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बड़े जोखिमों की वजह बना छोटी रील्स बनाने का क्रेज

07:19 AM Mar 31, 2024 IST

कैमरे व इंटरनेट वाले फोन के जरिये किसी गाने-डायलॉग पर हाथ-पैर-होंठ हिलाकर शॉर्ट वीडियो बनाना, फिर उसे करोड़ों यूजर्स के लिए सोशल मीडिया मंच इंस्टा-फेसबुक पर अपलोड करना – बस यही करते देखे जा रहे हैं जगह-जगह रील्स बनाने वाले युवा। जिसकी वजह है रातोंरात प्रसिद्धि और कमाई का लालच। अधिकतर रील्स उपयोगी बेशक न हों लेकिन रील्स बनाने वाले युवा कानूनी, सामाजिक और नैतिक तौर पर समस्या बन गये हैं।

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डॉ. संजय वर्मा
लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

पुण्यभूमि भारत के लिए सोशल मीडिया मंचों के लिए बनाई जा रही रील्स एक राष्ट्रीय आपदा बन गई हैं। यह उस शक्तिशाली होते, विकसित होते युवा भारत की तस्वीर से जुड़ी नई समस्या है जो संचार के लिए जरूरी बन इंटरनेट और इस पर सृजित होते नए-नए सोशल मीडिया के मंचों के जरिये हमारे जनमानस पर छा गई है। जैसा कि विज्ञान की हर सहूलियत के बारे में कहा है कि वह सुविधा के साथ-साथ समस्या भी लाती है, रील्स के बारे में दावा किया जा सकता है कि ये समस्याओं के अंबार के साथ तनिक सुविधा भी शायद लाती हैं। इस आखिरी वाक्य को कुछ ताजा उदाहरणों की रोशनी में देखें तो बात ज्यादा साफ हो सकती है।
हाल में जोर-शोर से मनाए गएं रंगों के त्योहार होली के दौरान देश की राजधानी दिल्ली और इसके नजदीकी इलाकों में कुछ युवतियों को मेट्रो ट्रेन में और स्कूटी पर भदेस किस्म की रील्स बनाने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया। नोएडा में पकड़ी गई युवतियों पर आरोप है कि उन्होंने बेहद आपत्तिजनक मुद्राओं में खुलेआम ये रील्स बनाईं। कमाई के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड भी किया गया। यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर लाखों सब्सक्राइबर रखने वाली इन लड़कियों पर अव्यवस्था और अश्लीलता फैलाने की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए गए और ट्रैफिक पुलिस ने इनकी स्कूटी का 33 हजार रुपये का चालान भी काटा। स्कूटी पर भदेस हरकतें करने वाली इन्हीं युवतियों का एक और वीडियो कुछ समय पहले वायरल हुआ था। उसमें ये दिल्ली मेट्रो में यात्रियों की मौजूदगी के बीच ऐतराज वाली मुद्राओं में दिखी थीं। जेल भेजे जाने पर ये लड़कियां अपनी हरकतों पर माफी मांगते और यह दावा करते नजर आईं कि ये बेहद गरीब परिवारों से आती हैं। लिहाजा इनके पास चालान व अन्य जुर्माने भरने के पैसे नहीं हैं।

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काननून हो सकती है कड़ी कार्रवाई
सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें करने, जानलेवा स्टंट करने और दूसरों के लिए जोखिम वाले हालात पैदा करने संबंधी कानून के मुताबिक पुलिस को 151 के तहत न्यूनतम और अन्य धाराओं में कड़ी कार्रवाई करने का हक है। हालांकि ज्यादातर मामलों में खतरनाक और अश्लील प्रदर्शन वाली रील्स बनाने वाले युवा मामूली जुर्माने और हल्की सजाओं के साथ छूट जाते हैं। शायद यही वजह है कि आज की तारीख में देश में शायद ही कोई ऐसी जगह बची हो, जहां हाथों में स्मार्टफोन लिए युवा कोई न कोई वीडियो बनाते नहीं दिखते हों। ऐतिहासिक व पर्यटक स्थल, मेट्रो ट्रेन, बाजार और कॉलेज कैंपस तो इनके लिए सबसे मुफीद जगहें हैं बल्कि मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे आदि धर्मस्थलों में यदि कोई रोकटोक न हो, तो रील्स के जरिये वहां का माहौल दूषित करने में देर नहीं लगती है। ऐसे में लगता यही है कि इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि तमाम सोशल मीडिया मंचों पर इन्हें तुरत-फुरत बनाकर परोसने की सुविधा सस्ते और तेज इंटरनेट की बदौलत मिली है, उसने इससे जुड़ी समस्या को असल में एक नई राष्ट्रीय आपदा में बदल डाला है।


