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... दरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था

01:38 PM Aug 13, 2022 IST
    दरिया ए इत्र मेरे पसीने के बीच था
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विवेक बंसल/ निस

गुरुग्राम, 12 अगस्त

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इरादे नेक हों और लगन सच्ची हो तो मंजिल तक पहुंचने के रास्ते आसान हो ही जाते हैं। बेशक इस रास्ते पर ऐसे कई खौफनाक पड़ाव आते हैं कि आदमी टूटकर रह जाये, लेकिन हौसला और मेहनत ही है जो आदमी को तरक्की के पथ पर ले जाती है। ऐसी ही कहानी है गुरुग्राम निवासी बोधराज सीकरी परिवार की। एक समय शाही अंदाज में रहने वाला यह परिवार भी विभाजन की आग में झुलसा और लंबे समय तक फकीरी में जीया। धीरे-धीरे अपनी मेहनत के बल पर परिवार उबरा और आज बोधराज सीकरी एक सफल उद्योगपति हैं, समाजसेवी हैं और राजनीतिज्ञ भी। कठिन जीवन और कड़ी मेहनत की ऐसी मिसालों पर ही शायद किसी शायर ने लिखा होगा, ‘मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था, दरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था।’

विभाजन के समय कई अन्य परिवारों की तरह सीकरी परिवार भी हिंदुस्तान में शरणार्थी की तरह आये। गुड़गांव पहुंचे। परिवार के भरण-पोषण के लिए बोधराज के पिता ने दूध बेचा, लेकिन इस धंधे में जम नहीं पाए। चाय की दुकान भी नहीं चली। मजदूरी की, लेकिन समय पर दिहाड़ी नहीं मिलती थी। परिवार पालना कठिन हो गया। फिर दिल्ली में सरोजिनी नगर में हलवाई के यहां बर्तन साफ़ करने का काम पकड़ा, लेकिन रोज दिल्ली से आने-जाने का किराया कहां से लाएं? इसलिए इस काम को भी छोड़ दिया। घर की हालत देख मां ने दुकान पर अनाज साफ़ करने का काम किया। पड़ोसी के बच्चे की खराब पड़ी प्रैम पर फट्टा ठोककर गोल-गप्पे बेचना शुरू किया। बहनें गोल-गप्पे बनाने में मदद करतीं और दोनों भाई स्कूल के बाद पिता की गोल-गप्पे बेचने और बर्तन मांजने में सहायता करते। दोनों भाइयों के पास जूते नहीं, कपड़े भी एक दूसरे के पहनते।

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कठिन समय और आगे बढ़ने का जज्बा

बोधराज सीकरी ने 16 साल की आयु तक गुड़गांव के बाहर की दुनिया नहीं देखी थी। काम के बोझ से पिता ने बिस्तर पकड़ लिया। इसी बीच बड़े भाई की नौकरी लग गयी। परिवार की माली हालत के बीच बोध राज सीकरी ने किसी तरह दसवीं के बाद स्टेनोग्राफर का डिप्लोमा किया और हरियाणा सरकार में 6 साल टाइपिस्ट स्टेनो की नौकरी की। नौकरी के दौरान चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के इवनिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और यूपीएससी के माध्यम से भारत सरकार में तीन साल, 10 साल सरकारी उपक्रम में और 7 साल प्राइवेट सेक्टर में वाइस प्रेसिडेंट के पद तक पहुंचे। वर्ष 1997 में हैदराबाद की एक फार्मा कंपनी का रॉ मैटेरियल का वितरण शुरू किया। 10 साल कड़ी मेहनत के बाद 25 कंपनियों की डिस्ट्रीब्यूटरशिप प्राप्त की। ईमानदार छवि ने नया मुकाम दिया। 16 साल पूर्व मैन्युफैक्चरिंग में कदम रखा। आज 5 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां, 4 ट्रेडिंग (आयात और निर्यात) कंपनी स्थापित कर चुके हैं। यही नहीं, अपने सामाजिक दायित्व को समझते हुए बोधराज सीकरी 9 सामाजिक, 9 धार्मिक संस्थाओं और 9 औषध उद्योग के एसोसिएशंस के पदाधिकारी हैं। वह कहते हैं, ‘मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती।’ इस वक्त वह भाजपा में अनेक दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।

हरियाणा सरकार द्वारा 1947 के बंटवारे को लेकर ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाया जा रहा है और सरकार लोगों के संघर्ष और बलिदान को याद करते हुए 14 अगस्त को कुरुक्षेत्र में प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करेगी। इसी संदर्भ में आज पढ़िये विभाजन का दंश झेलने वाले ऐसे परिवार की दास्तां जो राजशाही से फकीरी पर आ गया और अपनी मेहनत के दम पर आज उद्योगपति के मुकाम तक पहुंचे, समाजसेवी बने।

– संपादक

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