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ईयरफोन के इस्तेमाल में कानों का भी रखें ख्याल

10:25 AM Jul 17, 2024 IST
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ब्ल्यूटुथ डिवाइस ने हमारे काम को आसान बनाया है, लेकिन इससे कनेक्ट होने वाले ईयरफोन, ईयरपोड या हैडफोन के रोजाना देर तक इस्तेमाल करने पर कान के ऑडिटरी हियरिंग मैकेनिज्म पर असर पड़ता हैं और हियरिंग लॉस का कारण बनता है। इसी विषय पर दिल्ली स्थित एक नामी अस्पताल में ईएनटी डिपार्टमेंट में एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. नेहा सूद से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

हाल ही में देश की एक मशहूर प्लेबैक सिंगर की खबर ने सबको चौंका दिया है। वायरल अटैक की वजह से उन्हें सुनाई देना बंद हो गया है। यानी वो सडन रेयर सेंसरीन्यूरल हियरिंग लॉस बीमारी से जूझ रही हैं। डाक्टरों का मानना है कि इसके पीछे एक बड़ा कारण तेज आवाज वाले वातावरण में रहना या कान में हैडफोन या ईयरफोन पर लाउड म्यूजिक सुनना भी है।
वायरलेस ब्ल्यूटुथ डिवाइस के बढ़ते क्रेज ने भले ही हमारे काम को आसान बनाया है, लेकिन यह हमारी सेहत को नुकसान भी पहुंचा रहा है। दरअसल ब्ल्यूटुथ से कनेक्ट होने वाले ईयरफोन, ईयरपोड या हैडफोन से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो फ्रीक्वेंसी रेडिएशन निकलती हैं। जो डिवाइस के रोजाना लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर कान के ऑडिटरी हियरिंग मैकेनिज्म को प्रभावित करती हैं और हियरिंग लॉस का कारण बनती हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के हिसाब से दुनिया भर में 10 में से 2 लोग सेंसरीन्यूरल हियरिंग लॉस से पीड़ित हैं।

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ऐसे होता है हियरिंग लॉस

हाई इंटेंसिटी साउंड एक्सपोजर होने पर कई बार कान के अंदरूनी और अहम हिस्से कॉक्लिया में मौजूद हेयर-सेल या ऑडिटरी नर्व डैमेज हो जाते हैं जिससे व्यक्ति की सुनने की क्षमता पर असर पडता है। यह एक्सपोजर दो स्थितियों में होता है- पहला जब कान को ब्ल्यूटुथ डिवाइस के माध्यम से हाई इंटेंसिटी साउंड एक्सपोजर कई घंटे लगातार मिलता रहता है जैसे म्यूजिक सुनना, मोबाइल देर तक सुनना, म्यूजिक कंपोजिशन, डीजे शो, माइनिंग या कारखानों में काम करने के दौरान। दूसरी स्थिति कान को हाई इंटेंसिटी साउंड एक्सपोजर एकाएक मिलने पर होती जैसे बमबारी, आतिशबाजी। कई मामलों में व्यक्ति को केवल एक कान में यानी यूनिलेटरल हियरिंग लॉस ही होता है। लगातार ईयरपोड के इस्तेमाल से कई बार केवल डोमिनेट-ईयर ज्यादा डैमेज होता है। आमतौर पर यूनिलेटरल हियरिंग लॉस वाले मरीज डॉक्टर को बहुत देर से कंसल्ट करते हैं। तब तक उसका दूसरा कान भी प्रभावित हो सकता है।

कितनी साउंड इंटेंसिटी है खतरनाक

व्यक्ति दिन में लगातार 6 घंटे से ज्यादा देर तक लगातार ईयर डिवाइस का उपयोग करता है, तो आगे चलकर उसे भी हियरिंग समस्या हो सकती है। आमतौर पर म्यूजिक का तेज वॉल्यूम 75-80 डेसिबल माना जाता है। लेकिन ब्ल्यूटुथ डिवाइस पर सुनने पर यह वॉल्यूम खुद-ब-खुद बढ़कर करीब 110 डेसिबल हो जाता है। जैसे-जैसे डेसिबल बढ़ते हैं, सेफ लिस्निंग टाइम कम होता जाता है। सीडीसी, अमेरिका के मुताबिक ईयरफोन डिवाइस पर 40-60 डेसिबल तक की साउंड नॉर्मल है। साउंड एक्सपोजर 85 डेसिबल के ऊपर होने पर हियरिंग लॉस का खतरा बढ़ जाता है। रोजाना ईयरफोन पर 90 डेसिबल का साउंड आधे घंटे और 100 डेसिबल से ज्यादा लेवल का साउंड 15 मिनट सुनने से व्यक्ति 5 साल में सुनने की क्षमता खो सकता है। जबकि हाई इंटेंसिटी साउंड यानी 120 डेसिबल से ज्यादा होने पर कुछ सेकंड में ही हियरिंग लॉस हो सकता है।