कहां से आईं रील्स
रील्स यानी बेहद छोटी अवधि वाले ऐसे वीडियो जिनमें किसी गाने की धुन, डायलॉग, चुटकुले या संगीत पर हाथ-पांव हिलाने होते हैं और मुंह चलाना (लिप सिंक करना) होता है। ये कुछ सार्थक और सकारात्मक भी हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर में पृष्ठभूमि में बजते-सुनाई देते किसी गीत, संगीत, चुटकुले पर हावभाव और मुद्राएं भर बनानी होती हैं। इन्हें बनाने के लिए ज्यादा तामझाम और महंगे स्टार्टफोन की जरूरत भी नहीं है। इसीलिए स्कूल जाते छात्रों से लेकर उनके कुछ अध्यापकगण तक खुद को इन्हें बनाने और इनके जरिये कुछ कमाई करने के लालच से खुद को रोक नहीं पाते हैं। हालांकि रील्स से कमाई का गणित सीधा और आसान नहीं है, लेकिन कोई वीडियो (रील्स) अगर वायरल होने की श्रेणी में आ गया, तो मशहूर होने और फिर कुछ कमाई करने का रास्ता कुछेक मामलों में खुल जाता है। हालांकि ये रील्स स्मार्टफोन के साथ पैदा नहीं हुई हैं। पहले टिकटॉक और फिर इंस्टाग्राम-फेसबुक पर 15 से 30 सेकंड के शॉर्ट वीडियो अपलोड करने की सुविधा के साथ यह आपदा जन्मी है। चीन के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया मंच टिकटॉक पर तो हमारे देश में जून 2020 में पाबंदी लगाई जा चुकी है। लेकिन उसी वर्ष यानी 2020 से फेसबुक (मेटा) के स्वामित्म वाले इंस्टाग्राम ने शॉर्ट वीडियो की सहूलियत दी, तो लोगों को जैसे मनचाही मुराद मिल गई। रील्स यानी छोटी अवधि वाले वीडियो बनाने और इन्हें देखे जाने की परंपरा के जंगल में आग की मानिंद फैलने में एक भूमिका महामारी कोविड-19 के बीच देश-दुनिया में लगाए गए लॉकडाउन की भी रही। उस दौरान घरों में बंद लोगों ने समय काटने के लिए ऐसे वीडियो बनाने और इंस्टाग्राम आदि के जरिये उन्हें परोसने का जो सिलसिला शुरू किया, वह दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि इन रील्स का एक व्यावसायिक पहलू भी है। युवाओं की सोशल मीडिया मंचों पर उपस्थिति और सक्रियता के मद्देनजर अब प्रायः हरेक कंपनी अपने उत्पादों और सेवाओं की जानकारी रील्स के जरिये उपभोक्ताओं तक पहुंचाना चाहती है, लेकिन इन्हीं के जरिये कमाई और मशहूरियत हासिल होने वाला लालच हर किसी को रील्स की तरफ खींच रहा है।


