For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

भारत अमेरिकी संबंधों की बदलती हकीकत

07:31 AM Jul 30, 2024 IST
भारत अमेरिकी संबंधों की बदलती हकीकत
Advertisement

जी. पार्थसारथी
वाशिंगटन में नाटो संगठन के मुल्क रूस-यूक्रेन युद्ध पर विचार करने के लिए बैठक करने में लगे थे, लेकिन उस दौरान राष्ट्रपति पुतिन के आमंत्रण पर प्रधानमंत्री मोदी की हालिया रूस यात्रा पर पश्चिमी जगत की भौंहें तन गईं। पिछली रूस यात्राओं की तरह मोदी की यह फेरी भी अनेकानेक मुद्दों पर सफल रही– इनमें सबसे महत्वपूर्ण रहा ऊर्जा और रक्षा सहयोग क्षेत्र में हुआ समझौता। यह ऐसे वक्त पर भी आया जब अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने भारत के मानवाधिकारों को लेकर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की। इस अजीब रिपोर्ट में भारत को वह देश बताया गया जहां मानवाधिकार हनन होना रोजाना का काम है। इसमें जोर देकर कहा गया कि मणिपुर पूरी तरह प्रभावित है, वहां दुराचार, सशस्त्र टकराव एवं हमले हो रहे हैं, घरों और पूजा स्थलों को तोड़ा जा रहा है, काम-धंधा ठप्प पड़े हैं। बाइडेन प्रशासन की रिपोर्ट आगे कहती है कि भारत के सिविल सोसायटी कार्यकर्ता और पत्रकार भी इन हालात की तस्दीक करते हैं। इस किस्म का घटनाक्रम किसी भी लोकतंत्र में अचानक घट सकता है, जब लोगों का एक वर्ग हथियार उठा ले। भारत में इस किस्म की घटनाओं की खबरें कोई नई नहीं हैं।
लगभग 140 करोड़ लोगों वाले देश में मीडिया रिपोर्टिंग करने के लिए स्वतंत्र है। मणिपुर की बढ़ती हिंसा की प्रतिक्रिया में उम्मीद के अनुसार मोदी सरकार ने सुरक्षा बलों की तैनाती की है ताकि कर्फ्यू लगाकर स्थिति संभाली जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी मणिपुर के कुछ घटनाक्रमों में दखल देकर शांति स्थापना के लिए प्रभावशाली उपाय करने को कहा है।
मणिपुर, जो कि चीन की सीमा के पास स्थित है, में हिंसा मोटे तौर पर थम चुकी है। संसद में इस मुद्दे पर तीखी नोक-झोंक भी हो चुकी है, जिसमें विपक्ष ने मणिपुर को लेकर सरकार की नीतियों की आलोचना की है। इस प्रकार के मुद्दे देश के संविधान के ढांचे के भीतर रहकर सुलझाए जा सकते हैं, जिसमें विपक्ष की सक्रिय भागीदारी और सर्वोच्च न्यायालय से गाहे-बगाहे मिलने वाले निर्देश शामिल होते हों। लेकिन भारत को लेकर ब्लिंकन रिपोर्ट एकतरफा, अयथार्थवादी और राजनयिक सरोकारों से परे प्रतीत होती है। इसको केवल एक गैर-जरूरी प्रयास कहा जा सकता है, जिसके परिणाम में भारत-अमेरिकी रिश्तों में कटुता पैदा हो सकती है।
भारत में हालिया अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम को लेकर जो मुख्य प्रश्न पैदा हुआ है वह यह कि अगर कमला हैरिस जीतती हैं, तब क्या उनकी सरकार अपने पथप्रदर्शक जो बाइडेन द्वारा हालिया दिनों में अपनाई भ्रमपूर्ण और भारत के प्रति कम मित्रता रखने वाली राह अपनाएगी या फिर वे सामरिक संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत-अमेरिका संबंधों को नई ऊंचाई तक ले जाना चाहेंगी। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव जल्द होने जा रहे हैं। उम्मीद करें कि भारत-अमेरिका रिश्तों में नई शुरुआत होगी। रोचक कि द वॉल स्ट्रीट जर्नल लिखता है, ‘कमला हैरिस की उम्मीदवारी बनने से डेमोक्रेट्स नई ऊर्जा के साथ उनके साथ आन खड़े हुए हैं। अब अमेरिका में वह राजनीतिक दौड़ होने जा रही है, जिसका परिणाम कांटे का रहने की उम्मीद है। राष्ट्रपति पद के चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को टक्कर देने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की तैयारी और आत्मविश्वास अब दिखाई देने लगा है।’
