को मिला वह इस कल्पना जैसा नहीं था। यह तो बल्कि वह नाटक था जिसकी पटकथाएं सेनाध्यक्ष जनरल सईद असीम मुनीर ने लिखी थीं। सेनाध्यक्ष बनने से पहले मुनीर का कार्यकाल काफी तनातनीभरा रहा। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को मुनीर सुहाते नहीं थे, उन्होंने तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा द्वारा मुनीर को आईएसआई मुखिया बनाए जाने वाले आदेश को निरस्त कर अपने चेहते को पद पर बैठा दिया था। तत्पश्चात, निर्वाचित सरकार को गिराने की जो ताकत पाकिस्तानी सेना के हाथ में सदा से रही है, जनरल बाजवा ने उसका इस्तेमाल करते हुए इमरान की जबरन विदाई यकीनी बना दी।
पाकिस्तान में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जिन्हें विश्वास है कि इमरान खान की विदाई के पीछे अमेरिकी साजिश थी। अमेरिका और जनरल बाजवा की यारी सुविख्यात है, अमेरिका के कहने पर उन्होंने यूक्रेन की जेलेंस्की सरकार को 900 मिलियन डॉलर मूल्य के हथियार और गोला-बारूद पहुंचाने में मदद की। हालांकि, यहां मानना पड़ेगा कि भारत के मामले में उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के मुकाबले समझदारी भरा और सकारात्मक रुख बनाए रखा। जाहिर है, और यह ठीक भी है, उन्हें इल्म था कि भारत से तनाव में बढ़ोतरी का असर उल्टा पाकिस्तान पर अधिक होगा। हालांकि यह बात उनके द्वारा नियुक्त और जानशीन जनरल असीम मुनीर के बारे में नहीं कही जा सकती।
दरअसल, उनकी सेवानिवृत्ति उपरांत पाकिस्तान अपनी बनाई मुश्किलों में फंसता गया, इसमें एक वजह हालिया चुनाव में गलत आचरण और जानबूझकर की गई हेराफेरी भी है। लोकतांत्रिक रिवायतों को पूरी तरह छींके पर टांग देने वाले इस अभियान की अगुवाई जनरल मुनीर और उनकी सेना ने की। लोकतंत्र का हनन करने वालों के सम्मुख खड़े होने वाले हिम्मतियों का साथ देने की बजाय पाकिस्तान की न्यायपालिका, नौकरशाही, सिविल सोसायटियों ने शुतुर्मुगी रवैया अपनाए रखा। पाकिस्तान के संविधान को नीचा दिखाने के कृत्य में वे भी शामिल हो गए। जनरल मुनीर के नेतृत्व में रीढ़विहीन बना सिविल प्रशासन और पुलिस तंत्र चुनाव प्रक्रिया में हेराफेरी करने में भागीदार बन गया। यह भांपकर कि मतदान में घपलेबाजी होगी, इमरान खान ने अपने समर्थकों से आह्वान किया कि मतदान संबंधी अड़चनों का सामना करें और खुलकर वोट डालें।
सेना की इन हरकतों का यदि कोई राजनीतिक दल गंभीर रूप से विरोध कर रहा था तो वह थी इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी। अन्य मुख्य राजनीतिक दल तो सेना के आगे बिछ गए और इसके सहयोग से अपने-अपने गढ़ में अच्छी जीत हासिल कर पाए। हालांकि कलई खुलने पर, कई मौकों पर सेना को नामोशी झेलनी पड़ी है। यद्यपि इमरान खान ने प्रतिबंधों का तोड़ पहले से तैयार रखा था और अपने उम्मीदवार बतौर आजाद प्रत्याशी खड़े किए, उनके 93 बंदे सांसद चुने गए हैं। जबकि नवाज़ शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग के 75 तो भुट्टो-ज़रदारी परिवार के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के 54 सांसद चुनकर आए हैं। लेकिन जिस भौंडे ढंग से पाकिस्तान के संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हनन हुआ है, उससे दुनिया और लगभग समूचे पाकिस्तानी अवाम की नज़र में सेना की छवि खराब हुई है। इसी बीच सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने बयान दागा ः ‘जब भारत को पाकिस्तान का वजूद गवारा नहीं, तो हमें उसका कैसे हो?’
