वारंटी में वाहन रिपेयर का जिम्मा कम्पनी पर
श्रीगोपाल नारसन
वांहन निर्माता कंपनियां नए वाहनों पर वारंटी देती हैं। वारंटी देने का उद्देश्य है कि वाहन बिकने के बाद एक निश्चित अवधि में वाहन खराब हो जाए तो उपभोक्ता उसे बिना खर्च के ठीक करवा सकें। वाहन खरीदते समय कई डीलर अपने वाहन निर्माता की ओर से उपभोक्ता को वाहन पर मिलने वाली वारंटी की पूरी जानकारी देते हैं, जबकि कई उपभोक्ता इस जानकारी से अनजान होते हैं कि कंपनी वाहन के किन पार्ट्स पर वारंटी देती है और किन पर नहीं देती। कई बार जानकारी न होने के कारण उपभोक्ता धोखे का शिकार हो जाते हैं। वे वारंटी के तहत आने वाली सर्विस के लिए भी भुगतान कर देते हैं। वाहन के मॉडल, डिजाइन और कीमत के आधार पर अलग-अलग अवधि की वारंटी निर्माता द्वारा दी जाती है। आमतौर पर 1 से 5 साल की वारंटी खरीद तिथि से मिलती है। वारंटी को किलोमीटर के आधार पर भी निर्धारित किया जाता है। कुछ वाहनों में 30 हजार से 1 लाख किलोमीटर तक वारंटी दी जाती है। वाहन के सभी उपकरण वारंटी के तहत कवर होते हैं। वाहन की वारंटी के तहत इंजन, गियरबॉक्स, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, वायरिंग, एयर कंडीशन, ब्रेक सिस्टम, क्लच, डिस्प्ले स्क्रीन, ऑडियो सिस्टम व स्टीयरिंग जैसी चीजों पर कंपनी वारंटी कवर देती है।
नियम व शर्तें भी लागू
वाहन कंपनी वारंटी कवर तो देती हैं लेकिन इससे जुड़े कुछ नियम व शर्तें भी लागू करती है। जैसे अगर उपभोक्ता की गलती से कोई नुकसान वाहन में होता है तो उसे वारंटी में नहीं माना जाता है। अगर वाहन उपभोक्ता की किसी कमी के कारण खराब हो जाए या कहीं से वाहन का रंग रखरखाव पर्याप्त न होने के कारण उड़ जाये तो कंपनी वारंटी में कवर नहीं करेगी। शीशो के टूटने, डेंट, टूट-फूट को भी वारंटी में कवर नहीं किया जाता। उपभोक्ता की गलती से वाहन के टायर खराब हो जाएं तो कंपनी कवर नहीं करेगी लकिन मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट कवर करती है। नये वाहन का एक्सीडेंट हो जाए तो उसे वारंटी का लाभ नहीं मिलता, क्योंकि उसकी जिम्मेदारी वाहन चालक या फिर इंश्योरेंस कम्पनी की होती है।
यह है मामला
पंचकूला निवासी प्रभात सिंह ने उपभोक्ता अदालत में चंडीगढ़ की संबद्ध विक्रेता कंपनी के अलावा जनरल मोटर्स गुजरात और जनरल मोटर्स महाराष्ट्र के खिलाफ वारंटी अवधि में वाहन खराब होने और उसे ठीक करने के एवज में पैसे वसूलने की शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उपभोक्ता अदालत ने अपना फैसला विक्रेता कंपनी के खिलाफ ही सुनाया और जनरल मोटर्स के दोनों पक्षों के खिलाफ शिकायत को निरस्त कर दिया। शिकायतकर्ता ने बताया कि उन्होंने चंडीगढ़ की कंपनी से शेवरले बीट कार खरीदी थी। इसके लिए उन्होंने 5 लाख 70 हजार रुपए का भुगतान किया और कार को कार्पोरेशन बैंक हमीरपुर से फाइनेंस करवाया था। कार की तीन साल की वारंटी दी गई। उन्होंने दो बार सर्विस करवाई। इसके बाद कार सर्विस के लिए लेकर गए तो उन्हें बताया गया कि इसमें थोड़ा डिफेक्ट है, जिस कारण एसी काम नहीं कर रहा है। इसके लिए 6548 रुपए का बिल बनाया गया, जो शिकायतकर्ता ने अदा कर दिया। इसके बाद भी उन्हें दो बार पैसे देकर एसी ठीक करवाना पड़ा। इस दौरान कार के टर्बो पंप ने भी काम करना बंद कर दिया, जिसके चलते उपभोक्ता को 25,509 रुपए अदा करने पड़े। उपभोक्ता ने कम से कम चार बार वाहन की रिपेयर करवाई। उपभोक्ता की उक्त कार में लो पिकअप की समस्या सामने आई, जिसके चलते वह वाहन कंपनी के पास लेकर गए और ठीक करने की बाबत 541 रुपए अदा किए, इसके एक दिन बाद बीच रास्ते में ही फिर उक्त कार बंद हो गई। उपभोक्ता कंपनी के पास कार लेकर गए,तो उसे ठीक करने का 55,075 रुपए का बिल बना दिया गया।
अदालत का फैसला
वारंटी अवधि के अंदर वाहन के होने के बावजूद वाहन रिपेयर का बिल क्यों बनाया गया? इसको लेकर शिकायत उपभोक्ता अदालत में की गई। उपभोक्ता अदालत में प्रतिवादी यानी कम्पनी ने कहा कि उनके स्तर से सेवा में कोई कोताही नहीं बरती गई। लेकिन नया वाहन लेने के बाद भी उसका कई बार खराब हो जाना और रिपेयर करवाने पर वारंटी अवधि के अंदर भी कंपनी द्वारा पैसे वसूलना उपभोक्ता सेवा में कमी माना गया। उपभोक्ता अदालत ने निर्देश दिए कि कंपनी वाहन को रनिंग कंडीशन में शिकायतकर्त्ता को 55,075 रुपए बिना चार्ज किए हैंडओवर करे। साथ ही मानसिक पीड़ा और उत्पीडऩ के लिए 40 हजार रुपए मुआवजा और 15 हजार मुकद्दमा खर्च भी देने के निर्देश दिए हैं। आदेश की प्रति मिलने पर 30 दिनों के अंदर इन आदेशों का पालना करना होगा, नहीं तो कंपनी को क्षतिपूर्ति राशि पर 9 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देना होगा।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।