For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

हादसों की हद

06:52 AM Jun 01, 2024 IST
हादसों की हद
Advertisement

एक बार फिर वीरवार को जम्मू-कश्मीर में श्रद्धालुओं से भरी बस खाई में गिर गई। इसमें बाईस लोगों की मौत हो गई और 57 घायल हो गए। डेढ़ सौ फुट गहरी खाई में बस गिरने से राहत-बचाव कार्य में बाधा आई। इतनी गहराई में बस गिरने से यात्रियों के पीड़ा व कष्ट का अहसास किया जा सकता है। ऐसे छोटे-बड़े हादसों में निर्दोष लोगों की मौत की खबरें रोज अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस से आ रही बस तेज गति के चलते एक कार को बचाने के प्रयास में एक तीव्र मोड़ पर अनियंत्रित होकर खाई में जा गिरी। कतिपय सूचना माध्यमों में चालक को नींद आने की बात भी कही गई। निस्संदेह, ऐसी बड़ी दुर्घटनाओं के मूल में मानवीय लापरवाही ही होती है। यह विचारणीय तथ्य है कि मैदानी इलाकों से जटिल पर्वतीय मार्गों पर बस ले जाने वाले चालकों को क्या पहाड़ी रास्तों पर बस चलाने का पर्याप्त अनुभव होता है? जो तीखे मोड़ पर वाहन को नियंत्रित कर सकें। दरअसल, जटिल भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पहाड़ी इलाकों में होने वाली दुर्घटनाओं में मानवीय क्षति ज्यादा होती है। वजह साफ है कि गहरी खाई बचने के मौके कम ही देती हैं। यह विडंबना है कि बड़े हादसों के बाद शासन-प्रशासन की तरफ से मुआवजे व संवेदना का सिलसिला तो चलता है लेकिन हादसों के कारणों की तह तक नहीं जाया जाता। यदि हादसों के कारणों की वास्तविक वजह सार्वजनिक विमर्श में आए तो उससे सबक लेकर सैकड़ों लोगों की जान बचायी जा सकती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत हो जाती है। वहीं करीब साढ़े चार लाख लोग इन दुर्घटनाओं में घायल हो जाते हैं। इनमें कई लोग तो जीवन भर के लिये विकलांगता का शिकार हो जाते हैं।
भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों का आंकड़ा पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर है। लेकिन इसके बावजूद पूरे देश में नीति-नियंताओं की तरफ से बेमौत मरते लोगों का जीवन बचाने की ईमानदार पहल नहीं होती। हाल के वर्षों में देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार हुआ। सड़कें चौड़ी और सुविधाजनक हुई। लेकिन रफ्तार का बढ़ना जानलेवा साबित हो रहा है। कहीं–कहीं सड़क निर्माण तकनीकी में चूक भी हादसों की वजह बनने की खबरें आई हैं। वहीं बड़ी संख्या में हादसों की वजह अनियंत्रित रफ्तार, यातायात नियमों का उल्लंघन तथा शराब पीकर वाहन चलाना रहा है। यदि दुर्घटनाओं के कारणों में विस्तार से जाएं तो वाहन चलाने के अनुभव के बिना ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना व ट्रक चालकों की आंखों की नियमित जांच न होना भी सामने आता है। दरअसल, वाहनों की फिटनेस, सार्वजनिक वाहन चालकों के स्वास्थ्य की नियमित जांच तथा निर्धारित समय तक ही वाहन चलाने की अवधि भी तय की जानी चाहिए। कई सर्वेक्षण बताते हैं कि चालक की नींद पूरी न होने और उसे पर्याप्त आराम न मिलने से हादसा हुआ। चिंता की बात यह भी है कि लोग रात में सफर करना सुविधाजनक मानने लगे हैं। जबकि रात को वाहन चलाना कई मायनों में असुरक्षित होता है और किसी हादसे के बाद पर्याप्त सहायता व उपचार न मिलना जानलेवा साबित हो सकता है। इन दुर्घटनाओं का दुखद पहलू यह है कि मरने वाले में अधिकांश युवा व परिवार के कमाने वाले सदस्य होते हैं। हादसे के बाद पूरा परिवार गरीबी के दलदल में चला जाता है। यह राष्ट्र की बड़ी आर्थिक क्षति होती है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि यदि भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या रोकी जा सके तो देश के सकल घरेलू उत्पाद में तीन फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है। नीति-नियंताओं को इस बात पर भी विचार करना होगा कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में वाहन कम होने के बावजूद सड़क दुर्घटनाएं इतनी बड़ी संख्या में क्यों होती हैं?

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
×