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सच जानने के लिये सर्वे और दावे-प्रतिदावे

06:28 AM Apr 26, 2024 IST
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हेमंत पाल

अयोध्या, ज्ञानवापी और मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि के स्वामित्व की प्रामाणिकता के लिए कोर्ट के निर्देश पर ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) ने साइंटिफिक सर्वे किया था। अपनी प्रमाणिक रिपोर्ट से एएसआई ने जो साबित किया, वो दुनिया के सामने है। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के निर्देश पर इसी तरह का सर्वे धार की भोजशाला में किया जा रहा है। एएसआई को अपने सर्वे से साबित करना है कि भोजशाला वास्तव में राजा भोज द्वारा निर्मित सरस्वती मंदिर है या मौलाना कमालुद्दीन की बनाई मस्जिद! दोनों पक्षों के बीच सौ सालों से ज्यादा समय से यह विवाद है। एक महीने से एएसआई भोजशाला में सर्वे कर रही है।
हाई कोर्ट ने एएसआई को सर्वे करके और अपनी रिपोर्ट अगले 45 दिन में उसे सौंपने का निर्देश दिया था। लेकिन, अब एएसआई ने इसके लिए अतिरिक्त समय मांगा है। क्योंकि, निर्धारित अवधि में काम पूरा संभव नहीं है। सर्वे की प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए कोर्ट के निर्देश पर हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधियों को भी सर्वे टीम के साथ अंदर जाने की इजाजत मिली है। पहले दिन मुस्लिम पक्ष ने सर्वे टीम के साथ परिसर में जाना टाला, उसके बाद से दोनों पक्षों के प्रतिनिधि सर्वे टीम के साथ सुबह से शाम तक मौजूद रहते हैं। हालांकि, एएसआई को सर्वे पर किसी भी तरह का बयान देने की इजाजत भी नहीं है क्योंकि, रिपोर्ट हाईकोर्ट में जमा करानी है। मगर सर्वे टीम के साथ अंदर जाने वाले दोनों पक्षों के प्रतिनिधि अंदर जाते हैं, तो वे मीडिया के सामने कोई न कोई ऐसी बात जरूर करके जाते हैं, जो इस सर्वे की गोपनीयता को भंग करने जैसी होती है।
मुस्लिम पक्ष के प्रतिनिधि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा लगाई गई आपत्तियों का जिक्र करने के साथ यह भी बताते हैं कि बीते सौ सालों से ज्यादा समय में भोजशाला विवाद में क्या कुछ हुआ! वे उन तर्कों को भी नकारते हैं, जो हिंदू पक्ष के लोग सामने रखने की कोशिश करते हैं। इसी तरह हिंदू पक्ष के प्रतिनिधि मुखरता से बताते हैं कि सर्वे के दौरान अंदर मिलने वाले प्रमाण संकेत दे रहे हैं, कि यह सरस्वती मंदिर रहा है। वास्तव में तो सीधे-सीधे इस बात की मार्केटिंग करने की भी कोशिश की जा रही है कि एएसआई का यह सर्वे हिंदू धर्मावलंबियों की याचिका पर ही किए जाने के निर्देश हुए हैं। एएसआई की सर्वे रिपोर्ट के हाईकोर्ट में पेश किए जाने से पहले ऐसी बयानबाजी गोपनीयता भंग करने जैसा कृत्य कह सकते हैं।
सर्वे के दौरान जब भी मंगलवार या शुक्रवार आता है, तो हिंदू और मुस्लिम पक्ष के लोग भोजशाला परिसर में जाकर अपनी आराधना करते हैं। शुक्रवार को मुस्लिम नमाज़ अता करने और मंगलवार को हिंदू परिसर में हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। कई साल पहले केंद्र सरकार ने दोनों पक्षों को यह व्यवस्था दी थी, तब से प्रशासन की देखरेख में इसका पालन किया जा रहा है। देखा गया कि सर्वे के दौरान हर मंगलवार को जब हिंदू पक्ष भोजशाला में पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं, उस दिन हिंदू पक्ष की तरफ से भोजशाला आंदोलन से जुड़ा कोई बड़ा हिंदूवादी नेता मीडिया के सामने कोई न कोई ऐसी बात जरूर करता है, जो सुर्खी बनती है। उन्हें एएसआई सर्वे पर न कोई बयान देने की जरूरत है, न इजाजत।
हिंदू पक्ष के लोग बार-बार मथुरा, ज्ञानवापी और अयोध्या के एएसआई सर्वे के नतीजे को आधार बनाकर भोजशाला में भी उसी तरह के प्रमाण मिलने का दावा करते हैं। जबकि, मुस्लिम प्रतिनिधि का दावा रहता है कि 1902 और 1903 में भी इसी तरह का सर्वे हुआ था और उस समय यह मान लिया गया था कि यह मंदिर नहीं है। आज भी उनका दावा है कि 1300 ईस्वी में जब मौलाना कमालुद्दीन यहां आए थे और उन्होंने मस्जिद बनाई थी। उस समय यहां कई तरह का रॉ-मैटेरियल मस्जिद के निर्माण के लिए लाया गया था। संभवतः उस समय लाए गए रॉ-मैटेरियल में कुछ ऐसी सामग्री आ गई होगी जो यहां हिंदू धर्म का प्रमाण दे रही है।
भोजशाला में बनी एक अक्कल कुईया को लेकर भी दोनों पक्षों के पास ऐसे दावे हैं, जो सर्वे को प्रभावित कर सकते हैं। हिंदुओं का कहना है कि इस तरह की अक्कल कुईया आर्यावर्त में 7 जगह है जिसमें से तीन जगह भारत में है। एक इलाहाबाद में, एक तक्षशिला और तीसरी भोजशाला में। धार की भोजशाला की अक्कल कुईया के बारे में उनका कहना है कि यह सरस्वती नदी से जुड़ा हुआ जल स्रोत था। माना जाता है कि जहां भी शिक्षा के विकसित केंद्र रहे, वहां विद्यार्थियों को ज्ञान देने के लिए इस तरह की कुईया का निर्माण किया गया। इसमें वे पत्थर पाए गए, जो विलुप्त हुई सरस्वती नदी में होते थे। इसके प्रमाण में हिंदू पक्ष विष्णु श्रीधर वाकणकर की किताब का हवाला देते हैं। जबकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वास्तव में यह अक्कल कुईया नहीं, बल्कि मस्जिदों के पास पाए जाने वाला जल कुंड है। वास्तव में इसकी सच्चाई एएसआई के सर्वे से ही पता चलेगी। लेकिन दोनों पक्षों की बयानबाजी सामाजिक सामंजस्य के लिए उचित नहीं है।

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