बारिश में तेल के आंसू की कसक
सौरभ जैन
खाद्य तेल के दामों में हुई बेतहाशा वृद्धि के दौर में मिडल क्लास तो पकौड़े खाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। इन्हें डर है कि पकौड़े की खुशबू सूंघ कहीं आयकर वाले आ गए तो इनकी ‘क्लास’ ही चेंज हो जाएगी। मिडल क्लास पकौड़े तलने मात्र की घटना पर अपर क्लास में पदोन्नत होने के ख्याल से सहम जाते हैं। वैसे बारिश में अक्सर लोग कार से सैर पर निकल जाया करते है। अब पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने बच्चों के साथ बड़ों को भी कागज की नाव चलाने पर मजबूर कर दिया है। अब तक तो बजट ही आम आदमी के मजे लेता था, किंतु अब से बारिश भी यह काम करने लगी है। यहां आम आदमी का अस्पतालों में पहले ही इतना तेल निकल चुका है कि अब उसके पास तेल खरीदने के लिए और पैसे नहीं बचे हैं। प्रेम साहब के एवर-ग्रीन डायलॉग ‘नंगा नहायेगा क्या, निचोड़ेगा क्या’ के स्थान पर अब ‘भूखा खरीदेगा क्या, खायेगा क्या’ हो गया है। पेट्रोल का शतक और खाद्य तेल का दोहरा शतक आम आदमी की बची-खुची जमापूंजी साफ करने पर तुले हैं। क्रिकेट मैदान पर शतक लगाने के बाद बल्लेबाज अभिवादन भी करता है, मगर यहां तो एक ऐसा मैच चल रहा है, जिसमें शतक की जिम्मेदारी लेने वाला कोई खिलाड़ी ही नहीं है।
अपने शहर में हो रही बारिश का वे फेसबुक लाइव कर रहे हैं, क्योंकि डेटा सस्ता है। वे पकौड़े की फोटो नहीं डाल पा रहे हैं, क्योंकि तेल महंगा है। सस्ते डेटा का इससे बेहतर उपयोग और क्या हो सकता है? यदि दाल-मखनी की तस्वीर डाउनलोड करने से पेट भरता हो तो भलाई इसी में है। वैसे जब मोर को दाना चुगाने वाले वीडियो से मन भर सकता है, तो खाने के वीडियो को देखने से पेट क्यों नहीं भर सकता? इस महंगाई से बेहाल आम आदमी को देख यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि आखिर सरकार महंगाई नियंत्रण के लिए क्या कर रही है? अजी, इस महंगाई से सरकार उसी तरह से लड़ रही है जिस तरह से अब तक कोरोना से लड़ती आई है। कोरोना और महंगाई में एक समानता यह है कि दोनों ही हमें दिखाई नहीं देते। हालांकि, पहले महंगाई दिख जाया करती थी, लेकिन अब महंगाई होती तो है मगर दिखाई नहीं देती, यही पिछले सात वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। बाजार में अब किसी वस्तु की कीमत पहले से अधिक हो तो यह मान लिया जाना चाहिए कि वह शुद्ध होती जा रही है। जो वस्तु सबसे कम दाम में बिक रही है, वह अपनी अशुद्ध अवस्था से बाजार को दूषित कर रही है। बाजार में उत्पादों की शुद्धता के लिए महंगाई बहुत जरूरी है। हमें यह भी समझना होगा कि महंगाई बढ़ नहीं रही है, बल्कि हम खुद को महंगाई के साथ एडजस्ट करते जा रहे हैं।