बच्चों से भी करें सलीके के साथ बात
डॉ. गुंजन चड्ढा
'रवि की आज फिर स्कूल से होमवर्क को लेकर शिकायत आयी थी। यह पता चलते ही उसकी मां अनीता ने उसे खूब डांटा। रवि गुस्से में घर से बाहर निकल गया। यह पहली बार नहीं था कि ऐसा हो रहा था। अनीता काफी परेशान थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाये।’
अक्सर हम बच्चों से ऐसे बात करते हैं जैसे कि वे हमारे बराबर हों और वे सब हमारी तरह समझते हों। बार-बार ऐसा हो तो बच्चे और माता-पिता में दूरियां बढ़ने लगती हैं। जैसे हमने रवि के किस्से में देखा, अगर बात सही तरीके से नहीं की जाए तो समस्या का समाधान होने के बजाय बात बिगड़ भी सकती है। तो जानिये कैसे की जाए बच्चों से बात-
ध्यान पूर्वक सुनना
कुछ लोग बात सुन तो रहे होते हैं पर ध्यान फ़ोन या टीवी पर होता है। इस तरह कोई भी बात समझ नहीं आती और बच्चे भी इसी तरह से बात करना सीख जाते हैं। बच्चों को यह अहसास दिलाना आवश्यक है कि आप उनकी बात में रुचि रखते हैं। कुछ कथन इसमें सहायक हैं, जैसे कि ‘मैं सुन रहा हूं’, ‘मैं समझता हूं’, ‘मुझे यह बात ठीक नहीं लगती है’ आदि। बच्चों से बात करते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाये जो उनको समझ आ सकें। यदि व्यस्त हों तो बच्चे को बात करने का कोई निश्चित समय बता दें। नियमित पारिवारिक बातचीत के लिए भी समय निर्धारित करें।
व्याख्यान नहीं, वार्तालाप
बच्चों का शब्द ज्ञान सीमित होता है। वे कोई शब्द जाल नहीं बना पाते। अत: बेहतर होगा कि हम भी उनके साथ वैसा ही करें। ‘मित्रों से झगड़ा किया तो देख लेना’ के बजाय कहना उचित होगा कि मित्रों से झगड़ते नहीं हैं बल्कि उनकी मदद करते हैं।
सही प्रश्न का चुनाव
बातचीत के दौरान कुछ पूछना अक्सर आवश्यक हो जाता है। परंतु कुछ प्रश्न बातचीत के प्रवाह को समाप्त कर देते हैं। ऐसे प्रश्न न पूछें जिसका उत्तर केवल हां या न हो। न ही ऐसे प्रश्न पूछें जो किसी प्रकार के उत्तर की तरफ इशारा करें। जैसे कि तुम्हें गुस्सा आया होगा? या तुम्हारे पास किताब नहीं है? इन के बजाय पूछना ज़्यादा उपयुक्त है कि ‘जब तुम्हारी किताब खो गयी तो तुमने पढ़ाई कैसे की?’
स्पष्ट रूप से कहना
बच्चे के विचार व भावनाएं समझना तथा अपने विचार व भावनाएं व्यक्त करना दोनों ही सफल वार्तालाप के लिए ज़रूरी हैं। कटाक्ष या आलोचना से बच्चे अक्सर सहम जाते हैं। खेलते समय बच्चे की गेंद से शीशा टूट जाने पर कटाक्ष रूप में ‘और तोड़ो’ कहने के बजाय ‘क्रिकेट खुली जगह में खेला जाता है’ कहा जाये। यह बताने पर बच्चे को यह पता लग जायेगा कि उसे क्या करना है। स्पष्ट रूप से अपनी भावनाओं-विचारों को व्यक्त करें लेकिन शांत रहे।
उदाहरण देकर समझाना
उदाहरण देकर समझायी गयी बात बेहतर समझ आती है और याद रहती है। बच्चों को भी उदाहरण या कहानियों के साथ सीख दें। इससे उनके लिए समझना ज़्यादा आसान हो जाएगा।
विनम्र रहें
विनम्रता ही अच्छे वार्तालाप की कुंजी है। एक समय में एक ही समस्या पर काम करें। वहीं क्षमा करने के लिए तैयार रहें।
बच्चे से वार्तालाप में क्या न करें
कोई बात बिगड़ने पर अक्सर माता-पिता कह देते हैं कि तुम्हें पहले कितनी बार बताया है लेकिन तुम नहीं समझ रहे। इस तरह बीती बातों को दोहराने से बच्चे वर्तमान की घटनाओं का सही आकलन नहीं कर पाते। वहीं अक्सर हम बच्चों की तुलना करने लगते हैं जिससे बच्चे की प्राकृतिक खूबी को सामने आने से रोक देते हैं। तुलना करने से अक्सर बच्चे हीन भावना से ग्रसित या इर्ष्यालु हो जाते हैं। यह भी कि जब आपको किसी बात का जवाब पता न हो तो उसे स्वीकार कर लें। सवालों से बचने के बजाय कहें कि उनसे इस विषय में फिर से बात करेंगे।
बच्चे की भावनाओं को कभी नकारें नहीं। अक्सर आपको छोटी लगने वाली बात भी बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। बच्चों के साथ बातचीत करना एक कला है जो बेहतर है कि पेरेंट्स भी सीखें। बच्चों के साथ सलीके से बातचीत के जरिये उन्हें अच्छे आचरण के लिए प्रेरित किया जा सकता है। -लेखिका पीजीआई, रोहतक में मनोरोग विभाग में रेजिडेंट डॉक्टर हैं।