क्या है जोखिम

हाई इंटेंसिटी साउंड से होने वाला हियरिंग लॉस लाइलाज, स्थायी होता है। शुरूआत में टेम्परेरी होता है जो दो-चार दिन में ठीक हो सकता है। कुछ मामलों में मरीज को टिनिटस समस्या होती है यानी कान में लगातार सीटी या बीप साउंड, सांय-सांय जैसी आवाजें आती हैं। लेकिन यह धीरे-धीरे बढ़ता रहता है और कॉक्लिया के हेयर-सेल डैमेज करता रहता है व लाइलाज हियरिंग लॉस हो जाता है।

रहें सतर्क

हियरिंग लॉस के शुरुआती लक्षणों से व्यक्ति पहचान सकता है। बिना देरी ईएनटी डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए। ये लक्षण हैं - 2 फुट की दूरी की आवाज सुनने में दिक्कत आना। दूसरों की बात समझने में मुश्किल, टीवी देखते हुए वॉल्यूम दूसरों की अपेक्षा ज्यादा करना पड़े। कान में एब्नॉर्मल साउंड आना शुरू हो जैसे- रिंगिंग साउंड, सीटी या बीप साउंड। इनके अलावा ऑडिटरी नर्व डैमेज होने के साथ कई समस्याएं होने लगती हैं- कुछ आवाजें या गाने की कुछ बीट्स सुनाई न देना, कान में खुजली, दर्द, कान बहना, कान के अंदर सीटी की आवाजें या बाहर की आवाजें गूंजना, बॉडी बैलेंस बिगड़ना।

ऐसे होता है डायग्नोज

डॉक्टर सबसे पहले कान का नॉर्मल एग्जामिन करते हैं। हियरिंग लेवल का पता लगाने के लिए ऑडियोमेट्री टेस्ट किया जाता है- हियरिंग लॉस 10-20 प्रतिशत के बीच में है, तो वह नॉर्मल है। 20-40 प्रतिशत हियरिंग लॉस को माइल्ड , 40-60 प्रतिशत को मॉडरेट हियरिंग लॉस और 60-80 प्रतिशत को सीवियर और 80 प्रतिशत से अधिक को गंभीर हियरिंग लॉस माना जाता है।

क्या है उपचार

उपचार हियरिंग लेवल के आधार पर तय किया जाता है- माइल्ड से मॉडरेट हियरिंग लॉस में हियरिंग एड या एम्प्लीफायर डिवाइस सहायक हो सकते हैं। सीवियर लॉस में कॉक्लिया इम्प्लांट सर्जरी की जाती है। एक कान में हियरिंग लॉस पर बोन एंकर्ड हियरिंग एड लगाया जाता है।

सावधानियां जो जरूरी हैं

कुछ बातों का ध्यान रखकर हियरिंग लॉस से बचा जा सकता है- पहली, ब्ल्यूटुथ डिवाइस लगायें तो 60/60 रूल फॉलो करें। यानी डिवाइस वॉल्यूम 60 डेसिबल से ज्यादा न हो और एकसाथ 60 मिनट से ज्यादा इस्तेमाल न करें। जरूरी हो तो 30 मिनट के बाद 5 मिनट और 60 मिनट के बाद 10 मिनट का ब्रेक जरूर लें। वहीं साउंड मिनिमम इंटेंसिटी पर इस्तेमाल करें। ईयरबड के बजाय कान के ऊपर वाला हेडफोन इस्तेमाल करें। सॉफ्ट टिप वाले ईयरफोन लें। यथासंभव नॉयस-केंसेलेशन वाली डिवाइस लें। ब्ल्यूटुथ डिवाइस पर दिए गए राइट और लेफ्ट मार्क का ध्यान रखें और सही कान में लगाएं। म्यूजिक ऐप डाउनलोड कर उसमें एक्यूलाइजर इस्तेमाल करें। शोरगुल वाले इलाके या कार्यस्थल पर जाने से पहले कान में नॉयस-प्रोटेक्टर जरूर लगाएं। हाई रिस्क कैटेगरी वाले व्यक्ति 6 महीने में ऑडिटरी स्क्रीनिंग-ऑडियोमेट्री टेस्ट कराएं।

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