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ड्रैगन के लगातार बढ़ते वर्चस्व की चुनौती

06:32 AM May 01, 2024 IST
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केएस तोमर

हाल ही में चीन समर्थक, मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की भारी जीत भारत के लिए एक बड़ा झटका है। इस जनादेश के मायने यह भी हैं कि मालदीव की जनता भी चीन की ओर अपने राष्ट्रपति के राजनीतिक झुकाव का समर्थन कर रही है। इसके साथ ही, मुइज्जू ड्रैगन की सैन्य उपस्थिति के लिए जगह बनाने को अपने व्यक्तिगत एजेंडे को लागू करने के लिए तैयार है।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मुइज्जू बेशक सफल राजनेता हैं लेकिन भूल रहे हैं कि कूटनीति में चरम स्थिति आत्मघाती भी हो सकती है। बहरहाल, चीन हिंद महासागर में अपनी सैन्य उपस्थिति के मकसद से मालदीव को लुभाने को उत्सुक है। सुरक्षा बलों को मुफ्त प्रशिक्षण देने के अलावा बीते मार्च में मालदीव और चीन द्वारा गैर-घातक हथियारों के लिए हस्ताक्षरित ‘सैन्य सहायता’ समझौते से स्पष्ट है, मुइज्जू की हालिया जीत उन्हें भारत विरोधी रुख अपनाने को प्रोत्साहित कर सकती है।
बदले परिदृश्य में भारत को अपनी नीतियों में बदलाव कर मुइज्जू की गंभीर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। क्योंकि मुइज्जू ने तो ‘इंडिया आउट’ अभियान पर ही चुनाव जीता था। हाल ही में उन्होंने चुनावों में दो-तिहाई बहुमत हासिल किया, जिसमें उनकी पार्टी पीपल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) ने 93 में से 66 सीटों पर कब्जा कर लिया। जो चीन के साथ घनिष्ठ आर्थिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
बहरहाल, भारत के लिए ये अच्छे संकेत नहीं कि मालदीव से अपने सैनिकों को वापस लाना पड़ रहा है। भारत ने सैन्य कर्मियों को वापस लेने के मुइज्जू के फैसले पर सहमति व्यक्त की थी। उनके स्थान पर सिविल तकनीकी कर्मियों को नियुक्त किया गया है।
दूसरी ओर, नेपाल में भी चीन समर्थक विचारधारा वाले कम्युनिस्टों का शासन है। सरकार बदलने के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री केपीएस ओली और वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच नया गठबंधन हो जाने की संभावना के चलते भारत के साथ आपसी संबंधों में असंतुलन पैदा हो सकता है। लेकिन भारत को पड़ोसी देश भूटान के साथ फिलहाल कोई समस्या नहीं है जबकि म्यांमार चुनौतियां पैदा कर सकता है। क्योंकि सैन्य शासक अपनी पकड़ ढीली कर रहे हैं और दुनिया को उम्मीद है कि भारत अपदस्थ आंग सान सू की के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक ताकतों के साथ खड़ा रहेगा।
चीन इस क्षेत्र में अपने संबंधों का विस्तार करने में आगे बढ़ रहा है। क्षेत्र में पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों पर एक नजर डालें ताे हमारे पड़ोसी को चीन को अपने पाले में लाने के लिए सावधानी बरतने की सख्त जरूरत है और इसका ताजा उदाहरण नेपाल है। सरकार बदलने के बाद, नेपाल का कम्युनिस्ट शासन वैचारिक रूप से ड्रैगन के प्रति प्रतिबद्ध है और उसकी ‘ऋण नीति’ के जाल में फंस रहा हैं जो खतरनाक है। वहीं पाकिस्तान के मामले में आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि चीन ने पाक को 23 अरब डॉलर का भारी कर्ज दिया है, जिसमें वे 10 अरब डॉलर भी शामिल हैं, जो बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के निमित्त काम करने वाले वाणिज्यिक बैंकों और अन्य ऋणदाताओं का बकाया है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान कभी भी इस ऋण से बाहर नहीं आ सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सरकार को श्रीलंका के साथ रिश्ते सामान्य होने से कुछ संतुष्टि मिल सकती है। श्रीलंका के गंभीर आर्थिक संकट में भारत उसके बचाव में आया व आईएमएफ के 48 महीने के विशेष पैकेज से भी अधिक डॉलर 4 बिलियन की आर्थिक सहायता और मानवीय सहायता प्रदान की। चीन मदद से पीछे हट गया था। चीन इस देश के लोगों की नजरों में बेनकाब हो गया है।
भारत को बांग्लादेश के साथ भी कोई समस्या नहीं है जिसने गत 23 नवंबर, 2023 को भारत को अपने पड़ोस का सबसे बड़ा विकास भागीदार बताया था, जब दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने तीन भारतीय सहायता प्राप्त परियोजनाओं का उद्घाटन किया था।
कुछ पूर्व राजनयिकों का मानना है कि यदि चीन हमारे पड़ोसियों को हमसे दूर करने में सफल हो जाता है तो संयुक्त राज्य अमेरिका भी प्रभावित होगा क्योंकि इससे सुरक्षा की गंभीर समस्या पैदा होगी। वहीं चीन की ऋण नीति उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बर्बाद कर देगी। चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए मालदीव और नेपाल के साथ भारत और अमेरिका को नयी रणनीति व लचीलेपन से कदम उठाने होंगे वरना भारत सीधे तौर पर प्रभावित होगा।

लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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