तालिबान मायने झूठ, अफीम और हथियार
आलोक पुराणिक
चालू विश्वविद्यालय ने तालिबान की अर्थव्यवस्था विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन कराया था, इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त निबंध इस प्रकार है :-
तालिबान अर्थव्यवस्था विश्व की अजूबा अर्थव्यस्थाओं में शुमार की जा सकती है, जहां पर हथियार एकदम लेटेस्ट हैं और किताबें पुरानी भी उपलब्ध नहीं हैं। किताबों को आधुनिकतम हथियारों से जलाने की तकनीकी में महारथ हासिल है तालिबान को। तालिबान के पास पैसा हथियार के लिए है, किताबों के लिए नहीं। हथियार से किताब पढ़ने-लिखने वालों को मारते हैं।
हथियार बेचने वाले इस दुनिया के सबसे शातिर कारोबारी हैं। विकसित देशों में हथियारों का विकास करते हैं हथियारों के कारोबारी फिर वो इन्हें अविकसित देशों में बेचते हैं। तालिबान आठवीं शताब्दी के दिमाग के साथ 21वीं शताब्दी के हथियार चलाते हैं। राकेट लांचर इधर से उधर लिये घूमते हैं। राकेट लांचर का कोई पुरजा बना पायें तालिबान, इतनी शिक्षा न हासिल उनको। पर राकेट लांचर से लोगों को मारने की पूरी ट्रेनिंग उनके पास है। भारत के वो जाहिल किस्म के शायर वगैरह भी तालिबान के समर्थन में हैं, जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है, जिनके लिए बंदूक और किताब दोनों एक बराबर है। शायर होकर भी आदमी जाहिल रह सकता है इससे पता चलता है कि जहालत, मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती।
तालिबान अफीम उगाते हैं। तालिबान एक साथ दो किस्म की अफीम बेचते हैं-एक धर्म की अफीम, दूसरी सचमुच की अफीम नशेबाजी वाली अफीम। जानकार बताते हैं कि धर्म की अफीम से ज्यादा लोग मर जाते हैं। हथियार और अफीम पर टिकी तालिबान अर्थव्यवस्था में कभी मंदी नहीं आती, क्योंकि इनके धंधे कभी मंदे ही न होते। तालिबान के सबसे बड़े समर्थक हैं पाकिस्तान के नेता जो खुद भी लगभग तालिबान ही हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान और तालिबान का मामला एक ही है। ये पूरी दुनिया के दुश्मन हैं। पर इससे कुछ न होता, हथियार उन्हें मिलते रहेंगे, क्योंकि हथियार बेचने वाले सिर्फ रकम देखते हैं। रकम है तालिबान के पास, जो वो अफीम से हासिल करते हैं। तालिबान का एक और बड़ा कारोबार है, झूठ का। तो कुल मिलाकर हम मान सकते हैं कि झूठ, अफीम और हथियार ये बहुत बड़े कारोबार हैं और इनसे बहुत मोटी कमाई संभव है। इतनी मोटी कमाई संभव है कि अमेरिका जैसा बड़ा देश, बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भी तालिबान से डरकर भाग लिया।