जंगल में आग की मानिंद बढ़तीं रील्स
शायद यह तथ्य आपको हैरान करे कि आज की तारीख में भारत में इंस्टाग्राम का सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग मौजूद है। इससे संबंधित ट्रेंड और आंकड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाइट napoleoncat.com के मुताबिक जनवरी, 2023 तक भारत में इंस्टाग्राम इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब साढ़े 24 करोड़ थी, जो हमारी कुल आबादी का 17 फीसदी है। जनवरी, 2020 में रील्स की सुविधा जोड़े जाने से पूर्व भारत में इंस्टाग्राम के सिर्फ 8 करोड़ ग्राहक थे, जो आबादी के बरक्स 5.6 प्रतिशत होते हैं। यही प्रतिशत रील्स के आने के छह महीने में बढ़कर 7.1 और अब 17 से 18 प्रतिशत हो चुका है। कोई शक नहीं कि रील्स की चाह में इंस्टाग्राम की शरण में जाने वालों की संख्या में इस अभूतपूर्व इजाफे के पीछे जून 2020 में टिकटॉक को प्रतिबंधित करना और कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन लगाया जाना मुख्य कारण तो हैं, पर इसका क्रेज़ बढ़ते चले जाना हर किसी को हैरान-परेशान करता है। यह तब है जब रील्स बनाने और देखे जाने की वजह से तमाम दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, मारपीट की घटनाएं हुई हैं और सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील प्रदर्शन के अलावा ट्रैफिक नियमों के गंभीर उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। समाजशास्त्रियों की नजर में सोशल मीडिया और रील्स के प्रति लोगों की बढ़ती चाहत यानी ऑब्सेशन हमारे समाज को एक खतरनाक मोड़ पर ले आई है। हालांकि कुछ लोगों की नजर में ये मंच लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का आसान जरिया दे रहे हैं, लेकिन ये असल में ऐसी दोधारी तलवार हैं जिनके प्रहार से इन्हें बरतने वालों का जख्मी होना तय है। रातोंरात मशहूर होने और बेशुमार कमाई करने की चाहत को हवा देने वाले इस ट्रेंड के बारे में चिकित्सक कहते हैं कि रील्स देखते समय इंसान का दिमाग खुशी देने वाला डोपामाइन नामक रसायन छोड़ता है, जिस कारण इसकी कैद से बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है। इसी तरह चूंकि इन्हें बनाने में ज्यादा निवेश और बेमिसाल स्किल की जरूरत नहीं है, इसलिए इसकी बहुत ज्यादा संभावना है कि हर कोई इसकी आसान पकड़ में आ जाए। कैमरे वाला एक सस्ता फोन, कोई भी ऊबड़-खाबड़ जगह और इंस्टाग्राम पर मौजूद करोड़ों दर्शकों की फौज – रील्स का रास्ता आसान बना रहे हैं।
मशहूर या कुख्यात
ऐसे असंख्य उदाहरण मौजूद हैं कि थोड़े से भी हंसोड़, बेहूदा और यहां तक कि अश्लीलता की श्रेणी में आने वाले कंटेंट के साथ रील्स बनाने वाला कोई शख्स एक महीने में ही मशहूर हो जाए और व्यूअरशिप यानी वीडियो देखे जाने के आधार पर मिलने वाली रकम से थोड़ी-बहुत कमाई भी हो जाए। पढ़ाई-लिखाई या खास किस्म की स्किल की कोई अनिवार्यता नहीं होने की सूरत में एक से एक बेढब लोग अपना कोई फन दिखाने के लिए इंस्टाग्राम पर आतुर रहते हैं। अगर आप दिल्ली मेट्रो से जुड़े कुख्यात-कलेशी वीडियो में दिखने वाली महिला की तरह कहीं भी हंगामा मचा सकते हैं, बेशर्म होकर कहीं भी ठुमके लगा सकते हैं, बिना आगा-पीछा सोचे कोई भी ऊलजलूल हरकत कर सकते हैं, तो आइए, यह मंच आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा है। पर सावधान! हो सकता है कि किसी रोज आप पकड़े जाएं और सार्वजनिक स्थल पर अराजकता, अश्लीलता और अव्यवस्था फैलाने के जुर्म की धाराओं में आपको जेल में डाल दिया जाए। फिर भी आप यह जोखिम लेना चाहते हैं, तो लीजिए। आखिर कहा ही गया है, सिर यानी दिमाग आपका तो मर्जी भी आपकी।

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