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वंचितों के अधिकारों हेतु संघर्ष रहा मकसद

08:34 AM Apr 13, 2024 IST
वंचितों के अधिकारों हेतु संघर्ष रहा मकसद
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डॉ. केएल जौहर

अक्सर डॉक्टर अंबेडकर और उनके निर्देशन में निर्मित संविधान चर्चा का विषय बने रहते हैं। वर्तमान हालात में भी विपक्ष सोचता है कि यदि मौजूदा सरकार फिर सत्ता में आई तो वह इस संविधान को बदल डालेगी परन्तु सरकार इस बात से इंकार करती रही है। भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में ऐसे मुद्दों पर आशंकाएं व चर्चा होना स्वाभाविक भी है। फिलहाल, इस स्थिति को यहीं छोड़ते हुए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के व्यक्तित्व पर ध्यान देना समीचीन होगा।
भीमराव अंबेडकर एक महान व्यक्तित्व के धनी थे। एक निर्धन परिवार से थे परन्तु अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, गहन ज्ञान और छात्रवृत्ति के बलबूते उनकी सारी उच्च शिक्षा अमेरिका स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी और फिर ब्रिटेन में हुई। उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि के साथ कानून की शिक्षा भी प्राप्त की। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वे बीसवीं शताब्दी में सबसे अधिक पढ़े-लिखे विद्वान थे।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अमेरिका और लंदन में सब जातियों में बराबरी और भाईचारे का अनुभव किया परन्तु जब वे 1917 में भारत लौटे तो एक विचित्र नक्शा उनकी आंखों के सामने आया। जाति, धर्म, भाषा के भेदभाव ने उनकी आत्मा को झकझोर कर रख दिया। हालांकि वे काफी हद तक तो इस समस्या को अपनी बाल्यावस्था में ही देख चुके थे।
संविधान के ‘जनक’ कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश में हुआ। उनके साथ स्कूल में बहुत भेदभाव किया जाता था। यहां तक कि उनको कक्षा से दूर बैठाया जाता। वे उस नल से पानी भी नहीं पी सकते थे जिससे आम विद्यार्थी पीते थे। जल्दी ही वे मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र चले गए जो फिर जीवनभर उनकी कार्यस्थली रही। इसके बाद तो उन्होंने समाज सुधार का बीड़ा भी उठा लिया। अनुसूचित जातियों का उत्थान उनका एकमात्र लक्ष्य बन गया था। इस आशय को लेकर उनके कई लेख समाचारपत्रों में प्रकाशित हुए।
डॉ. अंबेडकर ने कई पत्रिकाओं का भी प्रकाशन किया जिनमें मूकनायक, बहिष्कृत भारत और जनता प्रमुख हैं। उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का गठन किया और अनुसूचित जातियों की दशा पर विस्तृत प्रकाश डाला। वे मानते थे कि हिन्दू धर्म ग्रन्थ मनुस्मृति ही इस भेदभाव का मूल सूत्रधार है। देशभर में घूमकर उन्होंने अनुसूचित जातियों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठाया। डॉक्टर अंबेडकर महात्मा गांधी से इस बात को लेकर रुष्ट थे कि उन्होंने अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए कुछ खास व पर्याप्त नहीं किया। उन दिनों जब गांधी जी के नेतृत्व से कोई बड़े से बड़ा नेता भी उलझ नहीं पाता था, अंबेडकर ने अपनी आवाज़ उठाई। अब तक अंबेडकर अनुसूचित जातियों के नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। उन्हें 1930, 1931 और 1932 की गोलमेज़ कान्फ्रेंस में आमंत्रित किया गया। गांधीजी ने विरोध किया परन्तु सब बेअसर। गोलमेज़ कान्फ्रेंस के उपरांत ‘कम्युनल अवार्ड’ की घोषणा हुई। गांधी जी देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद थे। उन्होंने आमरण अनशन आरंभ कर दिया। अब तो सारा देश अंबेडकर पर दबाव डालने लगा कि वह गांधी जी से मुलाकात करें। अंततः यह मुलाकात 22 सितम्बर, 1932 को हुई और पूना पैक्ट के रूप में एक समझौता सामने आया। गांधी जी की जान बच गई जबकि अंबेडकर अनुसूचित जातियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र लेने में सफल हुए। फिर भी गांधी और अंबेडकर में मनमुटाव तो जारी ही रहा।
बहरहाल, यह गौर करने लायक बात है कि अंबेडकर ने एक दिन भी स्वतंत्रता संग्राम में जेल नहीं काटी। देश-समाज की सेवा व उन्नयन का मकसद साधने का उनका तरीका अलग ही था। दरअसल, उनके बड़े हथियार थे- अनुसूचित जातियों का नेतृत्व, तीक्ष्ण बुद्धि और कानून पर पकड़। इसी बलबूते बाद में उन्हें संविधान के प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष के रूप में एक तरह से संविधान निर्माण हेतु आमंत्रित किया गया। जो संविधान हम आज देखते हैं वो बाबा साहेब अंबेडकर की देन है। उनकी कानून पर पकड़ और सूझ-बूझ को देखते हुए पंडित नेहरू ने उनको अपनी सरकार में सम्मिलित किया। वे 1951 तक कानून मंत्री रहे परन्तु फिर पंडित नेहरू से गंभीर मतभेद होने पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
वर्ष 1952 में लोकसभा के लिए चुनाव में सफलता नहीं मिली। राज्यसभा के लिए मनोनीत किये गए परन्तु चुनाव की राजनीति से दिल उकता गये। वे अस्वस्थ रहने लगे। वहीं उनकी इच्छा के अनुसार अनुसूचित जातियों का उत्थान भी नहीं हो रहा था। उन्होंने लाखों अनुयायियों के साथ 14 अक्तूबर, 1956 में नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाया। फिर 6 दिसंबर को उनका देहांत हो गया। साल 1990 में उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा गया। हजारों कॉलेज, स्कूल और विश्वविद्यालय डॉ. अंबेडकर के नाम पर स्थापित किये गए। देश-विदेश में इनकी पहचान बनी। ऐसे व्यक्तित्व के धनी डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतवर्ष के इतिहास में सदैव अमर रहेंगे।

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