सहारा
रमेश चन्द्र छबीला
अनिल ने दुकान से छुट्टी की। बाहर आकर मोबाइल पर नम्बर मिलाकर कहा, ‘हैलो, दीपाली, मैं आज देर से घर आऊंगा। मेरे लिये खाना न बनाना।’
‘क्यों?’ उधर से पत्नी दीपाली की आवाज सुनाई दी।
‘मेरा एक दोस्त विनय है, वह आज अपनी शादी की सालगिरह की दावत दे रहा है।’
‘ठीक है जल्दी आ जाना।’
कुछ ही देर में वह विक्ट्री बार जा पहुंचा जहां विनय उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
जब वे दोनों बार से बाहर निकले तो दस बज रहे थे। विनय ने कहा, ‘अच्छा भई अब मैं घर चलता हूं। तू भी घर चला जा।’
‘नहीं यार मैं तो गांधी पार्क में मेला डांस नाइट देखने जाऊंगा। कामिनी डांस ग्रुप बाहर से आया है। गजब की डांसर हैं उसके ग्रुप में।’ अनिल ने कहा।
नगर में ऐतिहासिक मेला चल रहा था। यह मेला लगभग पन्द्रह दिनों तक चलता था। मेले में हजारों दुकानें, झूले, सर्कस आदि होते थे। लगभग दस-बारह दिन नगर निगम द्वारा जनता के मनोरंजन के लिये कवि सम्मेलन, डांस नाइट, एक शाम शहीदों के नाम आदि प्रोग्राम आयोजित किये जाते थे।
अनिल की आयु लगभग तीस वर्ष थी। परिवार में पिताजी थे जिनको आठ-दस साल पहले अधरंग हो चुका था। माताजी का चार साल पहले स्वर्गवास हो चुका था। पत्नी दीपाली सुन्दर, सुशील तथा बी.ए. पढ़ी-लिखी थी। छोटी बहन सुनीता बी.ए. में पढ़ रही थी। पांच वर्षीय बेटी नीलू थी।
अनिल कपड़े के एक शो-रूम में नौकरी कर रहा था। दीपाली ने कई बार कहा कि वह भी ऑफिस में नौकरी कर लेगी, परन्तु अनिल ने साफ इंकार कर दिया था। मोहल्ले के कुछ बच्चों को दीपाली व सुनीता ट्यूशन पढ़ा रही थी। अनिल गांधी पार्क पहुंच गया। बड़े मंच पर डांस का प्रोग्राम चल रहा था। अनिल भी एक तरफ खड़ा होकर डांस देखने लगा।
अचानक उसे घर की याद आई। उसने जेब से मोबाइल निकाल कर देखा। दीपाली की तीन मिस कॉल आ चुकी थी। उसने समय देखा साढ़े ग्यारह बज रहे थे।
वह मोबाइल पर दीपाली का नम्बर मिलाकर बोला, ‘हैलो, सो गई थी क्या?’
‘कहां सोई थी?’ तुम्हें तीन बार फोन किया पर तुमने उठाया ही नहीं। कहां रह गये हो? अभी तक दावत चल रही है क्या?’ दीपाली का झुंझलाहट भरा स्वर सुनाई दिया।
‘दावत तो दस बजे हो गई थी। फिर मैं गांधी पार्क में डांस नाइट देखने आ गया। बस अब सीधा घर आ रहा हूं।’
अनिल ने बाइक स्टार्ट की और घर की ओर चल दिया।
सड़कें एकदम खाली थीं। अनिल को शराब का नशा चढ़ा हुआ था।
लड़कियों के डांस उसकी आंखों के सामने आ रहे थे। उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी। अब बाइक बहुत तेजी से दौड़ रही थी। अचानक ही एक गली में तीन-चार कुत्ते निकलकर सड़क पर दौड़े तो उसने एकदम ब्रेक मारनी चाही। बाइक नियंत्रण से बाहर हो गई। उसका सिर धड़ाम से सड़क पर लगा, खून का फव्वारा बह निकला और वह बाइक के साथ घिसटता हुआ चला गया।
बारह बजे के बाद दीपाली ने मोबाइल पर कॉल मिलाई।
उधर से स्विच बन्द होने का स्वर सुनाई दिया। उसने सोचा कि हो सकता है अनिल डांस प्रोग्राम में ही हो और अभी वहां से चला ही न हो।
कुछ देर बार दीपाली के फोन की घण्टी बजी। उसने फोन उठाकर कहा, ‘अब कहां रह गये हो?’
‘मैडम, आप कौन बोल रही हैं?’ उधर से एक अपरिचित स्वर सुनाई दिया।
‘आप कौन हैं?’ यह फोन तो अनिल का है। वह मेरे पति हैं।’
‘मैं इंस्पेक्टर गजेन्द्र वर्मा बोल रहा हूं। यहां कोर्ट रोड पर एक बाइक का एक्सीडेंट हुआ है। चलाने वाले की जेब से यह मोबाइल मिला है। हमारी गाड़ी अनिल को लेकर जिला अस्पताल आ गई है।’
दीपाली सुनकर बुरी तरह घबरा गई। उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। उसने घबराते हुए पूछा, ‘अनिल को ज्यादा चोट तो नहीं लगी?’
