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किताबों में विज्ञान की सांस मानवता की आस

06:41 AM Apr 22, 2024 IST
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रेनू सैनी

प्रारंभ से अभी तक विश्व में अनेक आविष्कार हुए हैं। उन आविष्कारों ने न केवल मानव का अपितु पूरे ब्रह्मांड का कायापलट कर दिया है। अनेक अति महत्वपूर्ण आविष्कारों में से एक आविष्कार है कलम और पुस्तक। कलम की धार जहां सबसे अधिक तीव्र मानी जाती है, वहीं पुस्तक का स्वर सबसे अधिक तीखा। वे हमसे और आपसे बातें भी करती हैं। पुस्तकों की आवाज़ वहां तक पहुंचती है, जहां तक कोई आवाज़ नहीं पहुंच पाती। आदित्य रहबर ने अपनी कविता ‘किताबें’ में लिखा है कि—
‘किताबों का अलग एक अपना धर्म होता है
जहां विज्ञान सांस लेता है
मानवता मुस्कराती है।’
पुस्तकें व्यक्ति के अंतर्मन और व्यक्तित्व को पूरी तरह संवार देती हैं। पढ़ना एक छेनी की तरह है। छेनी का प्रयोग पत्थर की आकृति को संवारने में किया जाता है। अगर छेनी का प्रयोग न किया जाए तो पत्थर किसी कलाकृति और आकृति में न ढल पाए। उसी तरह यदि पुस्तकें न होतीं तो व्यक्ति का व्यक्तित्व खुरदरा ही रहता। पुस्तकें पढ़ने से व्यक्ति का खुरदरा व्यक्तित्व चिकना होता है। अबिगैल वैन बुरेन से गंभीर पाठक अवश्य परिचित होंगे। उन्हें ‘प्रिय एब्बी’ के नाम से भी जाना जाता है। वे एक मार्गदर्शन प्रदान करने वाला कॉलम लिखा करती थीं। उनका यह मार्गदर्शन वाला कॉलम 50 से भी अधिक वर्षों से चल रहा है। उनके उस कॉलम को पढ़कर अनेक लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। एक बार उनसे कहा गया कि यदि आपको युवाओं को कोई सलाह देने के लिए कहा जाए तो आप उन्हें क्या सलाह देंगी? इस पर वे मुस्कराते हुए बोलीं, ‘यदि मैं युवाओं को सलाह दूंगी तो यह है पढ़ो, पढ़ो, पढ़ो! पढ़कर आप वास्तविक और काल्पनिक संसारों के लिए द्वार खोल देंगे। जानकारी के लिए पढ़ें, आनंद के लिए पढ़ें। हमारे पुस्तकालय ज्ञान तथा आनंद से भरे हुए हैं और यह सब यहां पर मौजूद हैं। जो व्यक्ति पढ़ता नहीं है, वह उस व्यक्ति से बेहतर स्थिति में नहीं है, जो पढ़ नहीं सकता।’
पुस्तकें जीवन का ऐसा हथियार हैं जो मुसीबत और समस्याओं के सामने सर्वोत्तम हथियार साबित होती हैं। पुस्तकें बोलती हैं क्योंकि इनको पढ़ने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व में गजब का सकारात्मक परिवर्तन आ जाता है। पुस्तकों से बातें करने वाला व्यक्ति समाज को ऐसे मार्ग पर ले जाता है जहां पर समाज सुखद परिवर्तनों से चौंक उठता है।
यशोदा, उत्तर प्रदेश स्थित कौशांबी गांव से है। उनका परिवेश पूरी तरह से हिन्दी था। उन्होंने 12वीं कक्षा हिन्दी माध्यम से पास की थी। बचपन से ही यशोदा को पढ़ने का बहुत शौक था। किताबों के इस शौक ने यशोदा को न केवल मुसीबतों से उभारा, बल्कि उसके अंदर एक ऐसा हुनर भी उत्पन्न किया जिससे गांव वाले दांतों तले अंगुली दबाते रह गए।
लगभग 28 वर्षीय यशोदा विवाहित है। पहले यशोदा ग्रामीण बहुओं की तरह रहकर अपने सास-ससुर की सेवा करती थी। एक दिन उनके पति राधे सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए। वे दिहाड़ी मजदूर थे। उनके बिस्तर में पड़ने से रोजी-रोटी की दिक्कतें बढ़ गईं। घर का गुजारा चलाना मुश्िकल हो गया। अब परिवार क्या करे? ऐसे में यशोदा ने पुस्तकों के माध्यम से स्वयं को निखारा। उसने बहुत सोचा-विचारा कि आखिर अपने पुस्तक प्रेम से वह कैसे रोजगार की तलाश पूर्ण करे?
एक दिन उसने अपने आसपास देखा तो पाया कि वहां की बालिकाएं और युवा अंग्रेजी से बहुत झिझकते थे। बस यशोदा को राह मिल गई और वे इस राह पर चल पड़ी। किसी को कुछ सिखाने से पहले उसमें स्वयं प्रवीण होना अनिवार्य है। ऐसे में यशोदा ने कमर कस ली। उन्होंने अंग्रेजी की पुस्तकें एवं समाचार-पत्र पढ़ने आरंभ कर दिए। अनेक पुस्तकें ऑनलाइन ऑर्डर कर उनको पढ़ा। पुस्तकें पढ़ने के बाद उन्होंने अंग्रेजी बोलने और लिखने का अभ्यास किया। अंग्रेजी बोलने वाले वीडियो लगातार सुने। जब उन्हें लगा कि अब वे अपने कार्य में कुशल हो गई हैं तो उन्होंने गांव की बच्चियों और विद्यार्थियों को अंग्रेजी की कक्षाएं देनी आरंभ कर दीं। उन्होंने अपना अंग्रेजी सिखाने का यूट्यूब चैनल भी खोल लिया। कुछ ही समय बाद उनका गांव प्रसिद्ध हो गया। जब लोगों ने यह देखा कि एक ग्रामीण बहू घूंघट में अंग्रेजी बोलती है तो सभी ने दांतों तले अंगुली दबा ली। यशोदा का कहना है कि, ‘यदि पुस्तकें मेरी मित्र नहीं होतीं तो मैं कभी भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती। आज मैं जो कुछ भी हूं वह सिर्फ पुस्तकों के कारण हूं।’
यशोदा के गांव में अब सभी शिक्षा और पुस्तकों के महत्व को समझ गए हैं।
लैकोरडेयर का कहना है कि, ‘जीवन को सुखी बनाने के लिए केवल तीन चीजें आवश्यक हैं—ईश्वर की कृपा, पुस्तकें और एक मित्र।’ जो व्यक्ति पुस्तकों की आवाज सुनता है, उनको गुनता है उस पर ईश्वर की कृपा स्वयंमेव ही हो जाती है। इसके साथ ही उसके अच्छे मित्र भी बन जाते हैं क्योंकि ज्ञानवान और विवेक व्यक्ति का साथ सभी पसंद करते हैं।
पुस्तकें बोलती हैं, बातें करती हैं और राह दिखाती हैं। यदि आपने अभी तक पुस्तकों से बातें करना आरंभ नहीं किया है तो देर मत कीजिए। आज और अभी किसी भी पुस्तक को उठाइए, उसे खोलिए और पढ़ना आरंभ कर दीजिए। पुस्तक पढ़ने के बाद आप पाएंगे कि आपके ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल गए हैं।

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