मंदिर ही पर्याप्त नहीं, राम के आदर्श भी जरूरी
केएस तोमर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के साथ राजनीति में पदार्पण कर दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार का व्यक्तित्व विरल ही रहा है। जब-जब उन्हें लगा कि भाजपा नेतृत्व कहीं आदर्शों का त्याग कर रहा है तो शांता कुमार ने उन्हें भी कटघरे में खड़ा करने से गुरेज नहीं किया। उनका कहना है कि केवल अयोध्या में राम मंदिर निर्माण काफी नहीं, इसके साथ ही राम के आदर्शों पर भी चलना होगा।
इस समय जब देश में, विशेषकर उत्तर भारत में धार्मिक भावनाएं उछाल पर हैं, शांता कुमार का कहना है कि सभी नेताओं में सद्बुद्धि आनी चाहिए। उन्हें देश के सम्मान की रक्षा का प्रण लेना चाहिए। शांता कुमार को दु:ख है कि मौजूदा दौर में राजनीति केवल सत्ता पर काबिज होने के लिए की जा रही है। यह भी कि उनकी पार्टी की राह भी इससे शायद ही जुदा हो।
हाल ही में कुछ विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री का मत है कि भाजपा अपने दम पर सत्ता में लौट रही है, इन परिस्थितियों में गिरफ्तारियों का कोई औचित्य नहीं। यूं भी चुनावों की घोषणा के बाद आचार संहिता लागू है। उन्होंने कहा कि यद्यपि देश ने कुछ वर्ष पूर्व भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया था लेकिन देखने की बात है कि क्या मौजूदा व्यवस्था में भ्रष्टाचार में कमी आई है। यूं भी हालात को अंतर्राष्ट्रीय पारदर्शिता संस्थान की रिपोर्ट में उजागर किया गया है। उनका मानना है कि सत्ता के लिए अन्य दलों के भ्रष्टाचार के आरोपी कुछ नेताओं को पार्टी में शामिल किए जाने से भाजपा के समर्पित और पुराने कार्यकर्ता निराश हैं। ऐसे प्रयास भविष्य में पार्टी के लिए गलत सिद्ध होंगे।
शांता कुमार ने चंडीगढ़ में मेयर चुनाव में हुई कथित हेराफेरी का हवाला देता हुए कहा कि इस मामले से पार्टी के संदर्भ में लोगों में गलत संदेश गया। सत्ता में जब स्वयंसेवक थे तो वे ऐसे प्रलोभनों से दूर रहे। अस्सी के दशक के अंत में एक बार चार विधायकों को दलबदल करवाने का यदि ऐसा प्रयास किया होता तो उस समय कांग्रेस की बजाय भाजपा की सरकार बन जाती। लेकिन शांता कुमार के मुताबिक, उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को स्पष्ट कर दिया था कि यदि वे ऐसा चाहते हैं तो पार्टी नेतृत्व किसी और को सौंप दें। इस पर अटल जी ने भी जयपुर से फोन पर कहा था कि झुकने की आवश्यकता नहीं है और विपक्ष में बैठें। इसका लाभ यह हुआ कि 1990 में भारी बहुमत से भाजपा सरकार बनी।
देश में शायद शांता कुमार ही एकमात्र राजनेता हैं जिन्होंने गुजरात दंगों के बाद खुल कर अपना मत पार्टी के समक्ष रखा। हालांकि बाद में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का उन्होंने समर्थन भी किया था। इसी तरह कुछ माह पूर्व गुजरात सरकार द्वारा गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक ब्लात्कार कांड के दोषियों को छोड़े जाने पर उनका रुख था कि गुजरात सरकार अपना निर्णय बदले। वहीं उन्होंने चुनी हुई सरकारों को गिराने का कृत्य भी गलत ही ठहराया। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार भाजपा के उन वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जिन्हें 75 वर्ष से अधिक आयु होने के कारण सेवानिवृत्त कर मार्गदर्शक बना दिया गया था।
शांता कुमार उन नेताओं में से हैं जो समय-समय पर देश के हालात पर अपनी बेबाक राय देते रहते हैं, मामला चाहे किसी भी दल को लेकर हो। राजनीति में वे लोकतंत्र का गला घोंटने के सख्त खिलाफ रहे हैं। वर्तमान में अगर जनसंघ और आरएसएस के आदर्शों की अनदेखी होती नजर आये तो वे दुखी होते हैं। वे जोड़तोड़ और गलत नीति अपनाकर सत्ता पर काबिज होने को लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध मानते हैं। बकौल शांता कुमार, इस समय भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन है, जिसका आधार मूल्यों पर टिकी राजनीति, वचनबद्धता और देशभक्ति रहा है। इन मूल्यों को हमेशा संजोए रखने और पालन करने की जरूरत है।
किसी मुद्दे पर कदम सही लगे तो पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार प्रदेश की कांग्रेस सरकार की प्रशंसा से भी गुरेज नहीं करते। वर्ष 2023 में जब सुक्खू सरकार ने आपदा से निपटने के लिए बेहतर काम किया तो शांता कुमार ने उसकी सराहना की। जबकि भाजपा नेता सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं गंवा रहे थे। यदि पूर्व मुख्यमंत्री का राजनीतिक सफर पर नजर दौड़ाएं तो उनकी राजनीति की तासीर समझ आती है। अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने तब आदर्शों पर कायम रहना मंजूर किया जब प्रदेश के कर्माचारियों ने हड़ताल की। बिना काम के वेतन नहीं का नियम लागू कर एक नयी शुरुआत की। हालांकि सरकार को इसका खमियाजा भी भुगतना पड़ा था।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी उनका दृष्टिकोण निष्पक्ष रहा। उन्होंने एक मामले में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के विरुद्ध भी बयान दिया था। भाजपा हाईकमान ने शांता कुमार को कर्नाटक का प्रभारी नियुक्त किया था लेकिन उन्होंने अपना स्टैंड नहीं बदला। इसी प्रकार मध्य प्रदेश के कथित व्यापार घोटाले की भी उन्होंने निंदा की थी। साल 2002-03 में शांता कुमार नेे ऐसे कई मुद्दों पर हिमाचल की भाजपा सरकार की भी आलोचना की।
विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा दौर में राजनीति का अपहरण कर लिया गया है। एकमात्र ध्येय सत्ता पर काबिज होना है और उसके लिए कोई भी रास्ता अपनाना स्वीकार्य है। राजनीति में अब नैतिक मूल्यों का महत्व नहीं रह गया है। हां, उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में देश में साफ़ राजनीति का दौर आये।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।