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अनियोजित निर्माण का हठ

07:04 AM Sep 27, 2023 IST

ज्यादा समय नहीं हुआ जब उत्तराखंड के तीर्थनगरी जोशीमठ में बड़े पैमाने पर आई दरारों के बाद भय व असुरक्षा का माहौल बन गया था। घरों में आई दरारों के बाद काफी लोगों को विस्थापित होना पड़ा। कई मकान जमींदोज भी हुए थे, कुछ दरार आने के बाद तोड़ दिये गये थे। उसके बाद केंद्र व राज्य सरकारें हरकत में आईं। अब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की एक रिपोर्ट ने जोशीमठ को अपनी क्षमता से अधिक भार वहन करने वाला शहर घोषित किया है। साथ ही सिफारिश की है कि इस क्षेत्र में अब नये निर्माण को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। दरअसल, शीर्ष वैज्ञानिक व प्रमुख तकनीकी संस्थानों ने इस साल जनवरी में जोशीमठ में भूमि धंसाव प्रभावित क्षेत्रों में भवन निर्माण का दबाव रेखांकित किया है। लेकिन राज्य सरकार ने रिपोर्ट मिलने के कई माह बाद भी इसे सार्वजनिक नहीं किया था, जिसको लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी। दरअसल, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने अपनी एक सौ तीस पेज की रिपोर्ट में आपदा के बाद की स्थिति के मूल्यांकन के बाद ही निर्माण कार्य पर रोक की सिफारिश की है। यह रिपोर्ट आठ प्रमुख संस्थानों की पड़ताल के बाद तैयार की गई है। इन संस्थानों में रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, आईआईटी रुड़की, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, सेंटर ग्राउंड वॉटर बोर्ड, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रुड़की शामिल रहे हैं। इन संस्थानों ने जोशीमठ में जमीन धंसने के कारणों की पड़ताल की और उससे उबरने के उपाय बताए। बताया जाता है कि जनवरी के अंत में प्रारंभिक रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सौंप दी गई थी। लेकिन राज्य सरकार ने इन रिपोर्टों को सार्वजनिक नहीं किया। अदालत की नाराजगी के बाद राज्य सरकार ने यह रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट के विचार हेतु भेजी है।
दरअसल, रिपोर्ट बताती है कि जोशीमठ की वहन क्षमता से अधिक निर्माण शहर में किये गये। जहां भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप मकानों का डिजाइन तैयार नहीं किया गया, वहीं जमीन की भार वहन क्षमता का भी अवलोकन नहीं किया गया। एक किस्म से ढीली मिट्टी पर निर्माण कार्य होता रहा है। वहीं शहर में जल निकासी की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। आठ संस्थानों की रिपोर्ट बताती है कि यह शहर ग्लेशियरों द्वारा लायी गई मिट्टी पर बसा है। शहर के नीचे पानी के रिसाव से चट्टानें खिसक रही हैं। जिसके चलते धंसाव की गति बढ़ी है। दरअसल, इसे पैरा ग्लेशियल कहा जाता है। इस इलाके में कभी ग्लेशियर हुआ करते थे। ग्लेशियर पिघलने के बाद जो मलबा रह गया था उस पर ही शहर का बसाव हुआ है, जो अधिक भार वहन करने में सक्षम नहीं है। दरअसल, यहां की जमीन बोल्डर, बजरी और मिट्टी का जटिल मिश्रण है। जिसके खिसकने से यह संकट पैदा हुआ है। वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में भूकंप की भी आशंका जतायी है। वहीं दूसरी ओर राज्य के वैज्ञानिक एनटीपीसी की विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना को लेकर भी संदेह जताते रहे हैं। लेकिन हालिया वैज्ञानिक अध्ययन में इसकी आशंका से इनकार किया गया है। हालिया अध्ययन बताते हैं कि शहर में तर्कसंगत ड्रेनेज सिस्टम का अभाव रहा है। वहीं शहर के पुराने भू-स्खलन क्षेत्र में बसने के कारण यह संकट बढ़ा है। फिर क्षमता से अधिक अनियंत्रित निर्माण कार्य होने से समस्या विकट हुई है। दूसरी ओर अलकनंदा नदी से होने वाले कटाव को भी एक कारण माना गया है। वहीं आबादी का बढ़ता दबाव भी समस्या के मूल में है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जोशीमठ की आबादी साढ़े सोलह हजार के करीब थी। बताया जाता है कि अब यह पच्चीस हजार से अधिक है। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की ने जोशीमठ में निर्माण शैली पर सवाल उठाये हैं और इस शहर समेत अन्य पहाड़ी शहरों में नगर नियोजन के सिद्धांतों की समीक्षा करने पर बल दिया है। यदि भू-जलवायु स्थितियों को ध्यान में रखकर नियामक तंत्र द्वारा लाई गई जागरूकता के साथ बेहतर भवन निर्माण सामग्री व तकनीक का प्रयोग किया जाएगा, तो ऐसी आपदाएं टाली जा सकती हैं।

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