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आतंक का नासूर और राजा फुर्र

01:23 PM Aug 19, 2021 IST
आतंक का नासूर और राजा फुर्र
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अपने लॉन में बंदरों को आते देख मैंने खिलौना बंदूक से नकली बुलेट दाग कर जोर की आवाज की। ठांय की आवाज सुनकर बंदर तो टस से मस नहीं हुये पर घर के सामने बिजली की तार पर बैठे अनेक चिड़िया-कबूतर डर के मारे तपाक से उड़ लिये। ठीक इसी तरह के डर से अफगानिस्तान का शासक भी अपने हौसले, हिम्मत, धर्म और आत्मा को हड़ाबड़ी में फेंककर और अपने माल को झोले में समेट कर भाग खड़ा हुआ। देखते ही देखते पूरी प्रजा भाग्य और भगवान के हवाले हो गई और उनके चेहरों की मुस्कान और उम्मीदें भी घबराई हुई चिड़िया की तरह फुर्र हो गई। जिनके कन्धों पर प्रजा की हिफाज़त की जिम्मेवारी थी, वे ही फुर्र हो गये, जिस सेना ने दुश्मनों को चने चबवाने थे, वह खुद ही चने चबाने लग गई। तालिबानियों के क्रूर चेहरे देखकर लोगों में कोहराम-सा मच गया। लोग ठगे से रह गये।

अफगानिस्तान के बच्चों-महिलाओं और आम नागरिकों की दशा और लावारिस में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा। उनके चेहरों की बेबसी ने हवाइयां उड़ा दी हैं और वे वहां से उड़ कर भाग जाना चाहते हैं। सड़कों पर खुलेआम बंदूकधारियों, मिसाइलों और टैंकों को देख रोमांचित नहीं बल्कि घबराहट में मरे जा रहे हैं। जान बचाने के लिये हवाई जहाज के टायरों से चिपट कर या उसके पंखों से लिपट कर किसी तरीके अफगानिस्तान से पलायन चाहते हैं। इसे ही जिजीविषा कहा जाता है। जिंदगी गठरी में लिपटी हुई अमूल्य दौलत हो गई है जिसे उठाकर सब किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच जाना चाहते हैं।

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विस्थापित होने का भय और जान का जोखिम अफगानिस्तान के आम जन के चेहरे पर भयावह भाव की तरह पुत गया है। लगता है कि सेल्फी लेने वालों के हाथ कानून से भी लम्बे होते हैं। लोग बदहवासी में जिंदगी की डोर भी ढूंढ़ रहे हैं और साथ ही सेल्फ वीडियो बनाने में भी जुटे हैं ताकि ये वीडियो ही कल को उनकी बदहवासी का प्रमाण बनें।

तालिबान के फरमान महिलाओं को आतंकित करने में जुट गये हैं। बेशर्मी के नकाब हटाकर तालिबानियों ने औरतों की आजादी पर कालिख पोत दी है। रातोंरात बुर्का बेचने वालों की चांदी हो चली है। मानवाधिकार वाले नायक तो फिलहाल कुंभकर्णी निद्रा में हैं।

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एक बर की बात है अक सुरजे की लुगाई मरगी तो नत्थू अफसोस करण गया अर बैठते ही पूच्छी—के हो गया था, क्यूंकर मरगी? सुरजा बोल्या—अपणे भाई की बरात मैं जावै थी अर उसके ताऊ नैं गोली चलाई जो उसके मात्थे मैं जा लगी। नत्थू ढांढस बंधाते होये बोल्या—शुकर है रामजी का आंख तो बचगी बिचारी की।

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