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आशियाने के लिए दो बिस्वा जमीन भी नहीं दे पाई सुक्खू सरकार

10:12 AM Jul 11, 2025 IST

शिमला, 10 जुलाई (हप्र)
हिमाचल में आपदा का दंश झेल रहे लोगों को राहत पहुंचने का सच ये है कि प्रदेश सरकार राज्य में वर्ष 2023 में आई अब तक की सबसे भयानक आपदा में अपना घर तक गंवा चुके पीड़ितों को अभी तक आशियाना बनाने के लिए दो बिस्वा जमीन भी उपलब्ध नहीं करवा पाई है। ऐसे में आपदा पीड़ितों को घर बनाने के लिए दो बिस्वा जमीन उपलब्ध करवाने की प्रदेश की कांग्रेस सरकार की अधिसूचना फाइलों में ही दफन होकर रह गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमाचल प्रदेश में वन भूमि के साथ-साथ वह सारी जमीन जो बंजर है वह भी वन भूमि है। यह प्रावधान इंडियन फारेस्ट एक्ट 1952 में है और इसके चलते प्रदेश सरकार किसी भी वन भूमि को अपने स्तर पर किसी को भी नहीं दे सकती। हिमाचल में 1952 में एक अधिसूचना जारी हुई। 1927 के इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के तहत प्रदेश के तत्कालीन मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर)ने अधिसूचना जारी की। अधिसूचना में कहा गया है कि वन भूमि के साथ साथ प्रदेश में एवरी वेस्टलैंड इज फॉरेस्ट लैंड। इस अधिसूचना के बाद से सरकार के पास भूमि ही बहुत कम बची है। आलम यह है कि 73 साल पहले हुई इस अधिसूचना का कोई विकल्प सरकार नहीं तलाश सकी है। 1980 का वन संरक्षण कानून लागू होने के बाद दिक्कतें और बढ़ी हैं। सरकार को न सिर्फ विकास के प्रोजेक्टों, बल्कि सामाजिक सेवा क्षेत्र की योजनाओं के लिए भी वन भूमि के उपयोग के लिए केंद्र से मंजूरी लेनी पड़ती है। कई मर्तबा तो मंजूरी न मिलने से प्रोजेक्ट अटक जाते हैं। विधायक प्राथमिकता की योजनाओं के कई प्रोजेक्ट भी इसी वजह से अटके पड़े हैं।
प्रदेश बीते तीन सालों से आपदा का दंश झेल रही है। आपदा में घर खोने वाले भूमिहीन परिवारों को सरकार ने ग्रामीण इलाकों में 3 तथा शहरों में 2 बिस्वा जमीन देने की बात कही थी। इससे पहले पूर्व जयराम सरकार ने भी भूमि हीनों को आशियाना बनाने के लिए 2 व 3 बिस्वा जमीन देने की घोषणा की थी। मगर 1952 की अधिसूचना इसमें आड़े आ रही है।

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सरकार कानूनविदों से लेगी राय : नेगी

राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी का कहना है कि 1952 की अधिसूचना बारे सरकार कानूनविदों की राय लेगी। इससे पहले सरकार ने इस मुद्दे पर मंथन के लिए उप समिति का गठन किया है। उप समिति की रिपसेर्ट आने के बाद सरकार कानूनविदों की राय लेकर इस मुद्दे का समाधान तलाशने की कोशिश करेगी।

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