मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

दहशत की दस्तक

07:39 AM Jul 18, 2024 IST
Advertisement

जम्मू में आतंकवाद के खिलाफ आपरेशन पर निकले जवानों को एक बार फिर आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाया जाना बताता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लंबी चलेगी। सोमवार को डोडा में हुए आतंकवादी हमले में एक कैप्टन समेत चार जवानों का बलिदान बताता है कि पाक समर्थित आतंकवादियों ने बदले हालात में हमले की रणनीति में बदलाव किया है। कश्मीर के बजाय जम्मू क्षेत्र में दहशत फैलाने की सोची-समझी साजिश रची है। यही वजह है पिछले करीब डेढ़ माह में देश ने जम्मू इलाके में ग्यारह जवानों को खोया है। वहीं दस नागरिक भी आतंकी हिंसा का शिकार बने हैं। बहरहाल, ये हालात उन दावों के विपरीत हैं जिसमें कहा जाता रहा है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी में आतंकवाद पर अंकुश लगा है। सुरक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने सुनियोजित तरीके से घाटी के बजाय जम्मू को आतंकवादी घटनाओं के लिये चुना है। दरअसल, अब तक आतंक का केंद्र रही कश्मीर घाटी में सु्रक्षा चक्र मजबूत है। वहीं दूसरी ओर एलओसी पर सख्त नियंत्रण के चलते जम्मू से लगते इंटरनेशनल बॉर्डर को घुसपैठ के लिये चुना गया है। आतंकवादियों द्वारा सैनिकों को निशाना बनाने से साफ है कि पाक सेना के लोग आतंकवादियों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। वहीं कश्मीर में सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन नये छद्म नामों से हमलों की जिम्मेदारी ले रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि जम्मू क्षेत्र में हालिया आतंकी गतिविधियों में वृद्धि की वजह यह भी है कि अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले जम्मू इलाके में पिछले कुछ वर्षों में सैन्य तैनाती को घटाया गया है। दरअसल, पूर्वी लद्दाख के गलवान में चीनी सैनिकों से संघर्ष के बाद बड़ी संख्या में सैनिकों को जम्मू से हटाकर लाइन ऑफ एक्चुएल कंट्रोल पर भेजा गया था। ऐसा चीन की भारी सैन्य तैनाती के बाद किया गया था।
वैसे वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में बदलाव के बाद घाटी में कमोबेश आतंकी घटनाओं में कमी देखी गई। लेकिन आतंकवादियों ने जम्मू में सुरक्षाबलों की कमी का लाभ उठाकर हमले तेज कर दिये। हालिया घटनाएं केंद्र सरकार को मंथन का संदेश देती हैं कि जम्मू-कश्मीर में दशकों से स्थापित व्यवस्था में परिवर्तन के वक्त विपक्ष को साथ लेकर इस स्थिति को बदलने से उत्पन्न दूरगामी परिणामों पर विचार किया जाना चाहिए था, जिससे क्षेत्र के लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने में मदद मिलती। वहीं दूसरी बात यह भी है कि ये हमले तब तेज हुए हैं जब केंद्र में मजबूत सरकार के बजाय एक गठबंधन सरकार आई है। पाक हुक्मरानों को ये मुगालता रहा है कि कमजोर केंद्र सरकार के दौर में वे अपने मंसूबों को अंजाम दे सकते हैं। वहीं हमले ऐसे वक्त में बढ़े हैं जब केंद्रशासित प्रदेश में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली की सरगर्मियां बढ़ी हैं। जम्मू-कश्मीर में हाल के लोकसभा चुनावों में बंपर मतदान हुआ था। जो पाक हुक्मरानों को रास नहीं आया। बहरहाल, अब केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा बलों को कार्रवाई की खुली छूट देने, जम्मू क्षेत्र में अधिक सुरक्षाबलों की तैनाती तथा विभिन्न सुरक्षा संगठनों में बेहतर तालमेल से देर-सवेर आतंकियों को कुचलने में मदद मिल सकेगी। हालांकि, भौगोलिक रूप से बेहद जटिल इलाके में किसी आपरेशन को चलाना कठिन होता है क्योंकि आतंकवादी सुरक्षित मांदों से हमले संचालित कर रहे होते हैं। कठुआ में दो सैनिक ट्रकों पर हमला ऐसी ही सुनियोजित साजिश थी, जिसमें हमने पांच जवानों को खोया था। वहीं जम्मू क्षेत्र में तीर्थयात्रियों की एक बस को भी निशाना बनाया गया था। हालांकि आतंकवादी छिपने के लिये जंगलों व गुफाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद खुफिया तंत्र को भी मजबूत करने की जरूरत है। वहीं विडंबना यह है कि इन आतंकी हमलों के बाद असहज करने वाले राजनीतिक बयान आए हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे को राजनीतिक लाभ का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर सत्तापक्ष विपक्ष को एकजुटता का परिचय देना चाहिए, ताकि आतंकवाद से जूझते सैनिकों का मनोबल ऊंचा रहे। इसके साथ ही सतर्क, संगठित और मजबूत अभियान आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर सकता है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement