1984 दंगा पीड़ितों से सुप्रीम कोर्ट को मांगनी चाहिए माफी : फूल्का
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
नयी दिल्ली, 2 नवंबर
1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ रहे वरिष्ठ वकील एचएस फूल्का ने सिखों के नरसंहार पर कथित तौर पर ‘आंखें मूंदने’ के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी की मांग की है। दंगों की 40वीं बरसी पर शनिवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए फूल्का ने सिखों के नरसंहार को रोकने के लिए हस्तक्षेप न करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायाधीशों पर आरोप लगाए।
फूल्का ने कहा, ‘1984 की घटनाएं न केवल अनगिनत नागरिकों की हत्या का, बल्कि न्याय के भी दम तोड़ देने का द्योतक हैं। संपूर्ण न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो गई, आंखों पर पट्टी बांधे न्याय की देवी ने दर्शाया कि न्यायाधीश भी कथित तौर पर अंधे हो गये, क्योंकि वे अपने आसपास हो रहे अत्याचारों को देखने में विफल रहे। न्यायिक सक्रियता गायब हो गई।'
बंद किए गये कई मामलों को दोबारा खोलने के लिए एक नयी विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने के लिए जस्टिस दीपक मिश्रा की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, '2017 (33 साल बाद) तक सुप्रीम कोर्ट ने इस नरसंहार के अपराधियों को दंडित करने में सक्रिय रुचि नहीं ली।'
पीड़ितों को न्याय दिलाने की 40 साल की यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर 12 वीडियो जारी करते हुए फूल्का ने इसे 'न्याय की कभी न खत्म होने वाली तलाश' बताया। उन्होंने कहा, 'यह वीडियो शृंखला इस बारे में है कि कैसे हर जगह दोषियों को दंडित करने के बजाय बचाने के प्रयास किए गए। पीड़ितों द्वारा आज की गयी दूसरी मांग यह है कि न्याय देने में न्यायपालिका की विफलता के लिए सुप्रीम कोर्ट को माफी मांगनी चाहिए।'
फूल्का ने कहा कि 15 आयोगों और समितियों ने दंगों की जांच की, लेकिन आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 12 मामलों में केवल 50 आरोपियों को दोषी ठहराया गया, इस तथ्य के बावजूद कि 2,733 सिख मारे गए और 3,033 घायल हुए। उन्होंने कहा कि पूरी दिल्ली में सिखों के नरसंहार में कम से कम 10,000 लोग शामिल रहे होंगे, लेकिन 12 मामलों में केवल 50 आरोपियों को दोषी ठहराया गया है... यह किस तरह का न्याय है। प्रेस वार्ता में फूलका के साथ मौजूद दंगा पीड़ित दर्शन कौर और सोनिया कौर अपने परिवार पर हुए अत्याचार का दर्द साझा करते हुए रो पड़ीं।