एक वैभवशाली राज्य का आद्योपांत
हर्ष देव
विजयनगर दक्षिण भारत में (1336-1646) मध्यकालीन साम्राज्य था। इसके राजाओं ने 310 वर्ष तक शासन किया। इसका प्रचलित नाम कर्नाटक साम्राज्य था। इस राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर और बुक्का राय ने की थी। पुर्तगाली इस साम्राज्य को बिसनागा नाम से पुकारते थे। लगभग सवा दो सौ वर्ष तक उत्कर्ष का वैभव भोगने के बाद 1565 में इस राज्य को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। राजधानी विजयनगर को जला दिया गया। उसके पश्चात लुटी-पिटी हालत में यह 70 वर्ष और चला। राजधानी विजयनगर के अवशेष आधुनिक कर्नाटक राज्य में हम्पी शहर के निकट मिलते हैं। यह एक विश्व विरासत स्थल है। पुरातात्विक खोज से इस साम्राज्य की शक्ति, विस्तार तथा धन-सम्पदा का पता चलता है।
विजयनगर साम्राज्य के उत्थान से उसके अंत की यात्रा पर एक पुस्तक आई है जिसे नवीन पंत ने लिखा और सर्वभाषा ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है। उसमें विजय नगर साम्राज्य से संबंधित जानकारियों के विवरण को दर्ज किया गया है जो 15 अध्यायों में है। लेखक ने कई स्थानों पर राज्य की मुसलमान सेना का उल्लेख किया है। क्या यह सेना राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर कोई स्वतंत्र बल के रूप में काम करती थी? स्वतंत्र थी तो राज्य की सुरक्षा सेना में शामिल क्यों थी और यदि उसी का अंग थी तो उसका उल्लेख अलग से करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
पुस्तक में पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस और फरनाओ नूनिज (दोनों में से किसी का भी परिचय लेखक ने नहीं दिया है!) के यात्रा विवरण बहुत विस्तार से उद्धृत किए गए हैं। पेस 1520 में विजयनगर राज्य के भ्रमण पर पहुंचा था। उसने राजकाज, वहां की शासन व्यवस्था, जनजीवन, सामाजिक रहन-सहन, लोक व्यवहार, धार्मिक विश्वासों आदि पर काफ़ी सूक्ष्म दृष्टि के साथ प्रकाश डाला है। राजा ब्राह्मणों से मुख्य सरोवर के तटबंध टूटने का कारण पता लगाने को कहता है और ब्राह्मण बताते हैं कि देवता नाराज़ हैं, उनको प्रसन्न करने के लिए बलि देनी होगी। राजा हाथी-घोड़ों आदि पशुओं के साथ बलि देने का भी अनुष्ठान पूरा करता है। राज्य की सभी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को निभाने का दायित्व ब्राह्मणों पर ही है। डोमिंगो के अनुसार राजा के हरम में 12 हज़ार तक रानियां हो सकती हैं लेकिन इनमें केवल 12 ही मुख्य हैं। इनमें भी तीन की संतानों को ही उत्तराधिकारी बनने का अधिकार है।
डोमिंगो पेस की तरह फरनाओ नूनिज ने एक यात्री के रूप में राज्य का भ्रमण किया था। वह डोमिंगो के 15 वर्ष बाद विजयनगर पहुंचा था। वह भी पुर्तगाली यहूदी था और घोड़ों का व्यापारी था। नूनिज ने तीन साल (1535-1537) वहीं बिताए। राज्य से संबन्धित उसके विवरण डोमिंगो से भी अधिक प्रामाणिक और सूक्ष्म विवेचन से समृद्ध हैं। पुस्तक का सारा दारोमदार उपर्युक्त दोनों यात्रियों के वृत्तांतों पर ही निर्भर और उन तक सीमित है। लेखक ने इसी कारण किसी संदर्भ ग्रंथ का हवाला भी नहीं दिया है।
पुस्तक : विजयनगर लेखक : नवीन पंत प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, दिल्ली पृष्ठ : 183 मूल्य : रु. 400.