एग्जिट पोल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की चुनौती
प्रमोद भार्गव
निर्वाचन आयोग ने 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र और 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में चुनाव की घोषणा की है। महाराष्ट्र में 20 नवंबर को एक चरण में मतदान होगा, जबकि झारखंड में दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा। चुनाव परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। साथ ही, 15 राज्यों की 48 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव भी होंगे, जिनके नतीजे उसी दिन आएंगे। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को उम्मीदवार घोषित किया है, यह सीट राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद खाली हुई है। इसी क्रम में उल्लेखनीय है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने मीडिया से एग्जिट पोल पर जिम्मेदारी से काम करने का आह्वान किया और ईवीएम को मतदान के लिए सुरक्षित बताया है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से ही ईवीएम पर सवाल उठने लगे थे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि ‘एग्जिट पोल’ का कोई अर्थ नहीं है। हाल के चुनावों में जो रुझान टीवी चैनलों में दिए गए वे आधारहीन थे। जब आयोग की वेबसाइट पर साढ़े 9 बजे पहला रुझान दिया जाता है तो फिर टीवी चैनल मतगणना शुरू होने के 10-15 मिनट में कैसे रुझान शुरू कर सकते हैं? असल में, चैनल रुझान दिखाकर सिर्फ अपना एग्जिट पोल सही ठहराने का प्रयास करते हैंै।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल अनुमानों के विपरीत निकले। इधर, हाल ही में जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के अनुमान भी उल्टे पड़े। जो हरियाणा में कांग्रेस की भारी बहुमत से जीत दिखा रहे थे, लेकिन भाजपा ने 49 सीटें जीत बहुमत हासिल कर लिया। विपक्ष ने एग्जिट पोल के आधार पर ईवीएम के जरिये सवाल खड़े कर दिए। ऐसे में अकसर आरोप लगते हैं कि विपक्ष वहां तो हल्ला करता है, जहां उसकी हार हो, लेकिन वहां शांत रहता है, जहां से उसे जीत मिलती है।
लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने सात चरणों में अपने मत दिए। हालांकि, 2019 की तुलना में मतदान कम रहा। चुनावी विश्लेषक कम मतदान को सत्तारूढ़ दल के विरोध में मतदाता की भावना के रूप में देखते हैं, और यही आधार एग्जिट पोल के अनुमानों का भी होता है। मतदान के बाद एग्जिट पोल सर्वेक्षणों ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोदी-शाह की जोड़ी रणनीतिक सफलता हासिल करने जा रही है।
एग्जिट पोल अनुमानों में व्यक्त किया गया कि मोदी की आक्रामक शैली ने समुदाय विशेष के मतदाताओं को पूरे देश में ध्रुवीकृत करने में अहम भूमिका निभाई। वहीं, कांग्रेस और उसके सहयोगी दल चुनाव के दौरान एक अन्य समुदाय विशेष की तुष्टिकरण की राजनीति करते रहे। मसलन, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पिछड़े वर्ग के आरक्षण में मुसलमानों को शामिल करने का कदम। मोदी ने इस मुद्दे को उठाकर न केवल इन राज्यों में, बल्कि पूरे देश में पिछड़े और अतिपिछड़े वर्ग के मतदाताओं को उनके हकों के प्रति जागरूक किया। नतीजतन, इस वर्ग के मतदाताओं ने राजग को भरपूर वोट दिए। कहा गया कि पीएम मोदी ने इस मुद्दे का लाभ बंगाल में भी उठाया। इसी का परिणाम है कि 2019 में मिलीं 18 सीटों की तुलना में भाजपा को यहां 21 से 28 सीटें मिलने तक का अनुमान बताया था। राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों ने सभी वर्ग के मतदाताओं को लुभाया है।
एग्जिट पोल अनुमानों में कहा गया कि लाडली बहना, मुफ्त राशन, मुफ्त आवास, आयुष्मान योजना जैसी योजनाओं से मिले लाभ के चलते ग्रामीण मतदाता राजग के पक्ष में दिखाई दिया है। स्त्री मतदाता मोदी को चुनने में आगे दिखाई दे रही हैं। परंतु परिणाम आने के बाद मीडिया की ये मुनादियां गलत साबित हुईं।
वर्ष 2019 की तुलना में वोटिंग कम रहने के बावजूद औसत मतदान 62 प्रतिशत से ऊपर रहा था। ये सर्वे यदि 4 जून को आने वाले वास्तविक नतीजों पर खरे उतरते तो राजग गठबंधन स्पष्ट बहुमत में आ जाता। यही नहीं, ऐसा होता तो लोकसभा में बहुमत के लिए राजग को सहयोगियों की जरूरत नहीं पड़ती। ये अनुमान जता रहे थे कि दलित, वंचित और वनवासी मतदाताओं का जातिगत मतदान से मोहभंग हो रहा है और वे क्षेत्रीय संकीर्णता से मुक्त हो रहे हैं।
एग्जिट पोल के चुनावी विश्ोषज्ञ बता रहे थे कि धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों पर सनातन-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हावी रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल के प्रमुखों की ओर से रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का आमंत्रण ठुकराने का असर भी मतदाता पर पड़ा है। लगता है, अब छद्म धर्मनिरपेक्षता का आवरण टूट रहा है। केवल बंगाल में ममता बनर्जी मुस्लिम मतदाताओं के तुष्टिकरण के लिए इसका सहारा ले रही हैं। गौरतलब है कि इस बार भाजपा ने बंगाल को केंद्रित करके हमलावर रणनीति अपनाई है। नतीजतन, कभी वामपंथी रहे लोग अब भाजपा में शामिल होकर उसकी प्रशंसा कर रहे हैं। यह भी कि ऐसे लोगों ने जहां भाजपा को मजबूती दी है, वहीं कम्युनिस्टों के इस गढ़ को बिल्कुल कमजोर करने का काम भी किया है।
एग्जिट पोल के जानकारों का कहना था- एक बार फिर यह मिथक बनता दिखाई दे रहा है कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन से ही प्रधानमंत्री का पद सृजित होगा। इसी मिथक को पुनर्स्थापित करने के लिए मोदी बनारस से चुनाव लड़े हैं। मोदी की यहां आमद ने पूरे पूर्वांचल को भगवा रंग में रंग दिया है। नतीजतन, भाजपा यहां सर्वेक्षणों के अनुसार अच्छी स्थिति में है। यह भी कहा कि स्पष्ट लग रहा है, जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। किंतु परिणाम के बाद देखा कि उ.प्र. और बंगाल में मतदाता ने भाजपा को बड़ा झटका दिया और एग्जिट पोल के अनुमान धराशायी हुए। ऐसे में मुख्य चुनाव आयुक्त का बयान कि एग्जिट पोल व्यर्थ की कवायद है, एक हद तक सही कहा जा सकता है।