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सदियों से जल रही है दिव्य ज्योति

06:34 AM Jun 24, 2024 IST

प्रभा पारीक
कामनाथ महादेव गुजरात राज्य के खेड़ा जिले के अंतर्गत अहमदाबाद हाईवे के नजदीक रढ़ू गांव जिसकी दक्षिण दिशा में वात्रक नदी का विस्तार है। वहीं पर पांच नदियों का संगम भी माना गया है। इस संगम स्थल वात्रक नदी के तट पर महादेव अर्थात‌् शिव की ज्योति स्थित है। माना जाता है कि जयसिंह भाई पटेल एक महादेव के सच्चे भक्त थे। कामनाथ महादेव के मंदिर की यह अखंड दिव्य ज्योति जयसिंह भाई पटेल द्वारा लाई गई थी। इस कामनाथ महादेव मंदिर का निर्माण 1445 में किया गया था। जयसिंह भाई पटेल का नियम था कि महादेव के दर्शन करें बिना चाय-पानी भी ग्रहण नहीं करते थे। उस समय गुजरात के इस रढ़ू गांव में यह मंदिर नहीं था इसलिए उन्हें वात्रक नदी पार करके दूसरे तट पर स्थित पुनज गांव में जाना पड़ता था। उन्होंने नियमित दर्शन करने का कठोर नियम ले रखा था।
संयोगवश एक बार वात्रक नदी में भयंकर बाढ़ आ गई। जयसिंह का नदी पार करके महादेव के दर्शन करना संभव नहीं था। नदी में बाढ़ का पानी सतत 8 दिनों तक बना रहा, इसलिए अपने नियम के अनुसार उन आठ दिनों तक उन्होंने उपवास किया और आठवें दिन रात होने पर उन्हें सपना आया। महादेव जी ने उसे उन्हें आदेश दिया कि ‘आज तुम यहां से एक घी का दीपक प्रज्वलित करके, अपने साथ मुझे ले जाना’।
दूसरे दिन जब सुबह उन्होंने सब लोगों के साथ इस विषय पर चर्चा की और सबकी सहमति से जयसिंह पटेल भाई एक दीपक की ज्योति लेकर कामनाथ महादेव को पुनज से सभी लोगों के साथ रढ़ू गांव ले आए। यह पवित्र मास श्रावण के कृष्ण पक्ष का बारहवां दिन था।

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पुनज गांव से रढ़ू तक की दूरी 8 किलोमीटर है। वह दीपक बरसात, हवा के होते हुए भी अखंड रहा और रढ़ू गांव तक पहुंच गया। गांव पहुंचकर जयसिंह भाई ने उसे दीपक के लिए एक छोटे चबूतरे का निर्माण किया और वर्ष 1445 में उसे चबूतरे पर इस दीपक को स्थापित किया गया। आज 629 वर्षों के पश्चात भी उस अखंड दीपक की ज्योत के लिए घी खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मंदिर में वर्षों से दो दीपक जल रहे हैं। उनकी ज्योति के लिए प्रतिदिन 2 से 4 किलो घी उपयोग होता है। भक्तों की श्रद्धा, भावना और आस्था के कारण यह सब संभव हो सका है। आज भ्ाी इस कामनाथ महादेव के प्रति लोगों की आस्था का प्रभाव सतत जारी है।
गुजरात के खेड़ा जिले के रढ़ू गांव के लोगों का आपस में अलिखित एक नियम था। जिसके अनुसार जिस घर में गाय, भैंस होती वह उसकी भैंस के दूध से निकलने वाले पहले बिलोने से घी बनाकर महादेव जी की इस ज्योत के लिए घी रखता। इस तरह श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धा-भक्ति का यह नियम यूं ही वर्षों से आज तक चलता आ रहा है। वर्तमान समय में मंदिर के अंदर 11000 से भी अधिक कलश घी के भरे हुए रखे हुए हैं। उस सुरक्षित, संचित घी को दीपक की ज्योति के लिए के ही उपयोग लिया जाता है इसके अलावा अन्य किसी उपयोग में नहीं लिया जाता। मंदिर के कमरों में 1200 मटके लकड़ी के स्टैंड पर रखे हुए हैं। घी को संचय करने के यह मटके खास तरह के होते हैं, जिनका निर्माण लिमड़ी गांव के पास एक खास स्थान पर किया जाता है। महादेव पर अटूट आस्था के चलते लोग मनोकामना मांगते हैं। वहीं भक्तों की कामना पूरी होने पर वे दर्शन करके कामनाथ महादेव को घी चढ़ाते हैं।
कामनाथ महादेव मंदिर में घी की इस तरह की सतत आवक को देखते हुए श्रावण मास में पूरे मासपर्यंत हवन यज्ञ किए जाते हैं। यज्ञ महीनेभर सुबह 6 से शाम 7 तक चलता रहता है। इस मंदिर का बड़ा विशाल दरवाजा स्वर्ण रंग से रंगा हुआ है। मंदिर का प्रांगण 12 कमरों में विभाजित है। सुबह-शाम मंदिर में हुए हवन की भस्म महादेव को भी चढ़ाई जाती है।


माना जाता है कि इस कामनाथ महादेव मंदिर में 700 वर्ष से पुराना घी भी रखा है। लकड़ियों के स्टैंड पर चार कमरों में 50,000 किलो घी मटकों में रखा हुआ है। एक मटके का वजन लगभग 40 किलो लगभग होता है। वैसे आयुर्वेद में 100 वर्ष पुराने घी को संचित करके रखने का विधान और उसकी उपयोगिता बताई गयी है।
पवित्र श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की बारहवीं तिथि को पवित्र ज्योति गांव में आई थी इसलिए इस दिन को गांव के लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते है। राढ़ू में रथयात्रा की तरह ही भगवान शिव की मेला और नगर यात्रा का भी आयोजन किया जाता है। पूरे श्रावण मास के दौरान, मंदिर में रोजाना सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक यज्ञ किया जाता है और उसके बाद भगवान शिव की अपार आरती की जाती है। इस मंदिर में एक और लोकप्रिय दिन महाशिवरात्रि है। कामनाथ महादेव में भी बड़ा उत्सव और लघुरुद्र यज्ञ भी मनाया जाता है। कामनाथ महादेव के आंगन में श्रावण की अमावस्या तथा प्रतिवर्ष शिवरात्रि के दिन लघुरुद्र यज्ञ होता है।
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