For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

न्यायतंत्र को गतिशीलता देती तकनीकी पहल

07:38 AM Aug 14, 2024 IST
न्यायतंत्र को गतिशीलता देती तकनीकी पहल

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़
भारत के मुख्य न्यायाधीश
मुझे इस राष्ट्रीय सम्मेलन में उद्घाटन संबोधन देते हुए प्रसन्नता हो रही है, जिसका उद्देश्य भारत के न्यायालयों के कामकाज पर तकनीक के परिवर्तनकारी प्रभाव का अन्वेषण एवं भविष्य की रूपरेखा पर विचार करना है। यह आयोजन न्याय प्रदान करने में, तकनीक से लाभ लेने में हमारी महत्वपूर्ण प्रगति को रेखांकित करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने से पहले, मुझे सर्वोच्च न्यायालय की ई-कमेटी में बतौर अध्यक्ष सेवा निभाने का सम्मान मिला। पिछले चार सालों में, इस विषय में हुआ हमारा उल्लेखनीय क्रमिक विकास नज़दीक से देखा है, तकनीक की जरूरत होने पर विचार करने की शुरुआत से लेकर इसकी बारीकियों और सर्वोत्तम कार्यविधि की पहचान के लिए गहरे उतरने तक। आज, न्याय प्रक्रिया सुलभ बनाने में तकनीक को बतौर एक अभिन्न उत्प्रेरक मान्यता प्राप्त है।
इस सम्मेलन के विषय-वस्तु से बेहतर प्रमाण हमारे संवाद का नहीं हो सकता, जिसका चयन पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के हमारे साथियों ने सोच-समझकर किया है। जिन विषयों पर विचार होना है, उनमें तकनीकी कार्यविधि से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और डाटा सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। यह रेखांकित करता है कि विमर्श इस बात को लेकर नहीं है कि क्या तकनीक को अपनाया जाना चाहिए बल्कि इसलिए है कि इससे बेहतरीन लाभ कैसे उठाया जाए। जब मैं बतौर युवा न्यायाधीश बॉम्बे उच्च न्यायालय में था, अधिकांश न्यायाधीशों को डेस्क टॉप इस्तेमाल करना नहीं आता था। तथापि, देखने लायक है कि बतौर संस्थान और व्यक्ति के स्तर पर, हमने खुद में किस कदर बदलाव लाया है। जब कभी मैं कार्मिक विभाग के लोगों से इस विषय को छेड़ने की कोशिश करता हूं तो अक्सर प्रतिक्रिया आती है ‘क्या साहब, आप फिर से तकनीक के बारे में बात करने जा रहे हैं?’ लेकिन उन्हें अहसास नहीं हो पा रहा कि तकनीक बतौर एक औजार न्याय को सुलभ बनाएगी, और यह उद्देश्य हमारे लोकतंत्र की नींव से गहरे तक जुड़ा है। इससे पारदर्शिता, लोकतंत्र और न्याय तक समान पहुंच बनाने में इजाफा होता है –वे मूल्य, जो हमारे गणतंत्र का मूल आधार हैं।
हमारी न्याय व्यवस्था में तकनीक से बनी पारदर्शिता का सबसे बढ़िया उदाहरण है अदालती कार्यवाही का लाइव प्रसारण और हाईब्रिड सुनवाई की सुविधा। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर न्यायाधिकरण तक, आभासीय सुनवाई अब देशभर में एक सामान्य प्रचलन है और आठ लाख से अधिक मुकदमों में इसका उपयोग हो चुका है। यह परिवर्तन वादी, वकील और जनता के लिए पारदर्शिता एवं जवाबदेही में बढ़ोतरी कर रहा है। हाईब्रिड सुनवाई सुविधा के साथ, वकील देशभर में किसी भी अदालत के सामने ऑनलाइन पेश हो सकता है, यह विधि हमारे नागरिकों के लिए सर्वश्रेष्ठ विधिक प्रतिनिधित्व की आसानी सुनिश्चित करती है। यहां तक कि वादी घर बैठे लॉग-इन करके पेशी भुगत सकते हैं या सारी अदालती कार्रवाई वास्तविक समय में देख सकते हैं, जिससे हम जजों के लिए अपने शब्दों और कामकाज को लेकर जवाबदेही बन जाती है।
नवाचारयुक्त पहलकदमी जैसे कि राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) ने हमारी न्याय व्यवस्था में क्रांतिकारी पारदर्शिता बना दी है। यह ग्रिड लंबित मामलों का डाटा और निपटान दर वास्तविक समय में प्रदान करती है, और नागिरकों को न्यायालय की कार्यकुशलता की निगरानी करने में सशक्त करती है। मैंने प्रदेशों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से आह्वान किया कि वे उच्च न्यायालय के तमाम प्रशासनिक जजों को राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड का इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित करें। देशभर में अदालतों के अंदर लगाए गए वर्चुअल जस्टिस क्लॉक इस दिशा में अगला कदम है, यह मुख्य मापदंडों को मूर्त रूप में पेश करता है। सर्वोच्च न्यायालयों की संविधान पीठों के समक्ष हुई बहसों की एआई जनित अनुवाद सुविधा अनुसंधानकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों को कीमती एवं मुक्त स्रोत उपलब्ध करवाती है। यह अनुवाद अदालती कार्यवाही का भरोसेमंद रिकॉर्ड पेश करते हैं और मैंने फैसले लिखते समय कानून के जटिल सवालों पर इन्हें बहुत उपयोगी पाया है।
