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मीठी नज़ीर

06:46 AM Aug 25, 2024 IST
मीठी नज़ीर
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सुदर्शन गासो
रोजाना पढ़ता हूूं
देश बना रहे हैं
नए-नए बम, हथियार
नई-नई तकनीक
पैदा की जा रही है
जिससे दूसरे देश में

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चलते-फिरते किसी भी
इंसान को मारा जा सकता है।
लेकिन! मैं इसे कोई
करिश्मा नहीं मानता,
करिश्मा तो मैं तब मानूं
जब कोई अपने देश में

बैठे हुए
किसी दूसरे देश में
पैदा कर सके कोई
मुहब्बत का पेड़
कोई चंपा... कोई कली,
जो बांध दे पूरी दुनिया को

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प्रेम के धागे में
पैदा कर दे
दिलों में मिठास
घोलने वाली
शहद जैसी
मीठी नज़ीर!

ऐ मेरे देश...

ऐ मेरे देश!
बन के एक ग़ज़ल
आ उतर जा,
तू समा जा मुझमें,
मैं सांस-सांस
तुझे गुनगुनाना चाहती हूं...

मैं दीया
तेरी गंगा आरती का,
तेरे ही पानियों में
हो रौशन,
तुझमें ही
फिर समाना चाहती हूं...

तेरे सूरज की
लालिमा पहने,
तेरे चंदा की
चांदनी ओढ़े,
तेरे अंबर की
नीलिमा से सजी,
तेरे खेतों की
हरीतिमा लिपटी,
अपने तन-मन की
ये झीनी चादर
रंग तेरे रंगाना चाहती हूं...

रश्मि ‘कबीरन’

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