वीरांगना का संघर्ष
महारानी जिंद कौर महाराजा रणजीत सिंह की सबसे छोटी रानी थीं। इन दोनों का एक पुत्र हुआ ‘दलीप सिंह’। वर्ष 1839 में महाराणा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। पंजाब राज्य मंे अराजकता का माहौल हो गया। रानी जिंद कौर ने केवल पांच साल की आयु में ही ‘दलीप सिंह’ को राजगद्दी पर बैठा दिया और स्वयं उसकी संरक्षिका बनकर काम-काज देखती रहीं। जिंद कौर अपनी कुशल नीतियों से ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध मोर्चा लेती रहीं। 1848 में अंग्रेजों ने अभियोग चलाकर इन्हें लाहौर से हटा दिया। महारानी के अलावा किसी में इतनी हिम्मत न थी जो अंग्रेजों से मुठभेड़ करता। रानी जिंद कौर को चुनार किले में नज़रबंद कर दिया गया और उनके बेटे को अंग्रेजों ने नौ साल की उम्र में लंदन भेज दिया। मां ने हिम्मत नहीं हारी। वे भेष बदलकर किसी तरह कैद से निकल भागीं और नेपाल जा पहुंची। रानी जिंद कौर ने अपने बेटे दलीप सिंह से मिलने के कई प्रयास किए। लेकिन अंग्रेजों ने एक भी पत्र उनके बेटे के हाथ न लगने दिया। समय बीतता रहा। उनकी आंखों की रोशनी भी चली गई। वर्ष 1861 में इंग्लैंड में वे किसी तरह अपने पुत्र दलीप सिंह से मिल पाईं। दलीप सिंह अपनी मां की हालत देखकर बेबस हो गए। वे अक्सर मां के चरणों में सिर रखकर रोते और कहते, ‘मां मैं तुम्हारे लिए कुछ न कर सका। मुझे माफ कर देना।’ वर्ष 1863 में इन्होंने अपने बेटे की गोद में ही प्राण त्याग दिए।
प्रस्तुति : रेनू सैनी