‘सॉरी मैडम, आपका अनिल बच नहीं पाया। उसके सिर व चेहरे पर बहुत चोट लगी थी। आप लोग यहां आ जाओ।’
उसके रोने की आवाज सुनकर पापा व सुनीता भी जाग गये। उन दोनों को जब दीपाली से पता चला कि एक्सीडेंट में अनिल की मौत हो गई है तो वे भी बुरी तरह घबराकर रोने लगे। उनके जोर-जोर से रोने की आवाज से गली के पास-पड़ोसी भी जाग गये और उनके घर जा पहुंचे। अनिल के बारे में जब पता चला तो सभी को बहुत दुख हुआ।
एक पड़ोसी मुकेश ने कहा, ‘अंकल, मैं आपको व भाभी को अस्पताल लेकर चलता हूं। सुनीता यहीं घर पर रहेगी।’
मुकेश अपनी कार द्वारा उन दोनों को जिला अस्पताल ले गया।
इमरजेंसी में दो डॉक्टर व नर्से आदि ड्यूटी पर थे। एक पुलिस इंस्पेक्टर भी मौजूद था।
‘उसे बहुत चोट लगी थी। शायद वह तेजी से बाइक चला रहा था। उसने शराब पी रखी थी। हेलमेट भी नहीं पहन रखा था। उसकी बाइक कैसी गिरी और फिसलती चली गई, पता नहीं चल सका। आते-जाते किसी वाहन वाले ने सूचना दे दी तो पुलिस वहां पहुंच गई। लेकिन तब तक वह सदा के लिए जा चुका था।’ इंस्पेक्टर ने बताया।
वे डॉक्टर व इंस्पेक्टर के साथ मुर्दाघर में पहुंचे जहां लाश सफेद कपड़े से ढकी हुई थी। चेहरे से कपड़ा हटाते ही दीपाली की चीख निकल गई और पापा बुरी तरह रोने लगे। अनिल का सिर व चेहरा बुरी तरह जख्मी था।
सभी वहां से बाहर आ गये।
इंस्पेक्टर ने कहा, ‘आजकल बाइक चलाने वालों के बहुत एक्सीडेंट हो रहे हैं। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता हो जब एक्सीडेंट न होता हो। रोजाना बाइक सवारों के मरने के समाचार भी छपते हैं। जवान लड़के बाइक चलाते हुए बहुत तेज दौड़ाते हैं। हेलमेट पहनते नहीं, शराब पीकर तो ये बाइक को हवाई जहाज बनाना चाहते हैं।’
‘इंस्पेक्टर साहब, मैं भी अनिल को बहुत समझाता था कि तेज मत चलाया कर। हेलमेट जरूर पहना कर। सुनकर कह देता था- पापाजी कुछ नहीं होगा और आज चला गया न हम सबको अकेला छोड़कर। काश! वह मेरा कहना मान लेता। तेज न चलाता और हेलमेट पहन लेता।’ पापा की आंखों में आंसू रुक नहीं रहे थे।
पोस्टमार्टम, अन्तिम संस्कार, ब्रह्म-भोज रस्म पगड़ी आदि तक परिवार पूरी तरह दुख के सागर में डूब चुका था।
दीपाली की मां व पिताजी भी आते रहे। उन दोनों से बेटी का यह विधवा रूप देखा नहीं गया। एकदिन मां व पिताजी ने दीपाली से कहा, ‘अब क्या होगा बेटी? तेरे सामने तो पूरा जीवन पड़ा है। अनिल के साथ ही तेरा जीवन था जब वही नहीं रहा तो फिर यहां तू किसके सहारे रहेगी?’
दीपाली कुछ नहीं बोली।
‘सुनीता की भी शादी हो जायेगी। हो सकता है उसके पापा ऐसे लड़के से शादी करें तो घर का दामाद बनकर रहे। तुझे अपनी बेटी नीलू के भविष्य के लिये भी सोचना है। हम चाहते हैं कि तुझे भी कोई जीवन साथी मिल जाये। हम तेरी दूसरी शादी करना चाहते हैं। अभी जल्दी नहीं है, जब तू कहेेगी हो जायेगी।’ पिताजी ने कहा।
‘पिताजी, जो इस घर का सहारा था वह अचानक चला गया और आप चाहते हैं कि अपने इस परिवार की नाव को मझधार में छोड़कर मैं अपने सुख-आराम की खातिर चली जाऊं। यह परिवार जो कल तक मेरा था, उसे किसके सहारे छोड़ दूं? पापा जो ठीक से चल नहीं सकते उनको किसके सहारे अकेला छोड़ दूं? सुनीता जो अभी पढ़ रही है और बच्चों को पढ़कर इस घर के खर्चे में भी मदद कर रही है, उसे छोड़कर चली जाऊं। मैं इस घर में बहू बनकर आई थी लेकिन अब मैं एक बेटी बनकर इस परिवार का सहारा बनूंगी।’
मां व पिताजी दीपाली की ओर देखते रह गये। उनको प्रसन्नता थी कि उनकी बेटी कमजोर नहीं हुई है। दीपाली ने मजबूत शब्दों में कहा, ‘पिताजी, आपकी बेटी इतनी कमजोर भी नहीं है जो मुसीबतों से टूट जायेगी। मैं संघर्ष करूंगी। पिछले सप्ताह पापा के एक पुराने दोस्त आये थे। उनके बेटे ने एक स्कूल चला रखा है। वह कह रहे थे कि मुझे स्कूल में नौकरी दिला देंगे। पिताजी आप मेरी बिल्कुल भी चिन्ता न करें।’
‘ठीक है बेटी, जैसे तेरी मर्जी। हम भी समय-समय पर आते रहेंगे और जो भी हमसे होगी, तेरी मदद करते रहेंगे।’ मां ने आश्वस्त होकर कहा। दीपाली के चेहरे पर आशाभरी मुस्कान फैल गई।