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प्रेम और विछोह की दास्तां

08:05 AM Dec 03, 2023 IST
पुस्तक : प्रेम नहीं स्नेह लेखक : सुनील गंगोपाध्याय अनुवादक : दिलीप कुमार बनर्जी प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 134 मूल्य : रु. 199.

रतन चंद ‘रत्नेश’

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बांग्ला साहित्य के सुपरिचित और मूर्धन्य लेखक दिवंगत सुनील गंगोपाध्याय के एक उपन्यास का हिंदी अनुवाद है ‘प्रेम नहीं स्नेह’। इसका आरंभ लेखक ने केंद्रीय पात्र कमाल का परिचय देते हुए कुछ इस ढंग से किया है कि प्रतीत होता है कि कथ्य पूर्णतः सत्य घटनाओं पर आधारित है। वे न्यूयार्क जाते हैं और वहां ग्रे-हाउंड बस टर्मिनल पर उन्हें गंतव्य तक ले जाने के लिए कमाल लिवाने आता है।
बांग्ला देश का अधिवासी कमाल बंगाल से आने वाले हर व्यक्ति के लिए निःस्वार्थ भाव से वहां हर प्रकार से मदद करता रहता है। लेखक उससे इस दरियादिली का कारण पूछता है तो कमाल अपने जीवन के प्रेम और विछोह के सारे पन्ने खोलकर रख देता है। कमाल इतना भोलाभाला और आदर्शवादी होता है कि उसकी भलाई का फायदा हर कोई उठाता है और मतलब निकल जाने पर उसकी भद्रता को मूर्खता साबित करने लगता है। यहां तक कि उसकी पत्नी जुलेखा जिससे वह बेहद प्यार करता है, वह भी उसे अंततः तिलांजलि दे देती है।
इसके पीछे उमर नाम के एक शख्स की कारस्तानी होती है जिसे कमाल ने अपने घर में पनाह दी होती है। इस तरह वह मानसिक रूप से परेशान हो उठता है परंतु आखिरकार एक वेश्या से दूसरी और अंतिम मुलाकात के बाद सबके लिए उसके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ता है और हर व्यक्ति पर वह अपना प्रेम लुटाने लगता है। कमाल कहता है कि उसका प्रेम एक जगह रुका हुआ था, अब सबके बीच फैल गया है परंतु उसके हृदय में जो शून्य पैदा हुआ था, वह रह-रहकर उसे कचोटता रहता है।
उपन्यास का अनुवाद दिलीप कुमार बनर्जी ने किया है। मूल रूप में यह पुस्तक ‘भालोबासा, प्रेम नय’ के नाम से है जिसका अर्थ है कि किसी को दिल से चाहना प्रेम नहीं होता जो पुस्तक के हिंदी नाम से पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो पाता है।

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