चूहों का अद्भुत रहस्यलोक
करणी माता जिन्हें स्थानीय लोग देवी दुर्गा का अवतार मानते हैं, जो हिंदू धर्म में एक रक्षक देवी मानी गई है। करणी माता एक योद्धा एवं ऋषि थीं। एक तपस्वी का जीवन जीने के कारण स्थानीय लोगों द्वारा अत्यधिक पूजनीय थीं।
देवेन्द्रराज सुथार
विविधता हिंदू धर्म की सबसे अनूठी विशेषता है। आध्यात्मिकता और प्रतीकवाद इसके दो मूलभूत तत्व हैं। साथ ही, धर्म के इन दो तत्वों का हिस्सा पशु-पक्षी व प्रकृति भी हैं। पशु-पक्षियों की अनुल्लंघनीयता की मुखर हिंदू मान्यता वास्तव में भारतीय संस्कृति के सबसे उल्लेखनीय पहलुओं में से एक है। कई प्राचीन भारतीय साहित्यिक ग्रंथों में मूक प्राणियों को प्रेम, एकता और संस्कृति के प्रतीक के रूप में माना गया है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में प्रत्येक जीव में परमात्मा के दर्शन होते हैं। कीट-पतंग और पशु-पक्षी का जीवन भी मनुष्य जीवन के समतुल्य माना गया है। भगवान के अनेक पशु अवतारों ने जीव जगत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित कर महत्ता सिद्ध की है। एक ऐसा ही जीव संरक्षण से जुड़ा चूहों का अद्भुत रहस्यलोक है करणी माता मंदिर। राजस्थान में बीकानेर जिले से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित इस मंदिर की व्यापक मान्यता है।
असल में यह मंदिर अपने स्थान या वास्तुकला के बजाय 25,000 से अधिक चूहों का स्थायी निवास होने के कारण लोकप्रिय है, जो मंदिर परिसर में चारों ओर स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं। इन्हें अच्छी तरह से खिलाया, संरक्षित और पूजा जाता है। चूहों को दूध, मिठाई और अनाज के विशाल धातु के कटोरे के चारों ओर घूमते और खाते देखा जा सकता है। इन चूहों की उपस्थिति शुभ मानी जाती है और मंदिर के धार्मिक उत्साह को बढ़ाती है। यदि किसी के पैर में चूहा दौड़ जाए, तो उसे अत्यधिक शुभ माना जाता है। भारत और विदेशों के विभिन्न कोनों से लोग इस अद्भुत दृश्य को देखने आते हैं और इन पवित्र प्राणियों के लिए दूध, मिठाई और अन्य प्रसाद भी लाते हैं। इनमें सफेद चूहों को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, क्योंकि उन्हें करणी माता और उनके पुत्रों का अवतार माना जाता है। भक्त मिठाई की पेशकश के माध्यम से अक्सर उन्हें बाहर निकालने के लिए भारी प्रयास करते हैं।
हालांकि, गलती से भी चूहे को चोट पहुंचाना या मारना इस मंदिर में एक गंभीर पाप है। यहां न भक्त चूहों से डरते हैं और न चूहे भक्तों से डरते हैं। इस रैट टेंपल में हजारों चूहे होने पर भी कभी प्लेग का एक भी मामला मंदिर या उसके आसपास देखने को नहीं मिलता है। जिन्हें माता करणी का दूत माना जाता है। मरे हुए चूहों का अंतिम संस्कार करने की भी व्यवस्था है। चूहों को सुरक्षित रखने के लिए परिसर को तार और ग्रिल किया गया है।
उल्लेखनीय है कि करणी माता जिन्हें स्थानीय लोग देवी दुर्गा का अवतार मानते हैं, जो हिंदू धर्म में एक रक्षक देवी मानी गई है। करणी माता चारण जाति की एक योद्धा एवं ऋषि थीं। एक तपस्वी का जीवन जीने के कारण स्थानीय लोगों द्वारा अत्यधिक पूजनीय थीं। इस मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में संपन्न कराया गया था। पूरे मंदिर की संरचना संगमरमर से बनी हुई है और इसकी वास्तुकला मुगल शैली से मिलती-जुलती है। मंदिर का अग्रभाग आकर्षक संगमरमर से मढ़ा हुआ है और मुख्य द्वार पर चांदी के दरवाजे हैं। चांदी के दरवाजे देवी की कई किंवदंतियों को दर्शाते हैं। माता की मूर्ति मंदिर के आंतरिक गर्भगृह के भीतर विराजमान है। 75 सेमी ऊंची मूर्ति एक हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए व मुकुट और माला से सुशोभित है। देवी की मूर्ति के दोनों ओर उनकी बहनों की मूर्ति है। वर्ष 1999 में हैदराबाद स्थित करणी ज्वेलर कुंदन लाल वर्मा द्वारा मंदिर का विस्तार किया गया।
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कैसे पहुंचे
मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो मंदिर से 220 किमी की दूरी पर है। हवाई अड्डे से आप आसानी से कैब या निजी-सरकारी परिवहन बसें ले सकते हैं, जो बहुतायत में उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन बीकानेर रेलवे स्टेशन (30 किमी दूर) है, जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आमतौर पर मंदिर रोजाना सुबह 4 बजे जनता के लिए खुलता है। करणी माता मेला साल में दो बार मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्तूबर में आयोजित किया जाता है। इस समय अवधि के दौरान आने पर मेले का आनंद ले सकते हैं।