नीतिगत बदलावों से ही फसल के सही दाम
डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठर
वर्ष 2022-23 में धान किसानों को कम दाम मिलने से उनका एक लाख बीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान विभिन्न सरकारों की गलत नीतियों के कारण हुआ। बेशक सदियों से किसान के शोषण की वजह सामंती शासन व्यवस्था रही है। लेकिन आजाद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में, उन किसानों का शोषण होना गंभीर विषय है ज़िन्होंने हरित क्रांति के तहत उन्नत बीज व महंगी तकनीक अपनाकर देश को बढ़ती आबादी के बावजूद खाद्यान्न में लगातार आत्मनिर्भर बनाये रखा। इन महंगी उन्नत तकनीक के उपयोग से बढ़ी कृषि लागत की भरपाई के लिए सरकार ने वर्ष 1966 में फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति को मंजूर किया। भारत में वैधानिक तौर पर केन्द्र सरकार द्वारा घोषित फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) वह न्यायोचित उपयुक्त मूल्य है जो फसल बिक्री पर प्रत्येक किसान को मिलना ही चाहिए।
लेकिन साहूकार बिचौलियों की हितैषी व्यवस्था ने पिछले 57 वर्षों में अपने ही द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी कानून नहीं बनाकर, कभी भी निजी व्यापारियों पर लागू नहीं किया और उन्हें कृषि उपज मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर, फसल उपज खरीद की अनुमति देकर किसानों का खुला शोषण होने दिया। इससे भी आगे, स्वामीनाथन राष्ट्रीय कृषि आयोग-2006 की सिफारिशों, कि ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना सम्पूर्ण सी-2 लागत 50 प्रतिशत लाभ पर होनी चाहिए’, को नहीं लागू करके सरकारें स्वयं भी किसानों का नुकसान कर रही हैं।
केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार, वर्ष 2022-23 में देश में धान का कुल 130 करोड़ क्विंटल उत्पादन हुआ जिसमें से 11.3 करोड़ किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य 2040 रुपये प्रति क्विंटल पर सरकार ने 62 करोड़ क्विंटल धान की खरीद लगभग एक लाख साठ हजार करोड़ में की यानी स्वामीनाथन आयोग द्वारा सिफारिश की गयी एमएसपी 2710 रुपये प्रति क्विंटल (सी-2 लागत 1805 रुपये 50 प्रतिशत लाभ) पर खरीद नहीं करके किसानों का लगभग 42,000 करोड़ रुपये का नुकसान किया गया! इतना ही नहीं, पिछले 65 वर्षों से एमएसपी गारंटी कानून नहीं बनाकर, बिचौलियों को भी किसानों को लूटने की एक तरह से छूट दे रखी है ज़िन्होंने बाकी बचे 68 करोड़ क्विंटल धान में से लगभग 60 करोड़ क्विंटल धान को घोषित एमएसपी से 30 फीसदी कम दाम औसतन 1400 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीद कर किसानों का लगभग 78,000 करोड़ रुपये का शोषण किया, यानि केवल वर्ष 2022-23 में ही गलत नीतियों के चलते धान किसानों का लगभग 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का शोषण हुआ।
इसी तरह रबी सीज़न 2022-23 में, गेहूं के कुल अनुमानित उत्पादन 111 करोड़ क्विंटल में से 27 करोड़ क्विंटल 2125 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी पर किसानों से खरीदा गया जबकि सी-2 लागत 1575 रुपये 50 फीसदी लाभ पर गेहूं का दाम 2365 रुपये बनता था। लेकिन किसानों को 240 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम देकर उनका लगभग 6500 करोड़ रुपये का नुकसान किया और साहूकारों ने बाकी बचे 84 करोड़ क्विंटल में से लगभग 70 करोड़ क्विंटल गेहूं एमएसपी से कम दाम (औसतन 1700 रुपये) पर खरीद कर लगभग 46,000 करोड़ रुपये किसानों को हानि पहुंचाई। इस तरह पिछले एक साल 2022-23 में मात्र दो फसलों धान और गेहूं की खरीद से सरकार ने लगभग 50,000 करोड़ और बिचौलियों ने 1,24,000 करोड़ रुपये का नुकसान किया यानि किसानों का कुल दो फसलों के विपणन पर 1,74,000 करोड़ रुपये वार्षिक का शोषण हुआ, जो प्रति किसान लगभग 1.5 लाख रुपये वार्षिक बनता है।
उचित दाम नहीं मिलने से देश में उगाई जा रही 70 से ज्यादा फसलों (अनाज, तिलहन, दलहन, सब्जियों, फलों आदि) के विपणन पर, भारतीय किसानों का लगभग 25 लाख करोड़ रुपये वार्षिक का नुकसान होता है, जो लगभग 2 लाख रुपये प्रति किसान वार्षिक शोषण बनता है। यानी सरकारों की गलत नीतियों के कारण किसानों का लगातार शोषण हो रहा है जिससे किसान दिन-प्रतिदिन गरीब व कर्जदार बनते जा रहे हैं और आत्मघाती कदम तक उठा रहे हैं! दूसरी ओर, मात्र 6000 रुपये वार्षिक किसान सम्मान राशि और 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने जैसे जुमलों से प्रचार माध्यमों में वाहवाही लूटी जा रही है! जबकि फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य की ‘सी-2 लागत के आधार पर गणना’ और एमएसपी गारंटी कानून बनाना ही किसानों की समस्या का स्थाई समाधान है।
किसानों का शोषण करने वाली गलत नीतियों को लगातार जारी रखते हुए, वर्ष 2023-24 खरीफ मौसम की फसलों के लिए, फिर से एमएसपी सी-2 लागत (सम्पूर्ण लागत) पर घोषित नहीं करके, ए2 एफएल लागत के आधार पर घोषणा की गयी है जिससे किसानों को फिर नुकसान या घाटा ही होना तय है।