संतान सुख की सही उम्र का रखें ख्याल
हमारे समाज के पढ़े-लिखे तबके में कई शादीशुदा जोड़े संतान-सुख से महरूम हैं। इंफर्टिलिटी (बांझपन) की वजह से बच्चा पाने की हसरत को लेकर आईवीएफ तकनीक या सेरोगेसी मदर पर निर्भर कर रहे हैं। चुनौती यह कि इंफर्टिलिटी में महिला-पुरुष 50-50 प्रतिशत के भागीदार हैं। जहां देर से शादी और कई बीमारियां महिला के अंडकोष में कम होते या खराब क्वालिटी के अंडों के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं पुरुषों का तेजी से कम होता स्पर्म-काउंट भी महिला के गर्भधारण न कर पाने की बड़ी वजह है। पिछले दिनों आईसीएमआर ने भी महिलाओं के लिए यह गाइडलाइन जारी की थी कि उन्हें समय पर शादी और 30 साल से पहले संतान कर लेनी चाहिए, वरना कई समस्याओं की आशंका रहती है। बेशक गंभीर बीमारियों के चलते महिलाओं का अपने एग फ्रीज कराना लाजिमी है, लेकिन अपने कैरियर या आधुनिकता के चलते जल्दी मां न बनने की जिद गलत है। जरूरी नहीं कि 4-5 साल तक एग-फ्रीजिंग से प्रिजर्व रहे एग्स की गुणवत्ता सही रहे। लिहाजा इंफर्टिलिटी के प्रति जागरूक होने और समय रहते उपचार कराने की जरूरत है।
देर से शादी करना
महिलाओं में बढ़ती इंफर्टिलिटी के पीछे मूल वजह देर से शादी करना है। वर्तमान में महिलाएं आमतौर पर 28-29 और पुरुष 32-33 साल से पहले शादी नहीं कर रहे हैं। जबकि महिलाओं की फर्टिलिटी का पीक टाइम 22-25 साल की उम्र में होता है। 25 साल की उम्र के बाद से कम होनी शुरू हो जाती है। देर से शादी होने पर फैमिली प्लानिंग करने में अगर जोड़े 2-3 साल का समय लेते हैं तो उन्हें कंसीव करने में दिक्कतें आती हैं। वहीं जागरूकता के अभाव में वे डॉक्टर को कंसल्ट तक नहीं करते। देर से शादी करने से महिलाओं की ओवरी से ओव्ल्यूट होने वाले अंडों की संख्या में ही नहीं, क्वालिटी भी खराब हो जाती है। असल में 35 साल से ज्यादा उम्र में गर्भधारण करना नामुमकिन-सा होता है। ऐसे में जरूरी है सही समय पर शादी और गर्भधारण।
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओएस)
यह एक मेटाबॉलिक सिंड्रोम है जिसमें महिलाओं के शरीर में इंसुलिन रसिस्टेंस हो जाता है जिससे ओवरी बहुत बड़ी हो जाती है। हार्मोन्स असंतुलन यानी पुरुष हार्मोन का स्राव ज्यादा होता है। ओवरी में एग मैच्योर होकर रिलीज नहीं होते जिसकी वजह से मासिक धर्म में अनियमितता आ जाती है और अंडों का ओव्यूलेशन नहीं हो पाता। वजन बढ़ने लगता है, अनचाहे बाल आ जाते हैं जिसे हर्सुटिज्म डिजीज कहा जाता है। इंफर्टिलिटी भी हो सकती है। ऐसे में महिलाओं को सक्रिय रहने, हेल्दी खानपान के लिए कहा जाता है ताकि वजन नियंत्रण में आ सके। कई बार 10 प्रतिशत वजन कम होने पर पीसीओएस सिंड्रोम पर काबू पाया जा सकता है।
कैंसर
युवा महिलाओं में कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। आंकड़ों के हिसाब से हर 4 में से एक महिला ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित है। अब ब्रेस्ट कैंसर, ल्यूकीमिया जैसे कैंसर का इलाज संभव है बशर्ते शुरुआत में डायग्नोज हो जाए। लेकिन कैंसर उपचार के दौरान कीमोथेरेपी, रेडिएशन का असर ओवरी में मौजूद अंडों पर भी पड़ता है। वे तेजी से खत्म होने लगते हैं। इससे बचने के लिए कीमोथेरेपी या रेडिएशन से पहले अंडे को भविष्य के लिए एग-बैंक में संरक्षित किया जा सकता है। इसे ऑन्को फर्टिलिटी प्रीजर्वेशन कहा जाता है। कैंसर से उबरने के 2-3 साल बाद महिला के अंडों को फर्टिलाइज करके भ्रूण में प्रत्यारोपित किया जाता है और वो मां बन सकती है।
डायबिटीज
महिलाओं में अनियंत्रित शूगर लेवल इंफर्टिलिटी की बड़ी वजह बनता है। इससे ओवरी में मौजूद अंडों की संख्या बहुत जल्दी खत्म होने लगती है और उनकी क्वालिटी भी खराब होने लगती है। गर्भवती महिला में गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। गर्भ में पल रहे बच्चे में जन्मजात खराबी आ सकती है या बच्चा एब्नॉर्मल पैदा होता है। ऐसे कुछ भी लक्षण महसूस हो तो शीघ्र डॉक्टर से मिल कर उपचार शुरू करें। ऐसी महिलाओं को इंफर्टिलिटी से बचने के लिए फैमिली प्लानिंग में देर नहीं करनी चाहिए। जरूरी हो तो महिला को सही उम्र में एग-फ्रीज कराने चाहिए। जीवनशैली बदलनी चाहिए।
टीबी
बोन, पेट, पेल्विक, जनाइटल ऑर्गन जैसी जगहों पर होने वाली एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी भी महिला इंफर्टिलिटी की अहम वजह है। टीबी विशेषकर फैलोपियन ट्यूब और गर्भाशय की बेहद पतली लाइनिंग को क्षति पहुंचाती है। इससे गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है। अगर समय पर जनाइटल टीबी का पता चल जाता है और उपचार मिल जाता है तो गर्भाशय की क्षति को रोका जा सकता है। ऐसा न होने पर फैलोपियन ट्यूब बंद हो जाती है और गर्भाशय की लाइनिंग खत्म हो जाती है, पीरियड्स बमुश्किल एक दिन आते हैं। आईवीएफ के बावजूद महिला मां नहीं बन पाती।
यौन संचारित रोग
एहतियात न बरतने के कारण कई महिलाएं इंफर्टिलिटी का शिकार हो जाती हैं। इससे महिला को गेनोरिया, सिफलिस, कैमाइगिल संक्रमण के कारण फैलोपियन ट्यूब को क्षति पहुंचती है और इंफर्टिलिटी की समस्या बढ़ जाती है। यौन संक्रमण संबंधी कोई भी लक्षण नजर आये तो तुरंत डॉक्टर को कंसल्ट कर उपचार लेना जरूरी है।