पारदर्शिता न केवल हमारे संस्थान को और अधिक जवाबदेह बनाती है बल्कि हमारे न्याय सिद्धांत की गुणवत्ता में भी इजाफा करती है। जब 1998 में मुझे उच्च न्यायालय का जज बनने के लिए आमंत्रित किया गया, तब मैंने अनेक ज्ञानी लोगों से सलाह की थी, उनमें एक जस्टिस एपी सेन ने मुझे कहा कि जज सदा रेत पर पदचिन्ह छोड़ता है –लिखित शब्दों के रूप में। आज आधुनिक तकनीक के फायदे के साथ, अदालती बहस का अनुवाद भावी पीढ़ियों के लिए फैसले के पीछे रही कानूनी सोच को समझने का एक शाश्वत स्रोत बनेगा। हाईब्रिड सुनवाई ‘न्याय तक पहुंच’ को और अधिक सुलभ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका एक बढ़िया उदाहरण हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित लोक अदालत है, जिसमें एक हजार से अधिक लंबित मामले सफलतापूर्वक निपटाए गए। यह लोक अदालत तकनीक के उपयोग बिना संभव न होती। देशभर से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य, वादियों और वकीलों ने बिना किसी कठिनाई इसमें भाग लिया, कार्यकुलशता बढ़ी और भागीदारी एवं सुलभता प्रोत्साहित हुई।
एक लोकतंत्र के फूलने-फलने में, प्रत्येक नागरिक को हमारे संस्थानों से जुड़ाव महसूस होना जरूरी है। जो एक बड़ा अवरोध नागरिकों को कानूनी कार्यविधि को समझने में है, विशेषकर उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय को लेकर, वह है भाषा। उच्च स्तर पर हमारी न्यायप्रणाली के कामकाज का मुख्य माध्यम अंग्रेजी भाषा है। तथापि, सर्वोच्च न्यायालय विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर (एसयूवीएएस) की सहायता से हम फैसलों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद सक्रियता से कर रहे हैं। अभी तक, 69,841 निर्णयों को अनुवादित करके अपलोड किया जा चुका है, जिसमें हिंदी में 36,280 तो पंजाबी में 20,119 अनुवाद शामिल हैं और अन्य भाषाएं जैसे कि मलयालम, मराठी, तमिल, तेलुगु और गुजराती में भी यह हो रहा है।
न्याय व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण करने को महज विश्व-स्तरीय तकनीकी तंत्र बना देने से अधिक की जरूरत है। हमें अवश्य ही सुनिश्चित करना होगा कि यह तकनीक देश के हर कोने तक पहुंचकर लाभप्रद हो। हमारे आभासीय तंत्र का सहायक बनने में, राष्ट्रव्यापी ई-सेवा केंद्रों की स्थापना जरूरी है। ये केंद्र वादी को मुकदमे संबंधी जानकारी, ई-फाइलिंग की सुविधा प्रदान करते हैं और उन नागरिकों के लिए ‘न्याय-तक-पहुंच’ बनाने में पुल का काम करेंगे, जिनकी अदालतों तक पहुंच नहीं हैं या फिर हमारी आभासीय सुविधाओं का उपयोग करने में मदद की जरूरत है।
समावेशी बनाने के हमारे मिशन के हिस्से के तौर पर, हम भारत भर के उच्च न्यायालयों में कार्यरत दिव्यांग कर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं, उन्हें कार्य प्रभावशाली बनाने में, उपलब्ध तकनीकी विधाओं के उपयोग की जानकारी देते हैं। यह संबोधन न्याय प्रणाली एवं विधिक व्यवसाय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की भूमिका के जिक्र के बिना अधूरा होगा। बेशक एआई उन कामों को सुगम बना सकती है जिनमें ऑटोमेशन किया जा सकता है किंतु इंसान के अंदर कुछ नया करने वाली चिंगारी का स्थान नहीं ले सकती, न ही भावनात्मक बुद्धिमत्ता और फैसला लिखने में सूक्ष्म भेद की समझ का। सर्वोच्च न्यायालय ने अपना वेब पोर्टल एआई केंद्रित द्वितीय हैकाथॉन के लिए खोला है, जिसके विषयवस्तु में मुकदमों के केस फाइल से मेटाडाटा उठाने में एआई का उपयोग और वादियों के लिए इंटेलिजेंट चैटबॉट विकसित करना है। दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और हमें भी न्यायप्रणाली से परे नए विचार अपनाने को अपनी सोच खुली रखना जरूरी है। विधिक व्यवसाय में रोजाना के कामों में एआई का उपयोग बहुत लाभप्रद हो सकता है, जिससे वकीलों को उच्च-मूल्य वाली अन्य गतिविधियों जैसे कि विधिक रणनीति एवं बहस में नवीन तर्क सोचने के वास्ते अधिक वक्त मिल सकता है। जहां एआई एवं तकनीक का स्वागत करना जरूरी है वहीं हमें सुनिश्चित करना होगा कि यह हमारी मानवीय क्षमताओं में बतौर मददगार रहे न कि उनका स्थान ले।

Advertisement

भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी में किए गये संबोधन के अंश।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×