तंत्र की विफलता
कोरोना महामारी में नागरिकों का अमूल्य जीवन जिस तरह से खत्म हो रहा है, वह अत्यंत पीड़ादायक है। सरकार की लापरवाही और नागरिकों के प्रति उदासीन रवैया हालात को हर रोज बदतर कर रहा है। हरियाणा के तीन ज़िलों-सोनीपत, पानीपत एवं रेवाड़ी में हर कोई दूसरा व्यक्ति कोरोना से पीड़ित है। वर्ष 2020-2021 में केंद्र सरकार ने कोविड-19 इमरजेंसी रिस्पांस हेल्प सिस्टम के लिए 11757 करोड़ रुपये निर्धारित किए थे, परंतु कोरोना की दूसरी लहर में जो पहले से कहीं ज्यादा जानलेवा है, इसके लिए इमरजेंसी रेस्पॉन्स हेल्थ सिस्टम के नाम से पर्याप्त पैसा निर्धारित नहीं किया। आज सरकारी अस्पताल में बेड नहीं, और अगर बेड हैं भी तो वह आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं, टेस्टों में जान-बूझकर देरी की जा रही है। बिना टेस्ट के हर रोज नागरिक मर रहे हैं, गांव-गांव में खांसी, जुकाम, बुखार, बदन दर्द आम बात है। सरकार यह दिखाने में लगी हुई है कि ये मौतें कोरोना की वजह से नहीं हो रही हैं। दूसरी तरफ हमारे जनप्रतिनिधि सकारात्मक बने रहने की बयानबाजी एवं मोबाइल पर स्वस्थ रहो के भाषण देने में लगे हुए हैं। सच्चाई यह है कि सरकारों ने खानापूर्ति के अलावा नागरिकों के प्रति जो जवाबदेही है, उससे पल्लू झाड़ लिया है। अगर कोरोना महामारी पर काबू पाने के लिए सरकार के पास फंड का अभाव है तो सरकार एक साल के लिए तमाम मंत्रियों, एमपी, एमएलए, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति का वेतन इस कोरोना महामारी के बचाव में खर्च कर दे। पीएम केयर्स फंड, जिसके लिए सरकारी कर्मचारियों से लेकर दानी लोगों ने दिल खोलकर दान दिया था उसका विवरण देश की जनता के सामने रखा जाए। कोविड-19 के पहले दौर में सरकार ने जो ढोल मंजीरा पीट-पीटकर अपने गुणगान किए थे, आज वही सरकार धरातल पर कार्रवाई करने की बजाय, बयानबाजियों से जनता को बहलाने में लगी हुई है। एक नागरिक इन तमाम हालातों पर अपने विवेक से विचार करना शुरू करे।
राजेंद्र सिंह एडवोकेट, रेवाड़ी