PGI में हड़ताल लाइलाज : पीड़ा में मरीज, इलाज की टूट रही उम्मीदें
अस्पताल प्रशासन और कर्मचारियों के बीच पिस रहे मरीज
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 14 अक्तूबर
हद हो गई। कहां गई इंसानियत। मरीजों के लिए पीजीआई एक मंदिर और डॉक्टर भगवान है। लेकिन भगवान भी क्या करे, जब मरीजों का दर्द कम करने के लिए उनके साथ स्टाफ ही नहीं है। पिछले चार दिनों से पीजीआई में हड़ताल के चलते मरीज बिना इलाज लौट रहे हैं। जहां मरीज इलाज की उम्मीद में आए थे, अब उनके लिए अस्पताल के दरवाजे लगभग बंद हो चुके हैं। यहां आने वाले हजारों मरीज पूछ रहे हैं कि यह तो पीजीआई प्रशासन और कर्मचारियों के बीच का मामला है, इसमें उन्हें क्यों घसीटा जा रहा है। उनका क्या कसूर है, जो उन्हें इलाज नहीं मिल रहा।
#WATCH | Chandigarh | President of PGI Contractual Workers' Union, Rajesh Chauhan says, "This protest has been going on since October 10. The court ordered under Rule 25, in our favour to provide us with increased wages since November 2018. But we have not been provided with it… pic.twitter.com/uh7pjYNBPj
— ANI (@ANI) October 14, 2024
पीजीआई चंडीगढ़ में करीब सात प्रदेशों के लोग बीमारी से ठीक होने की आस में आते हैं, लेकिन अब यहां स्थिति काफी गंभीर हो गई है। यह हड़ताल न केवल चिकित्सा सेवाओं को ठप कर रही है, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है, जो इस अस्पताल में अपने इलाज की अंतिम उम्मीद लेकर आए थे। अब देखना यह है कि इस संकट का समाधान कैसे और कब निकलता है, ताकि मरीजों को फिर से चिकित्सा सेवाएं मिल सकें और उनके जीवन को एक नई उम्मीद मिल सके।
#WATCH | Chandigarh | The contractual staff of PGI hold a protest demanding increased wages. pic.twitter.com/sDqVSle8BY
— ANI (@ANI) October 14, 2024
जिन लोगों ने देशभर से अपने इलाज के लिए पीजीआई का रुख किया था, वे अब हताश और निराश बैठे हैं। कुछ मरीज अपने दर्द से जूझते हुए अस्पताल की लंबी कतारों में इंतजार कर रहे हैं, तो कुछ मजबूर होकर अपने परिवार के साथ बिना इलाज कराए ही वापस लौट रहे हैं। कई बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार मरीज, जिनके लिए समय पर इलाज जीवन और मृत्यु का सवाल है, वे अस्पताल के गेट के बाहर खड़े हैं, सोचते हुए कि क्या उनका मर्ज अब कभी ठीक हो पाएगा।
वहीं एक बुजुर्ग महिला, जिनका पति गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है, निराश स्वर में कहती हैं, कि हम यहां बड़ी उम्मीद लेकर आए थे, लेकिन बिना इलाज के लौट रहे हैं। हमें समझ नहीं आता, हम जाएं तो कहां जाएं?
कर्मियों की मांगें और हड़ताल का कारण
पीजीआई में कांट्रेक्ट पर काम करने वाले 1600 से अधिक कर्मचारी, जो मुख्य रूप से अटेंडेंट और सफाई कर्मचारी हैं, वे अपने वेतन में बढ़ोतरी और एरियर की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। उनकी मांगें पूरी न होने के कारण, अस्पताल की व्यवस्थाएं बुरी तरह चरमरा गई हैं। हड़ताल की शुरुआत अटेंडेंट्स यूनियन से हुई थी, लेकिन अब सेनिटेशन और किचन स्टाफ भी उनके समर्थन में आ गए हैं। यह सामूहिक हड़ताल अस्पताल के हर कोने में देखी जा सकती है, जहां न सफाई हो रही है और न ही मरीजों की देखभाल।
पीजीआई प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में रखने के प्रयास किए हैं, लेकिन कर्मचारियों की मांगों पर कोई सहमति नहीं बन पाई है। प्रशासन ने हड़ताल के तीसरे दिन कांट्रेक्ट वर्कर यूनियन के प्रधान के खिलाफ केस भी दर्ज कराया, जिससे तनाव और बढ़ गया है।
ओपीडी सेवाओं पर असर
ओपीडी सेवाएं लगभग बंद हो चुकी हैं, जिससे नए मरीजों का पंजीकरण नहीं हो रहा। अंदर जो मरीज भर्ती हैं, उनकी देखभाल भी उचित रूप से नहीं हो पा रही है। अस्पताल में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हैं और साफ-सफाई की स्थिति भी बिगड़ चुकी है। दवाओं की आपूर्ति और मरीजों के भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकताएं भी प्रभावित हो रही हैं।
मरीजों और परिवारों के सामने बढ़ती चुनौतियां
मरीजों और उनके परिजनों के लिए यह कठिन समय किसी संकट से कम नहीं है। इलाज की उम्मीदें टूट रही हैं, अस्पताल की व्यवस्थाएं ठप हैं, और प्रशासन व कर्मियों के बीच कोई हल न निकलने से स्थितियां और बिगड़ रही हैं। मरीजों के लिए न केवल इलाज की कमी है, बल्कि सफाई, खानपान और आवश्यक देखभाल भी उपलब्ध नहीं है।
पीजीआई की इस हड़ताल ने हजारों लोगों की जिंदगी को ठहराव में डाल दिया है। हड़ताल में शामिल एक कर्मचारी का कहना है कि हम भी मजबूर हैं, अगर हमारी मांगें समय पर मानी जातीं तो यह स्थिति नहीं आती। हमें भी इन मरीजों की तकलीफ समझ आती है, लेकिन अब हम भी थक चुके हैं।
प्रशासन की कोशिशें और मरीजों की उम्मीदें
पीजीआई प्रशासन लगातार स्थिति को सुधारने की कोशिश में लगा है, लेकिन कर्मचारियों और प्रशासन के बीच टकराव से समाधान अभी भी दूर लगता है। मरीज और उनके परिवार अस्पताल के बाहर बैठकर इंतजार कर रहे हैं कि शायद स्थिति जल्द सुधरे और उन्हें उनके प्रियजनों का इलाज समय पर मिल सके।