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टूटता यमुना को स्वच्छ बनाने का सपना

07:09 AM Sep 21, 2024 IST

ज्ञानेन्द्र रावत

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आज यमुना की स्थिति की किसी को चिंता नहीं है—न आम आदमी पार्टी, न भाजपा, और न ही कांग्रेस को। सभी दल हरियाणा चुनाव में सत्ता हासिल करने की दौड़ में लगे हैं, लेकिन यमुना के प्रदूषण पर कोई चर्चा नहीं कर रहा। दिल्ली-हरियाणा की जीवनदायिनी यमुना की स्थिति बेहद चिंताजनक है; वह ज़हरीली हो चुकी है। इसके पानी में लेड, कॉपर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे हानिकारक तत्व मौजूद हैं। रसायनों के कारण बजबजाते झाग को रोकने के लिए प्रभावित सीवेज ट्रीटमेंट की जरूरत है। फिर भी, इस चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने यमुना के उद्धार के लिए कोई चिंता नहीं जताई। उनकी प्राथमिकता केवल हरियाणा में सत्ता हासिल करना है।
दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी के संयोजक, पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, विधानसभा चुनावों से पहले यह कहते थे कि यमुना शुद्ध होने पर वह पहले स्नान करेंगे। लेकिन उनकी यह घोषणा अब तक केवल एक वादा ही साबित हुई है। पांच वर्षों के बाद भी यमुना की स्थिति पहले से अधिक खराब है, और यह अपने उद्धारक की प्रतीक्षा कर रही है।
बीते दशकों का इतिहास बताता है कि यमुना हर साल अधिक प्रदूषित होती गई है, और अब इसका जल गंभीर जानलेवा बीमारियों का कारण बन चुका है। बारिश के मौसम को छोड़ दें, तो दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार, यमुना के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जल प्रवाह 23 घन मीटर प्रति सेकंड क्यूमैक्स कम है। यह जल प्रवाह न तो स्नान योग्य है और न ही नदी की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पर्याप्त।
दीगर बात है कि जल संसाधन संबंधी एक संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि दिल्ली में यमुना के 22 किलोमीटर लंबे हिस्से में 23 घन मीटर प्रति सेकंड का ई-फ्लो रखा जाए। हालांकि, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) का कहना है कि 23 क्यूमैक्स का ई-फ्लो जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) को 12 मिलीग्राम प्रति लीटर तक घटा देगा। बीओडी वह ऑक्सीजन है जिसे सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए उपयोग करते हैं।यह जानना जरूरी है कि यमुना के दिल्ली में पड़ने वाले हिस्से के लिए लगभग 80 प्रतिशत प्रदूषण जिम्मेदार है। ई-फ्लो जल प्रवाह की वह न्यूनतम मात्रा है, जो नदी या जलाशय की पारिस्थितिकी को बनाए रखने और उसे स्नान योग्य बनाने के लिए आवश्यक है।
हकीकत यह है कि आमतौर पर हरियाणा के यमुना नगर स्थित हथिनी कुंड बैराज से मात्र 10 क्यूमैक्स पानी छोड़ा जाता है। जबकि 23 क्यूमैक्स पानी यानी 43.7 करोड़ गैलन रोजाना अक्तूबर से जून के महीने के दौरान नदी में छोड़ा जाना चाहिए। यह सिफारिश राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की ने 2019 में ही कर दी थी।
लोकसभा की स्थायी समिति द्वारा यमुना पर तैयार रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि यमुना के जल में भारी धातु के प्रदूषक तत्वों की भरमार है, जो जानलेवा बीमारियों का कारण बन रहे हैं। समिति ने न केवल यमुना में पाए जाने वाले बीओडी, सीओडी और फीकल कोलीफार्म जैसे प्रदूषक तत्वों की सूची तैयार की है, बल्कि लेड, कॉपर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक छह धातुओं से होने वाले नुकसान की जानकारी भी दी है। यह रिपोर्ट यमुना के संकट को उजागर करती है और उसके प्रदूषण की गंभीरता को रेखांकित करती है। समिति ने यमुना में झाग बनने से रोकने के लिए दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्रवाहित होने वाले समूचे सीवेज का प्रभावी ट्रीटमेंट करने की आवश्यकता बताई है। इसके अनुसार, झाग का मुख्य कारण बिना ट्रीटमेंट वाले सीवेज में सर्फेक्टेंट्स और फास्फेट की मौजूदगी है, जो त्वचा रोग और संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं। समिति ने सुझाव दिया है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) की तकनीक को उन्नत किया जाए, उनकी क्षमता बढ़ाई जाए, और सभी उद्योगों को साझा अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से जोड़ा जाए। इसके अतिरिक्त, जल संसाधन विभाग से यह भी कहा गया है कि ऐसे नियम और दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं, जिसमें यमुना सहित सभी नदियों में अपशिष्ट प्रवाहित करने पर दंडात्मक प्रावधान हों।
समिति ने पर्यावरण मंत्रालय की आलोचना की है कि उसने 2018 में की गई सिफारिशों पर कार्रवाई में देरी की। जल संसाधन विभाग को यमुना के लिए स्वच्छ गंगा मिशन की तर्ज पर एक कोष स्थापित करने का सुझाव दिया गया है, ताकि सफाई के लिए फंड की कमी न हो।
हालांकि, पिछले दो दशकों में करोड़ों रुपये यमुना की सफाई पर खर्च किए गए हैं, लेकिन इसके अमोनिया और बीओडी स्तर में कमी नहीं आई है। यमुना पहले से 20 गुना अधिक प्रदूषित हो चुकी है।
आज यमुना बदहाली में जीने को विवश है। इसका अहम कारण यमुना का वोट बैंक न होना है। यदि ऐसा होता, तो यमुना कब की शुद्ध, निर्मल, अविरल और सदानीरा बन चुकी होती। आज कालिंदी कुंज के पास यमुना की स्थिति भयावह है, जहां सफेद झागों से किनारा भरा है। सीवेज ट्रीटमेंट की क्षमता में कमी और नालों का सीधे नदी में गिरना इस स्थिति के मुख्य कारण हैं। यमुना का नाले के रूप में बहना अब उसकी नियति बन चुकी है, और उसकी शुद्धि की आशा, निराशा में बदल रही है। हरिद्वार और वाराणसी की तर्ज पर घाटों का सौंदर्यीकरण और धार्मिक आयोजनों से समस्या का समाधान नहीं होगा; यह केवल जनता को धोखा देने जैसा है।

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