सुधामूर्ति सादगी और सेवा की प्रतिमूर्ति
अरुण नैथानी
लेखिका, व्यवसायी और समाजसेवी सुधामूर्ति के जीवन के इतने आयाम हैं कि उनके व्यक्तित्व का सीधा विवरण देना मुश्किल हो जाता है। वे गाहे-बगाहे अपनी साफगोई व सुस्पष्ट विचारों के लिए सुर्खियों में रहती हैं। उनकी हालिया चर्चा सेवा-सृजन आदि क्षेत्रों में योगदान हेतु राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत होने के लिए हो रही है। कभी-कभी किसी पद पर योग्य व्यक्ति की नियुक्ति उस पद को भी गरिमा दे जाती है। कमोबेश सुधा मूर्ति के बारे में ऐसा कहा जा सकता है। समाज में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री व पद्मभूषण का बड़ा नागरिक सम्मान पहले ही दिया जा चुका है। सबसे ज्यादा चर्चा उनकी सादगी को लेकर होती है। ऐसे दौर में जब भारत में नवधनाढ्य रुपयों की खनक में उछलने लगते हैं, सुधा मूर्ति की सादगी प्रेरित करती है। खुद अरबपति होने और पति की अरबों रुपये की संपत्ति के बावजूद उनकी सहजता-सरलता अनुकरणीय है। भारतीय संस्कृति व संस्कारों की पैरोकार सुधा कहती हैं कि पिछले तीस सालों से उन्होंने कोई नई साड़ी नहीं खरीदी। सादगी का आलम देखिए- जब उन्होंने लंदन में अपनी बेटी-दामाद के घर जाने के लिए प्रवासन अधिकारी को अपने जाने का पता ‘दस डाउनिंग स्ट्रीट’ प्रधानमंत्री का आवास बताया तो अधिकारी ने कहा कि आप कहीं मजाक तो नहीं कर रही हैं। खुद अरबपति होने के बावजूद सुधामूर्ति आम जीवन में ऐसे ही सादगी से रहती हैं।
कॉलेज की पढ़ाई से लेकर सार्वजनिक जीवन में उन्होंने इतना कुछ किया कि वे सदैव पुरस्कारों से नवाजी जाती रहीं। कालेज में गोल्ड मेडल जीतने के सिलसिले से लेकर पद्मश्री और पद्मभूषण तक उनके नाम हैं। वे शिक्षाविद् हैं, लोकप्रिय लेखिका हैं, समाज सेविका हैं। उन्होंने अपने सृजन से वैश्विक ख्याति अर्जित की है। वे इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन रही हैं। वे कभी अपने सॉफ्टवेयर अरबपति पति एन. आर. नारायणमूर्ति, कभी वेंचर कैपिटलिस्ट बेटी अक्षता मूर्ति, कभी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक तो कभी अपने बयानों की वजह से सुर्खियां बटोरती रही हैं। टीवी व सोशल मीडिया पर उनके बयान चाव से पढ़े जाते हैं। पिछले दिनों उनके शाकाहार पर दिये बयानों को लेकर सोशल मीडिया पर खूब गर्मागर्मी रही। उन्होंने कहा था कि जब वे विदेश जाती हैं तो पहले शाकाहारी होटल-रेस्टोरेंट ढूंढ़ती हैं। खासकर वे चम्मच का विशेष ध्यान रखती हैं कि कहीं वो तामसिक खाद्य पदार्थ के लिए उपयोग नहीं किया गया हो। आलोचना पर वे कहती हैं ये कोई नई बात नहीं है क्योंकि उनसे पहले पीढ़ी के लोग भी इसी तरह बाहर खाने को लेकर सतर्क रहते थे। सुधामूर्ति तब भी मजबूती से अपने पति एन. आर. नारायणमूर्ति के पक्ष में खड़ी नजर आईं जब उनके युवाओं को हर सप्ताह सत्तर अस्सी घंटे काम करने वाले बयान की आलोचना हुई थी।
कर्नाटक स्थित हावेरी में 19 अगस्त, 1950 को एक संस्कारी ब्राह्मण परिवार में जन्मी सुधा के पिता आर.एच. कुलकर्णी एक डॉक्टर व मां विमला अध्यापिका थीं। प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी व्यावसायिक शिक्षा कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग से की। उन्होंने कालांतर में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री की। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उन्हें स्वर्ण पदक दिया था। उस समय गिनी-चुनी लड़कियां ही ये आधुनिक विषय चुनती थीं। इसी तरह टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी में वे पहली महिला इंजीनियर के रूप में नियुक्त हुईं। लोग उन्हें अचरज से देखते थे कि क्या कोई महिला भी इंजीनियर हो सकती है।
सुधामूर्ति एक बहुचर्चित साहित्यकार भी हैं। कन्नड़ और अंग्रेजी साहित्य में उनकी खास पहचान है। उनकी संवेदनशील रचनाओं के चलते उन्हें खासी लोकप्रियता मिली। उन्हें कन्नड़ का लेडी प्रेमचंद की संज्ञा भी दी गई। वे कई उपन्यास, प्रेरक लेखन, तकनीकी पुस्तकें व यात्रा वृत्तांत लिख चुकी हैं। वहीं उनका बाल साहित्य भी खासा लोकप्रिय हुआ है। दुनिया की कई भाषाओं में उनकी पुस्तकें अनुवादित भी हुई हैं।
बेहद संपन्न परिवार का हिस्सा होने के बावजूद सुधामूर्ति के दिल में समाज के वंचित, उपेक्षित व पीड़ित वर्ग के लिए गहरी संवेदना रही है। उनकी विशिष्ट पहचान समाज कल्याण के कार्यों को लेकर भी रही है। इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन के रूप में उन्होंने समाज के लिए ठोस काम किये। इसके अंतर्गत हेल्थकेयर, स्वच्छता, गरीबी मुक्ति के अभियान भी शामिल हैं। उनके प्रयासों से हजारों बाढ़ पीड़ितों के लिए घर बनने संभव हो सके। कई स्कूलों में पुस्तकालय बनवाए। स्वच्छता अभियान के तहत सैकड़ों सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण किये गए। इसी कड़ी में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में बनी विशिष्ट लाइब्रेरी भी शामिल है।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि वे अपने पति के मिशन में हरदम साथ खड़ी रहीं। उन्होंने उन्हें प्रेरित किया। एक टीवी कार्यक्रम में जिक्र भी किया था कि उन्होंने पति नारायणमूर्ति को इन्फोसिस की स्थापना के लिए वर्ष 1981 में दस हजार रुपये की पूंजी दी थी। फिलहाल नारायणमूर्ति की गिनती हजारों करोड़ वाले अरबपतियों में होती है। सादगी से समाज के कल्याण के लिए निरंतर काम करने वाले इस दंपति की भारत में विशिष्ट छवि है। उनकी विशिष्ट सफलता व सादगी का जीवन करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणास्रोत है।
बहरहाल, अपनी साफगोई और सहजता के लिए चर्चित सुधामूर्ति को भारतीय मीडिया से हमेशा सकारात्मक प्रतिसाद मिलता रहा है। वे अक्सर प्रिंट व डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म पर साक्षात्कारों में बेबाकी से अपनी बात रखती नजर आती हैं। वे भारतीय जीवन मूल्यों व प्रकृतिमय जीवन की पक्षधर हैं। बच्चों का गुणवत्तापूर्ण लालन-पालन और महिलाओं का सशक्तीकरण सदैव उनकी प्राथमिकताओं में रहा है। अनेक विश्वविद्यालयों से मिली मानद डॉक्टरेट की उपाधियां और तमाम राष्ट्रीय पुरस्कार उनकी मेधा व योगदान का प्रतिफल है।