खुद के फैसलों पर अडिग सेनानी सुचेता कृपलानी
कृष्ण प्रताप सिंह
वर्ष 1936 में महात्मा गांधी द्वारा विरोध के बावजूद उनके ‘दाहिने हाथ’ आचार्य जेबी कृपलानी से प्रेम विवाह। साल 1940 में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष के उद्देश्य से अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का गठन। फिर 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा ऐतराज की उपेक्षा कर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद ग्रहण करना। बिना झुुके अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता से जीवन भर कोई समझौता गवारा नहीं। प्रेम के आलोचकों में विनोबा भावे भी शामिल हों तो भी अवज्ञा। और असहमत होने पर पति की राजनीतिक पार्टी से भी किनारा।
अंग्रेजों से संघर्ष में कुछ भी कसर उठा न रखने वाली सुचेता कृपलानी की आज जयंती है। उनकी पहचान उनके ऐसे ही दो टूक फैसलों से है। अक्तूबर, 1963 में वे उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं तो स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री भी कहलाईं।
सुचेता कृपलानी का मुख्यमंत्री बनना उनकी राजनीति की स्वाभाविक परिणति नहीं, प्रदेश कांग्रेस की धड़ेबाजी का परिणाम था। उन दिनों अपदस्थ मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त का धड़ा कतई नहीं चाहता था कि उसके विरोधी कमलापति त्रिपाठी के पक्ष का कोई नेता मुख्यमंत्री बन जाये। इसलिए उसने सुचेता का नाम आगे किया। चूंकि सुचेता किसी धड़े में शामिल नहीं थीं, उनके नाम पर कमलापति त्रिपाठी का धड़ा भी सहमत हो गया। लेकिन पं. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने ऐतराज जताया कि मुख्यमंत्री बनने पर अपने पति आचार्य जेबी कृपलानी की तरह वे भी समस्याएं ही खड़ी करेंगी।
आगे चलकर यह बात सही भी साबित हुई। सुचेता ने उन चन्द्रभानु गुप्त को भी निराश ही किया, जो समझते थे कि अपनी जगह ‘पैराशूट मुख्यमंत्री’ बनवाकर वे उनसे जो भी चाहेंगे, करा सकेंगे। पैराशूट मुख्यमंत्री इस अर्थ में कि सुचेता न उत्तर प्रदेश में जन्मीं, न ही पलीं-बढ़ीं। साल 1908 में 25 जून को पंजाब (अब हरियाणा) के अम्बाला में पैदा होने और दिल्ली में पढ़ने-लिखने के बाद वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की व्याख्याता जरूर बन गई थीं, लेकिन उप्र से उनका रिश्ता चुनावी ही बना रहा था। संविधान सभा के लिए भी वे इसी प्रदेश से चुनी गई थीं। तब, जब उसका नाम संयुक्त प्रांत था।
1962 में पं. नेहरू ने अचानक उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में भेजा तो वे बस्ती जिले की मेंहदावल विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक, फिर मंत्री बन गईं। इसके अगले ही साल राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि नेहरू जी के ऐतराज के बावजूद वे मुख्यमंत्री बन गईं और मार्च, 1967 तक इस पद पर रहीं। प्रदेश के राज्य कर्मचारी 62 दिनों तक हड़ताल के बावजूद उनको झुका नहीं पाये।
जैसा कि पहले बता आये हैं, साल 1936 में जेबी कृपलानी से उनके प्रेम-विवाह ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी के आश्रम में काम करते-करते दोनों परस्पर शादी के फैसले तक पहुंचे तो महात्मा गांधी व उनके परिजन सब विरुद्ध थे। गांधीजी को अंदेशा था कि दाम्पत्य-जीवन उनके दाहिने हाथ जेबी कृपलानी को स्वतंत्रता संघर्ष से विमुख कर देगा, जबकि सुचेता के परिजनों को उनके व कृपलानी के बीच उम्र और जाति का फासला बहुत बेमेल लगता था। जेबी तब 48 वर्ष के थे और सुचेता 28 की। जेबी ‘कृपलानी’ थे तो सुचेता ‘मजूमदार’।
महात्मा ने सुचेता से किसी और से शादी करने को कहा लेकिन सुचेता ने पूछा कि ‘आचार्य से प्रेम के बाद मेरा किसी और से शादी करना क्या उसके, आचार्य और अपने तीनों के साथ धोखा नहीं होगा?’ निरुत्तर महात्मा ने उन्हें कृपलानी से शादी की इजाजत तो दे दी, आशीर्वाद नहीं दिया-सुचेता के इस वचन के बावजूद कि वे कृपलानी की शक्ति बनेंगी, कमजोरी नहीं। सुचेता ने अपना यह वचन निभाया भी। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर वे एक साल जेल में रहीं और आजादी के बाद देश नोआखाली दंगों की आग में झुलसने लगा तो महात्मा के साथ उसे बुझाने गईं। साल 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रतिनिधि चुनी गईं।
इसके बाद, जेबी कृपलानी ने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बनाई तो वे पहले तो वे उनके साथ हो लीं, लेकिन असहमतियों के बाद कांग्रेस में लौट गईं। इस क्रम में 1952 में वे नई दिल्ली लोकसभा सीट से जेबी की पार्टी से तो 1957 में कांग्रेस से सांसद चुनी गई और पं. नेहरू की सरकार में राज्यमंत्री बनीं। 1967 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी गोंडा लोकसभा सीट जीतकर फिर लोकसभा पहुंचीं। उन दिनों अलग-अलग पार्टियों में होने के कारण कई लोग जेबी कृपलानी का और उनका मजाक उड़ाते थे। कृपलानी कांग्रेस का विरोध करते तो कांग्रेसी कहते कि उनके विरोध में तो उनकी पत्नी भी शामिल नहीं हैं, जबकि सुचेता के मुख्यमंत्री रहते उनके खिलाफ अभियानों में कहा जाता कि उनके पति भी उनके समर्थक नहीं हैं।
इन स्थितियों के बावजूद सुचेता राजनीति से अवकाश लेने तक कांग्रेस में ही सक्रिय रहीं और जेबी कांग्रेस का विरोध करते रहे। राजनीतिक मतभेदों के बावजूद घर में पत्नी के तौर पर सुचेता जेबी का पूरा ख्याल रखती थीं। ईमानदारी व नैतिकता का हाल यह था कि सुचेता मुख्यमंत्री पद के सारे दायित्व निभाते हुए भी अपने घर के सारे काम खुद किया करती थीं। उन्होंने ‘ऐन अनफिनिश्ड आटोबायोग्राफी’ नाम से आत्मकथा भी लिखी, लेकिन उसमें 1947 तक के अपने जीवन का वृत्तांत ही दिया है। यह भी कि सुचेता गाती भी बहुत अच्छा थीं। आजादी के वक्त पं. नेहरू के ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ वाले ऐतिहासिक भाषण से पहले ‘वन्देमातरम’ का गान उन्होंने ही किया था।