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असल और वर्चुअल संसार के असमंजस

08:29 AM Nov 05, 2024 IST

डॉ. मोनिका शर्मा
हाल ही में अमेरिका में हुए एक शोध में सामने आया है कि जेनरेशन जेड दोहरी जिंदगी जी रही है। अमेरिका में लगभग आधे लोग यह मानते हैं कि वे अपने ऑनलाइन और ऑफलाइन व्यक्तित्व के बीच उलझे ड्यूअल लाइफ जी रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक, जेनरेशन जेड के 46 प्रतिशत उत्तरदाता इस द्वंद्व को महसूस करते हैं कि उनका वर्चुअल व्यक्तित्व वास्तविक दुनिया में उनके खुद के रहने-जीने के तरीके से काफी अलग होता है। जेनरेशन जेड की दोहरे व्यक्तित्व से जुड़ी यह उलझन भारतीय समाज के लिए भी विचारणीय है। तकनीक और वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स के विस्तार के इस दौर में कमोबेश दुनिया के हर हिस्से में बसे लोग ही वर्चुअल और असल संसार में दोहरा व्यक्तित्व जीने के असमंजस में फंसे हैं। चिंतनीय है कि बात केवल मानसिक उलझाव भर की नहीं है। तकनीक के भंवर में उलझी यह पीढ़ी इस नकलीपन को ओढ़ने के चलते बहुत सी दूसरी परेशानियों में भी घिर रही है।

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असहजता का भाव

जनरेशन जेड आज के समय में दूसरी सबसे युवा जनरेशन है। दरअसल, 1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी को जेन जेड कहा जाता है। यह पीढ़ी, मिलेनियल पीढ़ी के बाद और अल्फ़ा जेनरेशन से पहले की पीढ़ी है। ऐसे में इस पीढ़ी ने न केवल तकनीक की शुरुआती दस्तक बल्कि उसके व्यापक इस्तेमाल की परिस्थितियों को देखा और जिया है। खासकर इंटरनेट को दैनिक जीवन के एक हिस्से के रूप में मानने और स्वीकारने का बदलाव इस जनरेशन ने गहराई से समझा है। ध्यान देने वाली बात है कि इस पीढ़ी का लंबा समय सामाजिकता और पारिवारिक जुड़ाव के माहौल में भी बीता है। यही कारण है कि इस जनरेशन के लोग इस उलझन का शिकार बन रहे हैं। बुनियादी जीवनशैली को जी चुके लोग आज की वर्चुअल दुनिया के रंगों में रंगे जरूर हैं पर मन को यह आभासी इमेज परेशान भी करती है। कभी सहज-सरल जीवन को देख-जी चुके इस जनरेशन के लोगों का मन आज भी तकनीकी प्लेटफॉर्म्स के दिखावे से परे असल जिंदगी की चाह रखता है। वहीं कामकाजी जीवन हो या व्यक्तिगत सम्बन्धों का मामला, वर्चुअल संसार से जुड़े रहना भी आवश्यक है। ऐसी सभी स्थितियां मन को असहज करने वाली हैं। ऐसी उलझनों का परिणाम है कि कार्यस्थल पर भी जेनरेशन जेड के लोगों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों के मामले में भी अन्य पीढ़ियों की तुलना में अधिक संघर्ष करना पड़ता है। जिसके चलते यह पीढ़ी एक अनचाहे मानसिक द्वंद्व से जूझ रही है।

खुद से भी दूरी

खेल-खिलौनों से लेकर रिश्तों की दुनिया तक, कमोबेश सब कुछ ही अपनेपन के भाव-चाव संग जीने वाली यह जनरेशन तकनीकी जाल में उलझकर खुद से भी दूर हो रही है। असल में इस पीढ़ी ने जुड़े रहने का अर्थ मन से जुड़ने और संवाद के मायने साथ बैठ बतियाने के तौर पर देखे-जीये हैं। इस जनरेशन के लिए यह तकलीफदेह है कि बच्चों-बड़ों का आपसी संवाद ही तकनीकी माध्यमों से हो रहा है। सोशल प्लेटफॉर्म्स पर जुड़े रहने के बावजूद यह पीढ़ी व्यक्तिगत बातचीत में ज्यादा रुचि रखती है। सोशल मीडिया हो या तकनीक से मिली नई-नई सुविधाएं सब कुछ जानने-समझने के बाद भी जनरेशन जेड के लोग प्रामाणिक सम्बन्धों और जुड़ाव को ज्यादा महत्व देते हैं। असल में पहली डिजिटली नेटिव कही जाने वाली यह पीढ़ी तकनीकी नवाचार के दौर में बड़ी हुई। कामकाज के लिए टेक्निकल एडवांसमेंट को भी बखूबी अपनाया। देश ही नहीं दुनियाभर में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया पर जमीनी जुड़ाव का भाव आज भी कायम है। जबकि आसपास का परिवेश पूरी तरह बदल गया है। यही कारण है कि जनरेशन जेड के लोग खुद अपनेआप से भी दूर हो रहे हैं। स्मार्ट गैजेट्स और हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन के दौर में युवा हुए इस पीढ़ी के लोग स्वयं अपने ही असल और वर्चुअल व्यक्तित्व को लेकर उलझन में हैं।

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असली सामाजिकता की तलाश

बचपन में आपसी मेलजोल को देख चुकी इस पीढ़ी में अब भी असली सामाजिकता को जीने की चाह दिखती है। यह जनरेशन रिश्ते हों या दोस्ती- दोनों को वास्तविक धरातल पर पोसने की इच्छा रखती है। निस्संदेह, यह लगाव-जुड़ाव सोशल मीडिया पर नहीं होता। एडिटेड फ़ोटोज़ से लेकर सब कुछ बढ़िया होने का दिखावा करने, फॉलोअर्स की गिनती बढ़ाने और चमक-दमक को परोसती आभासी दुनिया से असली सामाजिकता के रंग तो लगभग गायब ही हैं। स्टैनफोर्ड के सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडी इन द बिहेवियरल साइंसेज से संबंधित सीनियर शोधकर्ता रॉबर्टा कैट्ज के एक शोध के अनुसार, जनरेशन जेड एक अत्यधिक सहयोगी लोगों का समूह है। यह पीढ़ी दूसरों के बारे में गहराई से परवाह करने वाली है। साथ जलवायु परिवर्तन से लेकर देश-परिवेश से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के मामले में व्यावहारिक दृष्टिकोण रखती है। ऐसी बातें वर्चुअल वर्ल्ड के दिखावे से बहुत अलग हैं। इतना ही नहीं, इस पीढ़ी में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर भी एक जुड़ाव का भाव है। आज के बिखरते परिवेश में भी यह पीढ़ी माता-पिता और अपने बच्चों से जुड़ी बहुत सी बातों को लेकर चिंतित रहती है। जनरेशन जेड के लोग खुद को अनिश्चितता के घेरे में भी पाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि तकनीकी तरक्की के साथ-साथ असल जुड़ाव के भाव को खाद-पानी दिया जाये। मानवीय भाव-चाव के बिना किसी भी पीढ़ी का मन-जीवन सहज नहीं रह सकता।

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