नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को सुप्रीम कोर्ट ने रखा बरकरार
नयी दिल्ली, 17 अक्तूबर (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को बहुमत का फैसले सुनाते हुए नागरिकता अधिनियम की उस धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा जो एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करती है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है। असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता के मामलों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी। चीफ जस्टिस ने अपना फैसला लिखते हुए धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि असम की भूमि के छोटे आकार और विदेशियों की पहचान कर पाने की लंबी प्रक्रिया के मद्देनजर इस राज्य में प्रवासियों के आने की दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। जस्टिस सूर्यकांत ने अपनी और जस्टिस एम एम सुंदरेश एवं जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से फैसला लिखते हुए चीफ जस्टिस से सहमति जताई और कहा कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है। सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के संबंध में कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29 (1) का उल्लंघन कदापि नहीं है।
फर्जी दस्तावेजों से दुरुपयोग की आशंका : जस्टिस पारदीवाला
बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि जाली दस्तावेजों के आने के कारण धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की अधिक आशंका हो गयी है। उन्होंने अलग से 127 पन्नों के असहमति के आदेश में कहा कि समय के साथ धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की आशंका बढ़ गई है, क्योंकि इसमें अन्य बातों के अलावा, असम में प्रवेश की गलत तारीख, गलत वंशावली, भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा बनाए गए झूठे सरकारी रिकॉर्ड, अन्य रिश्तेदारों द्वारा प्रवेश की तारीख की बेईमानी से पुष्टि आदि को सत्यापित करने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि उन अवैध प्रवासियों की मदद की जा सके जो 24 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने के कारण धारा 6ए के तहत पात्र नहीं हैं।