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कांग्रेस को टैक्स राहत

09:07 AM Apr 03, 2024 IST

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि राष्ट्रीय चुनावों में विपक्षी दलों को मुकाबले में चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता के साथ कितने समान अवसर मिलते हैं। हाल के दिनों में पार्टी के बकाया कर मामले में कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि उसके खाते सील होने के चलते उसे चुनाव लड़ने में दिक्कत हो रही है। वह अपने प्रत्याशियों को हवाई टिकट नहीं दे पा रही है। यह भी कि वह बड़ी चुनावी रैलियां नहीं कर पा रही है। आरोपों की तार्किकता और देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी का वित्तीय प्रबंधन अपनी जगह है, लेकिन किसी भी मुकाबले का नैतिक नियम यही है कि चुनावी मुकाबले में हर राजनीतिक दल को बराबर का अवसर दिया जाए। बहरहाल, अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को वचन दिया है कि जुलाई तक आयकर विभाग कांग्रेस से बकाया तीन हजार पांच सौ करोड़ से अधिक के कर वसूलने के बाबत कोई भी कठोर कदम उठाने से परहेज करेगा। यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में कुछ ही हफ्ते बाकी रह गये हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को राहत देने के चलते यह प्रकरण कर मामलों के राजनीतीकरण के बाबत प्रासंगिक प्रश्न भी उठाता है। यही वजह है कि कांग्रेस समेत विपक्षी दल आरोप लगाते रहे हैं कि सत्तारूढ़ दल ‘कर आतंकवाद’ के जरिये राजनीतिक लाभ उठाने के लिये राज्यतंत्र का दुरुपयोग कर रहा है। यह प्रकरण इन्हीं आरोपों की कड़ी को विस्तार देता है। निश्चित रूप से, बार-बार आयकर विभाग की चेतावनी और ठीक चुनाव से पहले कांग्रेस के फंड पर रोक कई सवालों को जन्म देती है। जो किसी भी स्वतंत्र लोकतंत्र की पारदर्शी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाता है क्योंकि ऐन चुनाव के वक्त पार्टी फंड पर रोक लगाने से कोई भी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार अभियान में पंगु हो जाता है। जो किसी भी लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत कदापि नहीं कहा जा सकता।
बहरहाल, चुनाव के कुछ समय बाद तक आयकर बकाया मामले में कांग्रेस के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा कोई कार्रवाई न करने का वायदा निश्चित रूप से कांग्रेस को तात्कालिक वित्तीय दबाव से कुछ राहत जरूर देगा। लेकिन यह कदम कर कानून प्रवर्तन में निष्पक्षता और पारदर्शिता की अंतर्निहित चिंताओं का समाधान प्रदान नहीं करता है। निश्चित रूप से ऐसे मामलों में निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने में न्यायपालिका की भूमिका कानून के शासन को स्थापित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाती है। इसी आरोप-प्रत्यारोप वाले राजनीतिक परिदृश्य में बीते रविवार को दिल्ली में इंडिया गठबंधन द्वारा आयोजित ‘लोकतंत्र बचाओ रैली’ हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों को देश के जनमानस के सामने रखती है। विपक्षी नेताओं का आरोप रहा है कि असहमति की आवाज को दबाने के लिये सत्तारूढ़ दल सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रहा है। नेताओं ने विपक्षी नेता अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को राजनीतिक दुराग्रह से की गई कार्रवाई के रूप में दर्शाया है। बहरहाल, विपक्षी गठबंधन में तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद सरकारी एजेंसियों द्वारा विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करने के मुद्दे ने विपक्षी दलों में प्राणवायु का संचार किया है। इसी मुद्दे को लेकर संयुक्त मोर्चा जन समर्थन जुटाना चाहता है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन के सहयोगियों ने चुनाव आयोग से मांग की है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई पर रोक लगे। वहीं कथित चुनावी कदाचार की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में की जाए। यानी चुनाव प्रक्रिया के दौरान संस्थागत निष्पक्षता से ही लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। निश्चित रूप से देश के लोकतांत्रिक ढांचे में जनता का भरोसा तभी कायम रह पाएगा जब चुनावी प्रक्रिया में राजनीतिक दलों के लिये समान अवसर सुनिश्चित किए जाएंगे। इस चुनावी प्रक्रिया में अनुचित प्रभाव डालने का कोई प्रयास व किसी भी तरह की ऊंच-नीच की कोई धारणा लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर ही करती है।

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