For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

पंजाबी यूनिवर्सिटी में दसवीं विश्व पंजाबी साहित्य कांफ्रेंस संपन्न

01:52 AM May 03, 2025 IST
पंजाबी यूनिवर्सिटी में दसवीं विश्व पंजाबी साहित्य कांफ्रेंस संपन्न
Advertisement

संगरूर, 2 मई (निस) : पंजाबी यूनिवर्सिटी के पंजाबी साहित्य अध्ययन विभाग द्वारा ‘पंजाबी भाषा एवं संस्कृति: स्थिति एवं संभावनाएं’ विषय पर आयोजित 10वीं विश्व पंजाबी साहित्य कांफ्रेंस संपन्न सफलतापूर्वक संपन्न हुई। सम्मेलन का समापन भाषण देते हुए प्रख्यात विचारक प्रो. सुखदेव सिंह सिरसा ने कहा कि हमें इस बात पर स्पष्ट होना चाहिए कि पंजाबी पहचान को किन तत्वों के माध्यम से समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब वैश्वीकरण के युग में हमें कई चीजों को पुनः परिभाषित करने की जरूरत है।

Advertisement

उन्होंने कहा कि अब जबकि विश्व एक गांव बन गया है और हमें अलग-अलग पहचानों और संस्कृतियों वाले समाज में रहना पड़ रहा है, तो हमें कुछ मामलों में पुनर्विचार करने और अधिक उदार होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अब अतीत के अवचेतन के साथ जीना कठिन है। एक अन्य महत्वपूर्ण टिप्पणी में उन्होंने कहा कि निजीकरण के खिलाफ लड़े बिना कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती।

डॉ. सिंह विदाई सत्र में विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। स्वराज सिंह ने साहित्य और संस्कृति के बीच संबंधों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के युग में पंजाबियों को सांस्कृतिक रूप से सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है।इस सत्र की अध्यक्षता भाषा संकाय की डीन डॉ. बलविंदर कौर सिद्धू ने की। अपने भाषण में उन्होंने पंजाबी के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की।

Advertisement

विभागाध्यक्ष डॉ. परमीत कौर ने सम्मेलन की सफलता के लिए सभी का आभार व्यक्त किया तथा बताया कि सम्मेलन में विषय से संबंधित 115 शोध पत्र शामिल किए गए।

पंजाबी साहित्य कांफ्रेंस संपन्न : इन मुद्दों पर हुई चर्चा

विदाई सत्र से पहले अंतिम अकादमिक पैनल के दौरान चर्चा की शुरुआत प्रो. सरबजीत सिंह ने की। इस सत्र में प्रो. जोगा सिंह, प्रो. भूपिंदर सिंह खैरा, प्रो. जसविंदर सिंह वक्ता के रूप में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने पंजाबी साहित्य एवं संस्कृति की वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए समकालीन युग में पंजाबी साहित्य, संस्कृति एवं भाषा के समक्ष चुनौतियों का जिक्र किया। मशीनी बुद्धि के इस युग में पंजाबी साहित्य एवं संस्कृति के समक्ष चुनौतियों के साथ-साथ सार्थक संभावनाओं का भी उल्लेख किया गया।

विदाई सत्र के अवसर पर डॉ. गुरनैब सिंह, डॉ. राजिंदर कुमार लाहिड़ी, डॉ. गुरसेवक सिंह लंबी, डॉ. सीपी कंबोज, डॉ. सुरजीत सिंह भट्टी, डॉ. राजमुहिन्दर कौर, डॉ. गुरप्रीत कौर, डॉ. परमिंदरजीत कौर, स. जसबीर सिंह जवदी, हरप्रीत सिंह साहनी, हरनूर सिंह, मनप्रीत सिंह, डॉ. करमजीत कौर, डॉ. हरमिंदर कौर, डॉ. अमनजोत कौर, डॉ. जतिंदर सिंह मट्टू, डॉ. अमरेंद्र सिंह, अली अकबर के साथ-साथ बड़ी संख्या में विद्वानों, आलोचकों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।

Advertisement
Tags :
Advertisement