दुनिया के लिए यह देखना एक झटका था कि किस ढिठाई और गैर-कानूनी ढंग से जनरल मुनीर ने पाकिस्तान के संविधान, चुनाव प्रक्रिया का अपहरण कर लिया। तथापि, जैसा कि अपेक्षित था, सेना ने शरीफ़ बंधुओं और भुट्टो परिवार और कुछ छोटे दलों को एकजुट करवाया। यह करना इमरान खान की हार और उन्हें सलाखों के पीछे बनाए रखने के लिए जरूरी था। इमरान खान द्वारा हालिया चुनाव में धांधली के आरोपों से पाकिस्तानी सरकार साफ इनकार करती है। हाल ही में रावलपिंडी के कमिश्नर ऑफ कैपिटल लियाकत अली चट्ठा ने स्वीकारोक्ति की है कि उनकी मौजूदगी में 8 फरवरी के चुनाव में हेराफेरी हुई है, और उन्होंने अपना इस्तीफा देने की पेशकश की। हालांकि, उन्हें अपना उक्त इकबालिया बयान और इस्तीफा वापस लेने के लिए मजबूर किया गया। एक मर्तबा मेरे पाकिस्तानी दोस्त ने कहा था ः ‘कोई अचरज नहीं कि दुनिया के हर देश के पास सेना है, लेकिन पाकिस्तान में सेना के पास देश है।’
हालांकि, पश्चिमी मुल्क जैसे कि अमेरिका और यूके इस पसोपेश में हैं कि खुद को इस विवाद से कैसे दूर रखें परंतु यदि इमरान खान जेल में रहते हैं तो भी उनकी नींद उड़ने से रही। जहां अमेरिका में पाकिस्तान में हुए छद्म चुनाव को लेकर सवाल उठे हैं वहीं पाकिस्तानी मीडिया में भी चुनाव में धांधली पर तीखी आलोचना देखने को मिली। सेना की मेहरबानी से शरीफ़ और भुट्टो परिवार का चुनावी प्रदर्शन अच्छा रहा और अब वे मिलकर सत्ता की बंदरबांट कर रहे हैं। आसिफ अली ज़रदारी, जो बेनज़ीर भुट्टो का शौहर होने की वजह से मशहूर हुए, एक समय राष्ट्रपति रहे। हालांकि सवाल है कि उनके गर्ममिज़ाज पुत्र बिलावल भुट्टो ज़रदारी में क्या मां बेनज़ीर और नाना जुल्फिकार अली भुट्टो जितना राजनीतिक कौशल है? भारत से संबंधों के बारे में उनके बोल आईएसआई मुखिया सरीखे हुआ करते हैं।
फिलहाल, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था रसातल में होने के अलावा, पड़ोसियों के साथ उसके रिश्ते बिगड़े हुए हैं। भारत के साथ संबंध पहले जैसी स्थिति में हैं तो अन्य पड़ोसियों से साथ चल रही तनातनी की वजह से ईरान और अफगानिस्तान के साथ मौजूदा रिश्तों को सामान्य नहीं कहा जा सकता। पाकिस्तान का आरोप है कि डूरंड रेखा पार करके आने वाले अफगान तालिबान आतंकी गुट जैसे कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूचिस्तान में ईरान की सीमा से घुसकर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी आतंकी कार्रवाइयां कर रहे हैं। ईरानी वायुसेना द्वारा 16 जनवरी को पाकिस्तानी सीमा के अंदर किए हमले और पाकिस्तानी लड़ाकू जहाजों की बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में की गई जवाबी कार्रवाई जैसे प्रसंग घटे हैं। फिलहाल पाकिस्तान का अपने तीन पड़ोसी मुल्कों, भारत-ईरान-अफगानिस्तान, की सीमाओं पर तनाव व्याप्त है।

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

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