राष्ट्रपति चुनाव से पहले के इन कुछ महीनों में अमेरिकी प्रशासन की मुख्य रुचि और ध्यान मुख्यतः रूस-यूक्रेन टकराव पर केंद्रित रहने वाला है, जहां बाइडेन के नेतृत्व वाला पश्चिमी जगत यूक्रेन को हथियार, गोला-बारूद, अस्त्र-शस्त्र जमकर और निरंतर दे रहा है। एक जर्मन संस्थान के अनुसार, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन द्वारा 2022 से यूक्रेन को जो सैन्य, वित्तीय और मानवीय सहायता दी जा चुकी है या आगे मिलेगी वह राशि 380 बिलियन डॉलर बनती है। यूक्रेन युद्ध का असर समूचे यूरोप को महसूस हो रहा है। यहां तक कि अज़रबेजान ने भी सूडान के माध्यम से यूक्रेन को बम पहुंचाए हैं। पाकिस्तान ने यह समझकर कि कहीं वह पीछे न रह जाए, यूक्रेन को आत्मघाती ड्रोन, चल-हवाई हमला रोधी प्रणाली और जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें मुहैया करवाई हैं। जान-माल की इतनी भारी क्षति वाली यह लड़ाई कब तक चलेगी, कोई नहीं जानता। यह चुनौती आगे भी जारी रहेगी, जब तक कि युद्ध का विरोध करने वाले डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति नहीं चुने जाते। ट्रंप इस बारे में एकदम स्पष्ट हैं कि वे अमेरिकी करदाता का धन यूक्रेन युद्ध में बहाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।
लेकिन, यदि अंतहीन लगने वाली इस लड़ाई के लिए कमला हैरिस ने बाइडेन की धन और हथियार देने की नीतियां आगे जारी रखना चुना तो ट्रंप के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है। हो सकता है शांति समझौते की खातिर रूस कब्जाया कुछ इलाका छोड़ने को राज़ी हो भी जाए लेकिन वह किसी भी सूरत में समुद्र तक जाते पहुंच मार्गों पर, पुराने जमाने से चले आ रहे अपने नियंत्रण पर, समझौता करने को तैयार न होगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका की उन चालों में भागीदार बन रहे थे, जिनसे रूस की क्षेत्रीय संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बनता हो।
इतना पक्का है कि भारत को यूरोपियन ताकतों की आपसी प्रतिद्वंद्विता और महत्वाकांक्षा में फंसने में कोई रुचि नहीं है। लेकिन, उस सूरत से मुंह भी नहीं फेर सकता जब एक विदेशी शक्ति भारत के खिलाफ कुप्रचार को बढ़ावा देना चाहे। आखिरकार हम वाशिंगटन में शासन संभाल रहे उस शख्स से बरत रहे थे जिसने उप-राष्ट्रपति रहते हुए, पाकिस्तान दौरे पर राजधानी इस्लामाबाद से रावलपिंडी जाकर पाकिस्तानी सेना मुख्यालय में बैठे चार सितारा जनरल से मुलाकात करने की जहमत उठाई थी। अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिन्कन ने फरवरी, 2021 में भारत की अपनी पहली यात्रा के समय से ही मानवाधिकार हनन का हवाला देना शुरू कर दिया था। तब उन्होंने कहा था ‘दुनिया में कुछ ऐसे सरोकार भी हैं, जिनकी अहमियत भारत-अमेरिका संबंधों से अधिक है। हम विश्व के दो अग्रणी लोकतंत्र हैं और हमारी विविधता हमारी राष्ट्रीय मजबूती को सुदृढ़ करती है।’
अभी स्पष्ट नहीं है कि यदि मौजूदा उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस राष्ट्रपति चुनी जाती हैं तो विदेश मंत्रालय को कैसे चलाएंगी। उम्मीद करे कि वाशिंगटन में बैठे लोगों को अहसास होगा कि विरोधाभास तब पैदा हो जाता है, जब एक तरफ वे भारत को अहम सामरिक सहयोगी बताएं तो दूसरी ओर आधिकारिक दस्तावेजों में कथित मानवाधिकार हनन का दोष लगाकर भारत की आलोचना करें– यह सब तब हुआ जब मोदी सरकार तीसरी पारी में आई। रोचक कि कमला हैरिस ने डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ ताल ठोक दी है, ट्रंप ने उप-राष्ट्रपति के लिए जिस 39 वर्षीय सीनेटर जेडी वेंस को चुना है, उनकी पत्नी उषा वेंस भारतीय मूल की हैं। जैसे-जैसे चुनावी माहौल जोर पकड़ेगा, हमें रोचक घटनाक्रम देखने को मिलेगा।

Advertisement

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement