For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

अन्याय का बुलडोजर

06:39 AM Oct 03, 2024 IST
अन्याय का बुलडोजर
Advertisement

शीर्ष अदालत ने एक उस विवादास्पद मुद्दे पर स्पष्ट राय देश के सामने रखी है जिसकी तार्किकता को लेकर पिछले कई वर्षों से बार-बार सवाल उठ रहे थे। यानी कुछ राज्य सरकारों के बुलडोजरी न्याय को लेकर। खासकर भाजपा शासित राज्यों में गंभीर अपराधों व अनधिकृत कब्जों के खिलाफ पीला पंजा चलता देखा गया। जाहिरा तौर पर इस तरह की कार्रवाई न्याय की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है। सवाल यह भी है कि जब तक किसी व्यक्ति पर सिर्फ आरोप ही लगे हैं, तो उसका घर कैसे गिराया जा सकता है? इस विवादास्पद कार्यशैली को लेकर दाखिल याचिकाओं की सुनवायी के दौरान देश की शीर्ष अदालत ने तल्ख टिप्पणियां की हैं। अदालत का मानना था कि भले ही कोई व्यक्ति किसी संगीन मामले में दोषी हो तो भी बिना न्यायिक प्रक्रिया पूरी किए ऐसी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। लेकिन साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इसके मायने अवैध निर्माण को संरक्षण देना कदापि नहीं है। दरअसल, इस मामले में केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ से दलील दी जाती रही है कि जिन मामलों में यह कार्रवाई की गई वे गैरकानूनी कब्जे कर किए गए अनधिकृत निर्माण थे। निस्संदेह, ये दलीलें मामले में जरूरी प्रक्रिया को न अपनाये जाने के चलते न्याय के अनुरूप नहीं ठहराई जा सकती हैं। दरअसल, हाल के वर्षों में कई बार देखने में आया कि कुख्यात अपराधियों,हत्यारों व बलात्कारियों के घर जमींदोज कर दिए गए। सतही तौर पर कहा जाता रहा है कि ऐसे अपराधियों में शासन-प्रशासन का भय होना चाहिए। लेकिन इस कार्रवाई को व्यापक अर्थों में देखें तो यह न तो कानून की कसौटी पर खरा उतरती है और ना ही इसे मानवीय दृष्टि से सही कहा जा सकता है। यही वजह है कि गाहे-बगाहे राजनीतिक पार्टियों और सामाजिक संगठनों द्वारा ऐसी कार्रवाई को लेकर सवाल उठाये जाते रहे हैं। निश्चय ही किसी सभ्य समाज में ऐसे सवालों का उठना लाजिमी है।
सर्वोच्च न्यायालय के उस तर्क से सहमत हुआ जा सकता है जिसमें कहा गया था कि किसी मामले में आरोप लगने के बाद ऐसी कार्रवाई कानून सम्मत नहीं है। लेकिन ऐसी कार्रवाई तब भी नहीं की जानी चाहिए जब उसका अपराध साबित हो गया हो। निस्संदेह, घर एक पारिवारिक इकाई का नाम है। एक घर को बनाने में एक व्यक्ति की पूरी उम्र लग जाती है। फिर परिवार के तमाम सदस्यों का भी तो वह घर होता है। उनको अपराधी या आरोपी व्यक्ति के कृत्यों के चलते बेघर तो नहीं ही किया जा सकता। यह न केवल कानून के विरुद्ध है बल्कि अमानवीय कदम भी है। जिनका किसी अपराध से लेना-देना न हो, उन्हें दंडित करना अन्याय ही तो है। फिर यदि किसी व्यक्ति के घर पर आरोपों के चलते बुलडोजर चला दिया गया हो और वही व्यक्ति कालांतर आरोपमुक्त हो जाए, तो ध्वस्त घर बनाने की जिम्मेदारी किसकी होगी? शासन-प्रशासन के अधिकारियों को अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के बजाय विवेक व न्यायसंगत तरीके से कोई निर्णय लेना चाहिए। निस्संदेह, अतिक्रमण का संकट देशव्यापी है, जिसे धर्म-जाति से परे कानून की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। बल्कि तमाम तरह के अतिक्रमणों को बढ़ावा देने में राजनेताओं की बड़ी भूमिका होती है। कालांतर वोट बैंक बनाने के लिये वे इन अवैध निर्माणों को वैध बनाने की कोशिश में जुट जाते हैं। बहरहाल, देश में अतिक्रमण हटाने और बुलडोजर के इस्तेमाल को लेकर देशव्यापी दिशा-निर्देश तय होने चाहिए। जिससे राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थों के लिये इस कार्रवाई को तार्किक ठहराने की कोशिश न कर सकें। साथ ही अवैध निर्माण गिराने की प्रक्रिया सबके लिये एक समान होनी चाहिए। वैसे तो अवैध निर्माण हटाने की प्रक्रिया निरंतर सालभर चलने वाली प्रक्रिया है, इसका चुनाव या लक्षित समय में उपयोग करना गलत होगा। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सभी हितधारकों से सुझाव मांगे हैं ताकि पूरे देश में बुलडोजर के इस्तेमाल के बाबत तार्किक व एकरूपता वाले दिशा-निर्देश राज्य सरकारों को दिए जा सकें। सवाल अधिकारियों का अपनी विश्वसनीयता कायम करने का भी है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement