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Sunday Special : 5000 साल पुराना है पंजाब के इस कस्बे का इतिहास, अशोक ने यहां बनवाए थे पांच बौद्ध स्तूप

06:04 PM Jan 12, 2025 IST

चंडीगढ़, 12 जनवरी (ट्रिन्यू)

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यूं तो भारत में ऐसी कई जगहें है जो इतिहास की कहानियां बयां करती हैं लेकिन आज हम आपको चंडीगढ़ के समीप बसे संघोल के बारे में बताएंगे। 5000 साल पुराने इस कस्बे में प्राचीन सभ्यता का अनोखा संग्रह है। राष्ट्रीय राजमार्ग -5 पर चंडीगढ़ से 42 किमी दूरी पर स्थित संघोल संग्रहालय का विकास संघोल पुरातात्विक स्थल को संरक्षित करने के एकमात्र उद्देश्य से किया गया था। इसमें हड़प्पा सभ्यता के खंडहर हैं और वर्तमान में इसका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।

पंजाब के लोक किस्सों का अहम अंग

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पंजाबी किस्सों के नायक भाइयों की जोड़ी रूप-बसंत से लेकर मुगल, यवन, मौर्य, कुषाण, हिंद, पहलो, कंफिसियस और हुण तक इतिहास संघोल में समाया हुआ है। यही नहीं, भगवान बुद्ध का भी संघोल से गहरा नाता रहा है। 1960 के दशक में खोजे गए इस स्थल पर हड़प्पा काल की कलाकृतियां मिली हैं, जिनमें बाद के गुप्त और कुषाण काल ​​के कई अवशेष हैं। उत्खनन से ऐतिहासिक और कलात्मक महत्व की उत्कृष्ट टेराकोटा आकृतियां, प्राचीन सिक्के, मुहरें और मूर्तियाँ सामने आई हैं।

हड़प्पा सभ्यता की निशानियां

संग्रहालय में दिखाई देने वाली समृद्ध संस्कृति और विरासत से परे, संघोल संग्रहालय प्राचीन मूर्तियों के अपने संग्रह के लिए भी प्रसिद्ध है जो गुप्त और कुषाण काल ​​की झलक पेश करते हैं। इसके अलावा यहां टेराकोटा आकृतियों का व्यापक संग्रह है। माना जाता है कि इनमें से अधिकांश मूर्तियां और आकृतियां हड़प्पा सभ्यता के समय की हैं, जिससे आपको इस जगह के समृद्ध इतिहास की एक झलक मिलती है। अधिकांश मूर्तियों में जानवरों, मनुष्यों और देवताओं के चित्रण शामिल हैं, जो लोगों के दैनिक जीवन और धार्मिक विश्वासों को दर्शाते हैं, जो हड़प्पा सभ्यता की मूर्तियों के साथ काफी आम विषय है।

अशोक ने यहां बनवाए थे पांच बौद्ध स्तूप

संघोल का बौद्ध विहार बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मौर्य सम्राट अशोक ने भगवान बुद्ध परिनिर्वाण के लगभग 100 साल बाद उनकी चिता भस्म पर स्तूप बनवाए थे। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यह मात्र जनश्रुतियां हैं। कहा जाता है कि ग्रामीणों ने अनजाने में इन पांच स्तूपों में से तीन स्तूपों को नष्ट कर दिया। अब यहां सिर्फ दो बौद्ध स्तूपों या मठों के अवशेष देखने को मिलते हैं।

ट्रांसपोर्ट की नहीं होगी दिक्कत

संघोल संग्रहालय संघोल गांव में काफी दूर है लेकिन अच्छे परिवहन माध्यम के चलते आपको यहां तक पहुंचने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। संग्रहालय तक पहुंचने व वापिसी के लिए कई टैक्सियां और सार्वजनिक बसें उपलब्ध हो जाती हैं, जिससे आवागमन काफी आरामदायक बन जाता है।

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