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शंभू बॉर्डर हरियाणा और पंजाब से सुप्रीम कोर्ट ने मांगे तटस्थ नाम

08:08 AM Aug 03, 2024 IST
शंभू बॉर्डर हरियाणा और पंजाब से सुप्रीम कोर्ट ने मांगे तटस्थ नाम
शंभू बॉर्डर की फाइल फोटो। - ट्रिन्यू
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नयी दिल्ली, 2 अगस्त (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों से कहा कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सहित अन्य मांगों को लेकर शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से संपर्क करने के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने के वास्ते कुछ तटस्थ लोगों के नाम सुझाएं। अदालत ने कहा कि किसी को भी स्थिति को बिगाड़ना नहीं चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को अपनी शिकायतें व्यक्त करने का अधिकार है और वह सभी पक्षों को शामिल करते हुए बातचीत की एक सहज शुरुआत चाहता है।
अदालत ने कहा, ‘हम सभी पक्षों के बीच बातचीत की प्रक्रिया के संदर्भ में एक बहुत ही सहज शुरुआत चाहते हैं।’ पीठ ने कहा कि देश में बहुत अनुभवी हस्तियां हैं, जो समस्याओं के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। पीठ ने कहा, ‘कुछ तटस्थ व्यक्तियों के बारे में विचार करें। अगर आप दोनों समान नाम सुझा सकें तो हम इसका स्वागत करेंगे, क्योंकि इससे किसानों में अधिक विश्वास पैदा होगा।’
शीर्ष अदालत पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली हरियाणा सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें राज्य सरकार को एक सप्ताह के भीतर अम्बाला के पास शंभू बॉर्डर पर बैरिकेड हटाने के लिए कहा गया था, जहां प्रदर्शनकारी किसान 13 फरवरी से डेरा डाले हुए हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा, ‘किसी को भी स्थिति को और बिगाड़ना नहीं चाहिए। उनकी (किसानों) भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं, लेकिन एक राज्य के रूप में... आप उन्हें समझाने की कोशिश करें कि जहां तक ट्रैक्टरों, जेसीबी मशीनों और अन्य कृषि उपकरणों का सवाल है, उन्हें उन जगहों पर ले जाएं जहां उनकी जरूरत है।’ पीठ ने कहा, ‘हां, लोकतांत्रिक व्यवस्था में उन्हें अपनी शिकायतें व्यक्त करने का अधिकार है। ये शिकायतें अपने स्थान पर रहकर भी व्यक्त की जा सकती हैं।’
हर बार दो राज्यों के बीच लड़ाई जरूरी नहीं
पंजाब की ओर से पेश वकील ने चरणबद्ध तरीके से राजमार्ग खोलने का उल्लेख किया। पीठ ने कहा, ‘आप अपने प्रस्ताव का आदान-प्रदान क्यों नहीं करते? हर बार दो राज्यों के बीच लड़ाई होना जरूरी नहीं है।’ मेहता ने दलील दी कि कोई राज्य यह नहीं कह सकता कि किसानों को देश की राजधानी में जाने दिया जाए। उन्होंने कहा कि नोटिस जारी होने के बावजूद किसान हाईकोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुए।

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