अपनी दुर्गति देख ड्रोन भी हुआ मौन
आलोक पुराणिक
चालू विश्वविद्यालय ने हाल में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है। निबंध का विषय था—ड्रोन की संक्षिप्त आत्मकथा :-
जी मैं ड्रोन हूं। बहुत उच्चस्तरीय तकनीकी आइटम माना जाता है मुझे, पर भारत में आकर मुझे पता लग गया कि तकनीक चाहे जैसी हो, भारत में जिस तरह के कामों में लगायी जाती है, उन्हें उच्च-स्तरीय नहीं माना जा सकता।
मुझ ड्रोन को यूक्रेन में युद्ध के काम में लगाया जाता है। पर भारत में मुझे ऐसे कामों में लगाया जाता है, जिन्हें देखकर मुझे पता नहीं लगता है कि मेरी इज्जत बढ़ाई जा रही है, या इज्जत कम की जा रही है।
दंगाई इलाकों में पुलिस मेरा इस्तेमाल करती है। मैं छतों पर मंडराता हूं, और देखता हूं कि दंगाइयों ने छत पर पत्थर जमा कर रखे हैं। मैं आसमान से उड़ता हुआ, जुआरियों की भी फोटू खींचता हूं। फिर थानेदार इन जुआरियों की धरपकड़ करते हैं। ड्रोन जुआरियों की फोटू खींचेंगे, यह इस्तेमाल तो ड्रोन के आविष्कारकों ने नहीं सोचा होगा। पर सोचने या न सोचने से क्या होता है।
होता वही है, जो मंजूर–ए-यूजर होता है।
मेरा इस्तेमाल शादियों में होता है। भारतीय शादियों में हर नये आइटम को हैसियत-स्टेटस के हिसाब से शादियों में जोड़ देते हैं। शादियों में अभी देखा कि एक धनपति ने अपनी बेटी की शादी के ठिकाने पर एक राकेट रख दिया। राकेट दे पायें या नहीं, यह जरूरी है, राकेट देने की हैसियत है, इतना भर बता दिया जाये, तो जलवा कायम हो जाता है। ड्रोन भी भारतीय शादियों में जाने लगे हैं, ऊपर से घूं-घूं करते हुए फोटू वगैरह खींचते हैं।
अभी हाल के ड्रोन की ड्यूटी टिड्डियों की निगरानी में लगा दी गयी। सोचिये, जो ड्रोन वीआईपी शादियों में ऊपर से फोटू खींचता था, वही ड्रोन अब टिड्डियों के फोटू खींच रहा है। ड्रोनों की इस गति को क्या कहें, दुर्गति, या सद्गति। वक्त पेचीदा है।
अभी कुछ ड्रोनों की ड्यूटी लगा दी गयी है कि शहर में सूअरों की संख्या गिनो, ड्रोन अब पूरे शहर में उड़ते हुए घूमते रहते हैं और गिनते रहते हैं कि शहर में कितने सूअर हैं। कहीं और से खबर आई है कि उस शहर नगर निगम ड्रोन उड़वा रहा है और ड्रोन शहरों के बंदरों की गिनती कर रहा है ऊपर से उड़ते हुए।
खैर जी, हम तो ड्रोन रोज खुद को समझाते हैं-जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये।