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तंत्र व कानून की सख्ती कसेगी नकेल

06:21 AM Nov 18, 2023 IST
तंत्र व कानून की सख्ती कसेगी नकेल
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दीपिका अरोड़ा

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‘स्वास्थ्य का अधिकार’ राष्ट्रीय संविधान तथा वैधानिक कानूनों सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून में भी मान्य है। उपचार प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण औषधालय को जीवन रक्षक संस्था कहा जाता है। आवश्यक दवाइयों की सर्वसुलभता स्वस्थ एवं रोगमुक्त समाज सृजित कर, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि संभव बना सकती है किंतु कदाचित आर्थिक लोलुपता अंतर पर प्रभावी होने लगे तो नकली दवाओं का कारोबार मनुष्य को लाचार बनाने से भी नहीं चूकता।
दवा उत्पादन में, वैश्विक स्तर पर हमारा देश तीसरा स्थान रखता है। तुलनात्मक उत्पादन लागत अमेरिका तथा पश्चिमी देशों की अपेक्षा कम होने के कारण भारत व्यापक स्तर पर दवाइयों का निर्यात करता है। वित्त वर्ष, 2021-22 के दौरान हुआ निर्यात 24.62 अरब डॉलर से अधिक रहा।
अरबों डॉलर की दवाएं निर्यात करने वाले इस देश में नकली दवा उत्पादन की भी कमी नहीं। एक अनुमान के मुताबिक़, विश्व में उत्पादित कुल नकली दवाओं का 35 प्रतिशत भारत में बनता है। देश में नकली दवाएं बनाने वाली कंपनियां लगभग चार हज़ार करोड़ रुपये सालाना का कारोबार कर रही हैं। वैश्विक आधार पर चिंताजनक विषय बना नकली दवा निर्माण का गोरखधंधा, भारत के विभिन्न प्रांतों में अपनी जड़ें फैला चुका है। विषय से संबद्ध घटनाएं अक्सर सुर्ख़ियों में रहती हैं। पंजाब समेत कई राज्य नकली दवाओं पर ब्रांडेड लैवल लगाकर विस्तृत आपूर्ति की जाती है। बीते माह, देहरादून पुलिस ने भी नकली दवा-फैक्टरी का भंडाफोड़ किया। मामले की जांच के दौरान मुख्यारोपी द्वारा दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित क़रीब 44 स्थानों पर लगभग 7 करोड़ की नकली दवाएं सप्लाई करने की बात सामने आई।
दरअसल, बाज़ार में ब्रांडेड कंपनी के नाम से बिकने वाली नकली दवा पर अंकित नाम तथा सॉल्ट में समता होने के कारण असली-नकली में भेद करना कठिन हो जाता है। कम कीमत, सहज उपलब्धता के चलते भी लोग असली या ब्रांडेड उत्पादों की तुलना में नकली उत्पाद बिना विचारे ही स्वीकार लेते हैं। वायरल संक्रमण के दौर में एंटीबायोटिक दवाइयों की बढ़ती मांग नकली दवा के अवैध धंधे को विशेष विस्तार देने का कारण बन जाती है।
नकली दवा का उत्पादन तथा बिक्री इसके मूल, प्रामाणिकता या प्रभावशीलता को भ्रामक रूप में प्रस्तुत करने के इरादे से की जाती है। घटिया उत्पाद उत्पन्न होने के पीछे विशेषज्ञता की कमी, अनुचित विनिर्माण प्रथाएं अथवा अपर्याप्त बुनियादी ढांचा मुख्य कारण बनते हैं। सूत्रों की मानें तो नकली दवा निर्माण प्रक्रिया में आंशिक स्तर पर कुछ कंपनियां भी ज़िम्मेदार हैं। कोई भी दवा बनाने पर बड़ी मात्रा में उसकी स्क्रैप बच जाती है। बची स्क्रैप नकली दवा-कंपनियों तक पहुंचाना भले ही कुछ कंपनियों के लिए लाभकारी सौदा हो किंतु नकली दवा निर्माता द्वारा किया गया इसका दुरुपयोग जन स्वास्थ्य के लिए अपूरणीय क्षति ही लेकर आता है।
अनभिज्ञता, आर्थिक विवशता अथवा जागरूकता के अभाव में किए गए गुणवत्ता रहित औषधि सेवन के परिणामस्वरूप उपचार विफल हो जाता है। एंटीबायोटिक दवाओं में यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध का कारण बनता है। किडनी, लीवर, हार्ट आदि संवेदनशील अंगों पर नकली दवाओं का अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनके प्रयोग से रोगी की जान तक जा सकती है। भारतीय दंड संहिता के दृष्टिगत ‘औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940’ की धारा 27-ए के तहत, नकली दवाओं से रोगी की मृत्यु या स्थिति गंभीर होने पर आजीवन कारावास का प्रावधान है। धारा 27-बी के अनुसार, मिलावटी या बिना लाइसेंस दवा बनाने पर 5 वर्ष का कारावास है। धारा 27-सी के मुताबिक़, 7 वर्ष तथा धारा 27-डी के तहत, 2 वर्ष की सज़ा है।
दवा उत्पाद की सम्पूर्ण जांच हेतु संबद्ध मंत्रालय ने 14 जून, 2022 को जारी अधिसूचना के मसौदे में, फॉर्मूलों से दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए अपने प्राथमिक तथा द्वितीयक पैकेजिंग लेबल पर बार कोड अथवा क्यूआर कोड छापना या चिपकाना अनिवार्य किया था। नवंबर, 2022 में केंद्र सरकार ने औपचारिक अधिसूचना जारी करके 300 ब्रांडों के विनिर्माताओं को पैकेजिंग पर क्यूआर कोड जारी करने संबंधी निर्देश दिया, जिसमें विशिष्ट उत्पाद पहचान कोड, दवा का जेनेरिक नाम, ब्रांड नाम, विनिर्माता का नाम-पता, बैच संख्या, उत्पादन तिथि, समापन तिथि तथा विनिर्माण लाइसेंस संख्या से संबंधित जानकारी शामिल होगी। घटिया दवा उत्पादों का निर्माण मानवीयता के परिप्रेक्ष्य में एक अक्षम्य अपराध है; ये जानते-बूझते भी नकली दवा निर्माण की राष्ट्रव्यापी कालाबाज़ारी के समक्ष कानून के हाथ छोटे जान पड़ते हैं। इसे व्यवस्थात्मक ढिलाई मानें अथवा भ्रष्टाचार की मज़बूत पकड़ या फिर राजनीतिक तथा उच्चाधिकारियों की ‘विशेष अनुकम्पा’ का भय, जो नकली दवा विक्रेताओं पर अंकुश लगाने में बाधा बनता है।
‘स्वास्थ्य अधिकार’ का हनन करने वाला जीवनभक्षक नकली दवा उत्पादन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य रक्षण प्रणाली के प्रति अविश्वास उत्पन्न करता है। आवश्यक है समाज के हितार्थ नियमन, नीतियों तथा कानूनी प्रक्रिया में अधिक कड़ाई बरती जाए। सजग उपभोक्ता के नाते सस्ती दवा के लोभ में सेहत से खिलवाड़ कदापि न होने दें, जान है तो जहान है।

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